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18 May 2019

चुनाव आयोग के सदस्य लवासा का विरोध, कहा- असहमति ऑन रिकॉर्ड दर्ज किए बिना नहीं करेंगे मीटिंग

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट देने पर असहमति जताने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अपना विरोध खुलकर जाहिर कर दिया है। उन्होंने हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त को एक पत्र लिखकर कहा है कि जब तक उनके असहमति वाले मत को ऑन रिकॉर्ड नहीं किया जाएगा तब तक वह आयोग की किसी मीटिंग में शामिल नहीं होंगे।

न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ शिकायत की जांच के लिए गठित समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, अशोक लवासा और सुशील चंद्रा शामिल थे। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की राय दोनों से अलग थी और वह उन्हें आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में मान रहे थे लेकिन इसमें अशोक लवासा की राय को शामिल नहीं किया गया। बाकी के दोनों मुख्य चुनाव आयुक्त ने पीएम के भाषण में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया। लवासा चाहते थे कि उनकी राय को रिकॉर्ड पर लाया जाए। जिसके चलते विरोधस्वरूप 4 मई से उन्होंने आयोग की मीटिंग में जाना छोड़ दिया।

लवासा ने भेजे कई रिमांडर

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लवासा ने कहा कि वह मीटिंग में तभी आएंगे जब बहुसंख्यक पैसले में अल्पसंख्यक राय यानी एक सदस्य की राय को भी रिकॉर्ड पर लाया जाएगा। 3 मई को आयोग के सदस्यों की मीटिंग में मोदी और शाह को लेकर उन्होंने खासी आलोचना की थी लेकिन उनकी असहमति को आदेश में रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया। लवासा ने  मुख्य चुनाव आयुक्त को लिए इसके लिए कई रिमांडर भेजे जिसमें कहा कि वह उनकी असहमति को आदेशों में शामिल करें लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी असहमति को आदेशों में शामिल नहीं किया बल्कि उन पर उल्टे स्पष्टीकरण नहीं देने का आरोप लगा दिया।

मोदी को नोटिस देने के हक में थे लवासा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की आचार संहिता की शिकायतों पर पूर्व वित्त सचिव लवाला की चुनाव पैनल के दो सदस्यों से अलग राय थी। वह चाहते थे कि मोदी को शिकायतों पर नोटिस दिया जाए जिसे स्वीकार नहीं किया गया। मोदी के खिलाफ छह शिकायतें थी जिनमें उन्हें क्लीन चिट दी गई जबकि राहुल को एक मामले में छोड़ा गया।

मोदी के खिलाफ आचार संहिता के कई शिकायतें थी जिसमें एक में उनका पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को 'भ्रष्टाचारी नंबर 1' कहने वाला भाषण है। यह शिकायत अभी भी लंबित है।

सभी सदस्यों को राय रखने का अधिकार

सवाल यह है कि क्या आयोग बिना लवासा के मीटिंग करेगा और क्या बिना उनकी मौजूदगी के यह बहुमत का फैसला माना जाएगा। चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, अगर किसी मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयक्त की राय अलग है तो बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाएगा। सभी सदस्यों को समान रूप से अपनी राय देने का अधिकार है।

नहीं हो सकते एक दूसरे के क्लोनः सीईसी

वहीं, चुनाव आयोग में फैसले को लेकर हो रहे विवाद और लवासा की ओर से पत्र लिखे जाने को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा, 'चुनाव आयोग में 3 सदस्य होते हैं और तीनों एक-दूसरे के क्लोन नहीं हो सकते। मैं किसी भी तरह के बहस से नहीं भागता। हर चीज का वक्त होता है।'

चुनाव आयुक्त लवासा की राय शामिल न करने को लेकर चुनाव आयोग का तर्क था कि यह अर्ध न्यायिक फैसला नहीं था जबकि एक पूर्व चुनाव आयुक्त का कहना था कि किसी भी परिस्थिति में राय को रिकॉर्ड पर लाया जाना चाहिए।

2017 मे तत्कालीन चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के सवाल उठाने के बाद आम आदमी पार्टी से जुड़े मामले से खुद को अलग कर लिया 

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OUTLOOK 18 May, 2019
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