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02 June 2020

लौटीं ट्रेनें लेकिन बेपटरी हुई कुलियों की जिंदगी, नहीं मिली कोई मदद, महामारी के डर से यात्रियों ने बनाई दूरी

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बेशक ट्रेनें पटरी पर लौट रही हों, लेकिन कुलियों की जिंदगी की गाड़ी बेपटरी है। पटरियों पर दौड़ती ट्रेनें ही कुलियों की लाइफलाइन हैं। लॉकडाउन के बाद मानो जैसे उनकी आजीविका पर ब्रेक लग गया है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लौटे करीब दो दर्जन कुलियों के अनुसार, ढाई महीने से कोई कमाई नहीं हुई और अब ट्रेन फिर चलने के बावजूद महामारी के डर से यात्रियों ने दूरी बना ली है। उनका कहना है कि न तो सरकार की तरफ से इन्हें आर्थिक मदद मिली और न ही किसी संस्था की ओर से राशन पानी।

कभी लाल शर्ट और बाजू पर काॅपर के बैंड के साथ ट्रेन आते ही सीढ़ियों पर दौड़ते और कंधे पर बैग टांगे देखे जाने वाले कुली आज भुखमरी के कगार पर हैं। ट्रेनों के बंद हाेते ही कुलियों के सामने परिवार के भरण पोषण की समस्या पैदा हो गई। हालांकि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों और अन्य कुछ ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया। बावजूद इसके कुलियों की जिंदगी बेपटरी है। 1983 की अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘कुली' ने पहली बार यात्रियों का बोझ उठाने वाले इस तबके के संघर्ष को सबके सामने रखा लेकिन इतने साल बाद भी कुलियों की जिंदगी नहीं बदली और तीन महीने के लॉकडाउन ने उन्हें रोजी रोटी के लिये मोहताज कर दिया।

'40 सालों में नहीं देखा ऐसा बुरा समय' 

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पिछले 40 साल से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कुली का काम कर रहे राजस्थान के सूबे सिंह अपने चार बच्चों और पत्नी के साथ पहाड़गंज में किराये के कमरे में रहते हैं। उन्होंने कहा ,‘‘चटनी रोटी खाकर गुजारा कर रहे हैं और मकान मालिक ने किराया तक माफ नहीं किया, हमारा तो राशन कार्ड भी नहीं है। उधार पर गुजारा हो रहा है. ऐसा बुरा समय तो पूरी जिंदगी में नहीं देखा।''

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर कई कुलियों ने कहा कि कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन की घोषणा हुई थी और तब ट्रेने रुक गई थीं तब से उन्होंने एक रुपया भी नहीं कमाया है। रेलवे द्वारा प्रमुख मार्गों पर सेवाओं को फिर से शुरू करने के बाद भी पर्याप्त कमाई की कोई उम्मीद नहीं है। लॉकडाउन के दौरान, कई कुलियों  ने शहर छोड़ दिया तो कुछ बिना किसी की मदद के दिल्ली में फंसे हुए थे।

'अपने पैसे से खरीदा मास्क और सैनिटाइजर'

नई दिल्ली स्टेशन पर 12 साल से कुली का काम कर रहे चंद्र प्रकाश ने कहा कि उन्होंने अपने पैसे से मास्क और सैनिटाइजर खरीदे। उन्होंने कहा, “हमें ऐसा करना पड़ा क्योंकि अगर हम बीमार पड़ गए तो हमारी देखभाल कौन करेगा। हमारे पास कोई चिकित्सा लाभ या बीमा नहीं है। कई पास के पहाड़गंज में किराए पर रहते हैं। लगभग छह हजार रुपये महीने के किराए का एक छोटा कमरा छह से सात साझा करते हैं। हम रोज मेहनत करते हैं लेकिन हम सड़कों पर भीख नहीं माँग सकते। हम काम चाहते हैं।

देश भर में 20,000 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कुली हैं। दिल्ली में, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 1,478 काम, पुरानी दिल्ली स्टेशन पर लगभग 1,000, हजरत निजामुद्दीन में 500-600 और आनंद विहार टर्मिनल पर 97 हैं।

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OUTLOOK 02 June, 2020
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