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16 October 2019

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और किसान आमने-सामने, जानें क्या है मामला

File Photo

भूमि अधिग्रहण कानून से जुड़े मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा के खिलाफ सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया जा रहा है, जिसे लेकर जस्टिस मिश्रा ने नाराजगी जताई है। दरअसल किसान संगठन सहित अन्य पक्षकारों का अनुरोध है कि वे भूमि अधिग्रहण कानून से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए बनी पांच सदस्यीय पीठ से खुद को अलग कर लें। जबकि जस्टिस मिश्रा खुद के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान को जज और संस्थान की गरिमा के खिलाफ बता रहे हैं। आइए जानते हैं आखिर इस विवाद की वजह क्या है।  

जस्टिस अरुण मिश्रा भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों की व्याख्या के लिए गठित पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं। जस्टिस मिश्रा द्वारा साल 2018 में दिए गए फैसले से नाराज किसानों के संगठन सहित कुछ पक्षकारों ने न्यायिक नैतिकता के आधार पर उनसे सुनवाई से हटने का अनुरोध करते हुए कहा है कि संविधान पीठ उस फैसले के सही होने के सवाल पर विचार कर रही है जिसके लेखक वह खुद हैं।

दरअसल, जस्टिस मिश्रा भूमि अधिग्रहण कानून का फैसला सुनाने वाली पीठ के सदस्य थे जिसने कहा था कि सरकारी एजेंसियों द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण भू स्वामी द्वारा मुआवजे की राशि स्वीकार करने में पांच साल तक का विलंब होने के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

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2014 में सुनाया गया था ये फैसला

भूमि अधिग्रहण एक्ट से जुड़े मामले में 2014 में जस्टिस मदन लोकुर, आरएम लोढ़ा और कुरियन जोसेफ ने फैसला सुनाया था कि केवल हर्जाने की राशि को सरकारी खजाने में जमा करने का मतलब यह नहीं होगा कि जमीन के मालिक ने हर्जाने को स्वीकार कर लिया है। यदि जमीन का मालिक हर्जाना लेने से मना कर देता है तो रकम भूमि अधिग्रहण एक्ट के सेक्शन 31 के तहत कोर्ट में जमा कराई जानी चाहिए।

मामले से जुड़े 2014 के फैसले को मिश्रा ने 2018 में ठहराया था गलत

साल 2014 के फैसले को 2018 में जस्टिस अरुण मिश्रा ने पलट दिया था। नए फैसले के तहत कहा गया था कि अगर रकम को सरकारी खजाने में जमा कराया जा चुका है तो इसे जमीन के मालिक द्वारा हर्जाने के रूप में स्वीकार माना जाएगा।

2018 में जिस मामले में जस्टिस मिश्रा ने 2014 के फैसले को गलत ठहराया, वो फैसला देने वाले जस्टिस मदन लोकुर 2018 में जस्टिस मिश्रा की बेंच शामिल थे और वे इससे सहमत नहीं थे।

क्या कह रहे हैं विभिन्न पक्षकार

2018 में जस्टिस मिश्रा के फैसले के बाद कुछ पक्षों की तरफ से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान का कहना है कि संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश उस फैसले को लिखने वाले भी हैं, जिसकी सत्यता को परखा जा रहा है और ऐसे में पक्षपात का तत्व आ सकता है।

भूमि अधिग्रहण कानून पर दिए गए फैसले की सत्यता को परख रही इस बेंच में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एस रवींद्र शामिल हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा उस फैसले को लिखने वाली बेंच में भी शामिल थे, जिसमें कहा गया था कि सरकारी एजेंसी द्वारा किया गया भूमि अधिग्रहण इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि भू स्वामी ने 5 साल के भीतर क्षतिपूर्ति नहीं ली है।

क्या कह रहे हैं जस्टिस मिश्रा 

जस्टिस मिश्र ने मंगलवार को इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान कहा, 'अगर इस संस्थान की ईमानदारी दांव पर होगी तो मैं त्याग करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा। मैं पूर्वाग्रही नहीं हूं और इस धरती पर किसी भी चीज से प्रभावित नहीं होता हूं। यदि मैं इस बात से संतुष्ट होऊंगा कि मैं पूर्वाग्रह से प्रभावित हूं तो मैं खुद ही इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लूंगा।' उन्होंने पक्षकारों से कहा कि वह उन्हें इस बारे में संतुष्ट करें कि उन्हें इस प्रकरण की सुनवाई से खुद को क्यों अलग करना चाहिए।

 

 

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TAGS: Land Acquisition Act, controversy, social media, regarding Justice Arun Mishra, know all matter
OUTLOOK 16 October, 2019
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