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05 April 2021

महाराष्ट्रः बिगड़ैल पुलिस वालों का फंदा, राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने वाले सचिन वझे अकेले नहीं

भारत के सबसे अमीर उद्योगपति के घर से कुछ दूरी पर एक एसयूवी में जिलेटिन की छड़ें, नदी में एक कारोबारी की लाश, एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का उत्‍थान-पतन, एक पुलिस कमिश्नर का मामूली जगह तबादला और जवाब में विस्फोटक चिट्ठी, गृह मंत्री के खिलाफ आरोप, झंझावात में ‌घिरी पूरी राज्य सरकार। रामगोपाल वर्मा के थ्रिलर सिनेमा के लिहाज से भी यह उतार-चढ़ाव कुछ ज्यादा हैं। और यह सब हुआ है मुंबई में। मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर अल्टामाउंट रोड पर पिछले महीने एक स्कॉर्पियो मिली, जिसमें लो ग्रेड के विस्फोटक थे। इसके तार मुंबई के अपराध जगत से लेकर आतंकवाद तक से जोड़े जा रहे हैं। मामले ने डरावना मोड़ तब लिया जब ठाणे के व्यापारी मनसुख हिरेन की लाश मिली और असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वझे को गिरफ्तार और निलंबित किया गया। इससे पहले कि महाराष्ट्र की एटीएस आगे की छानबीन करती, एनआइए ने मामला अपने हाथों में ले लिया। एटीएस ने जब जांच के कागजात एनआइए को नहीं सौंपे, तो केंद्रीय एजेंसी ने कोर्ट का सहारा लिया। एनआइए ने वझे पर यूएपीए लगाया है। इस बीच, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने प्रदेश के गृहमंत्री पर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा। जाहिर है कि इन सबके पीछे बड़ा खेल था, जिसमें एक तरफ भाजपा और केंद्र सरकार की एजेंसियां थीं और दूसरी तरफ महाराष्ट्र की महा विकास आघाडी सरकार।

इस बीच, अहमदाबाद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ राकांपा प्रमुख शरद पवार और पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल की बैठक की अफवाह है। अमित शाह के इस बयान के बाद अफवाह ने जोर पकड़ा कि “हर बात सार्वजनिक करने वाली नहीं होती।” प्रदेश भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटील ने भी कहा, जरूरी नहीं कि हर बैठक में राजनीति पर ही चर्चा हो। शिवसेना नेता संजय राउत ने पहले तो बैठक की बात मानी, लेकिन बाद में कहा कि कोई बैठक नहीं हुई।

समूचे घटनाक्रम की दो परतें खुल रही हैं, जिसकी असली स्क्रिप्ट राजनीतिक है। जांच एजेंसियां हर दिन नए सबूत लेकर सामने आ रही हैं। मीठी नदी में जहां हिरेन की लाश बरामद हुई थी, वहां हार्ड डिस्क, डीवीआर, लैपटॉप आदि भी मिले। पिछले तीन-चार हफ्ते में जो बातें सामने आई हैं, वे मुख्य रूप से हिरेन की मौत में वझे के तथाकथित रूप से शामिल होने से जुड़ी हैं। हिरेन की स्कॉर्पियो में ही विस्फोटक सामग्री मिली थी। उसके बाद एक और विस्फोट तब हुआ जब पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पत्र लिखा। इसके सामने आते ही असली मुद्दा पीछे रह गया कि अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक के पीछे कौन था, उसका उद्देश्य क्या था। हमारे पास इसका कोई जवाब नहीं है।

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निलंबित कांस्टेबल विनायक शिंदे और क्रिकेट बुकी नरेश गोर की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने हिरेन की हत्या का मामला सुलझा लेने का दावा किया है। शिंदे 2006 में लखन भैया एनकाउंटर मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा था। वह 2020 में पैरोल पर बाहर आया और एटीएस के अनुसार, वझे के संपर्क में था।

वझे का अपना करियर भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। मुंबई के अपराध जगत से उसके संदिग्ध रिश्ते रहे हैं। उसके नाम 63 एनकाउंटर हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस की हिरासत में मौत के मामले में उसे गिरफ्तार किया गया और 17 वर्षों के लिए निलंबित किया गया था। वझे 2008 में शिवसेना में शामिल हो गया। महाराष्ट्र की मौजूदा गठबंधन सरकार ने कोविड की आपात स्थिति को कारण बताते हुए 2020 में उसे नौकरी पर बहाल कर दिया।

यह कोई पहला मामला नहीं जब एनकाउंटर स्पेशलिस्ट, संरक्षण देने वाले नेताओं के लिए ही मुसीबत बना हो। 1990 के दशक में जब अंडरवर्ल्ड गैंगवार चरम पर था तब एनकाउंटर की संस्कृति को काफी पोषित किया गया। महाराष्ट्र खुफिया विभाग में एडिशनल डिप्टी कमिश्नर पद से रिटायर हुए शिरीष इनामदार कहते हैं, “आम लोगों को फटाफट पसंद था और मीडिया को टीआरपी की दरकार थी। नतीजा यह हुआ कि जूनियर पुलिस अधिकारी अपने आपको अपराजेय समझने लगे और वे वर्दीधारी अपराधी बन गए। बड़े अधिकारियों ने भी उन्हें बढ़ावा दिया। व्यापारी और उद्योगपति अपना काम करवाने के लिए उनके पास जाते थे। इससे इस खेल में काफी पैसा आने लगा। एक तरह से समानांतर सरकार बन गई थी जो सिस्टम के लिए बेहद गंभीर चुनौती थी।”

इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी जब मुंबई की अर्थव्यवस्था तेजी पर थी, जमीन की कीमतें बढ़ रही थीं और मिलों की जमीनें बेची जा रही थीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश बल कहते हैं, “जमीन के इन टुकड़ों ने करीम लाला, रतन खत्री और दाऊद इब्राहिम जैसे गैंगस्टर को वसूली का नया रास्ता दे दिया, जो उससे पहले तस्करी तक ही सीमित थे। जमीनें खाली कराने के लिए इन अपराधियों से संपर्क किया जाता था। गैंग शक्तिशाली होने लगे और पैसा भी आने लगा। 10-15 वर्षों तक अपराधियों के गैंग, नेताओं और डेवलपर्स के नेटवर्क ने राज किया। पैसे की भूख इतनी बढ़ गई कि इन तीनों के बीच झगड़े होने लगे। तब एनकाउंटर स्पेशलिस्ट लाए गए और उन्हें एक तरह से फ्री हैंड दे दिया गया।”

वडाला में 11 जनवरी 1982 को गैंगस्टर मनोहर उर्फ मन्या सुर्वे का एनकाउंटर पहला हाई प्रोफाइल मामला था। अपराध की इस काली दुनिया ने बॉलीवुड को काफी मसाला दिया जिसने पुलिस का महिमामंडन किया। 2013 में जॉन अब्राहम की फिल्म शूटआउट एट वडाला सुर्वे के एनकाउंटर पर आधारित थी। ऐसी अनेक फिल्में बनी हैं। 

1995 में जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी, तब गृह मंत्री गोपीनाथ मुंडे ने एनकाउंटर का खुला समर्थन किया। यह जानलेवा घालमेल था। नेताओं को चुनाव के लिए पैसे चाहिए और उन्होंने गैंगस्टर का सहारा लिया। गैंगस्टर काबू से बाहर हुए तो उनका एनकाउंटर करा दिया। मानवाधिकार मामलों के वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई कहते हैं, “ज्यादातर एनकाउंटर ठंडे दिमाग से किए गए। यह सरकार की मंजूरी के बिना संभव नहीं था। इसी ने सचिन वझे, दया नायक और प्रदीप शर्मा जैसे विवादास्पद पुलिस वालों को जन्म दिया।” वझे को आंशिक राजनीतिक संरक्षण भी मिला। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शुरू में यह कह कर उसे बचाने की कोशिश की कि वह कोई ओसामा बिन लादेन नहीं है। लेकिन यह बयान उनके लिए उल्टा पड़ गया। वझे की तरह शर्मा को भी 2008 में नौकरी से निकाल दिया गया था, लेकिन 2017 में बहाल कर दिया गया। संयोग यह भी है कि उसने भी पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के अधीन काम किया था।

जब परतें खुलने लगीं तो केंद्र भी अपने पंजे गड़ाने लगा। वैसे महाराष्ट्र की कानून-व्यवस्था के मामले में हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। एनआइए ने प्रदेश की पुलिस से भीमा कोरेगांव की जांच छीन ली। सीबीआइ ने सुशांत सिंह राजपूत मामले को ले लिया। अब एनआइए ने अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक मामले को ले लिया है। इसलिए महा विकास अघाडी सरकार की यह आशंका बेबुनियाद नहीं है कि केंद्र उसे अस्थिर करना चाहता है। भाजपा नेता प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक सुहाष पलसीकर कहते हैं कि केंद्र ने बिना अनुच्छेद 356 लागू किए किसी राज्य को काबू में करने की कला सीख ली है। अनुच्छेद 356 को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसलिए केंद्र सरकार सीबीआइ और एनआइए जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है।

सरपरस्ती में शूटर

मायानगरी के पुलिसवाले जिन्होंने जज, जूरी और जल्लाद तीनों की भूमिका निभाई

प्रदीप शर्मा

 

1983 में सब-इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुई। उसकी पोस्टिंग माहिम थाने में थी। उसके नाम एक सौ से ज्यादा एनकाउंटर हैं। 2008 में भ्रष्टाचार के आरोप में उसे बर्खास्त कर दिया गया। 2010 में लखन भैया मामले में  गिरफ्तार किया गया लेकिन 2013 में उसे रिहाई मिल गई। उसे 2017 में बहाल किया गया। उसी साल मुंबई में दाऊद इब्राहीम के भाई इकबाल कासकर को गिरफ्तार करने के बाद वह सुर्खियों में आया था। शर्मा ने 2019 में मुंबई पुलिस की नौकरी छोड़ दी और शिवसेना में शामिल हो गया। उसने पालघर जिले की नालासोपारा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा। महेश मांजरेकर की मराठी फिल्म रेगे प्रदीप शर्मा पर आधारित है।

दया नायक

कर्नाटक के उडुपी का रहने वाला दया नायक 1995 बैच का पुलिस अधिकारी है। उसके नाम 83 एनकाउंटर हैं। उस पर अब तक छप्पन नाम से फिल्म भी बनी। उसके शुरुआती एनकाउंटर में छोटा राजन गैंग के सदस्य भी शामिल हैं। लेकिन उसकी नायक की छवि जल्दी ही दागदार हो गई जब उस पर आय से अधिक संपत्ति, वसूली और अंडरवर्ल्ड से रिश्ते रखने के आरोप लगे। अंडरवर्ल्ड से रिश्ते की जांच मकोका कोर्ट ने की जिसमें उसे 2004 में क्लीन चिट मिल गई। हालांकि 2006 में एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसे फिर गिरफ्तार किया, जिसके बाद उसे निलंबित किया गया। लेकिन 2012 में फिर उसकी बहाली हो गई।

विजय सालसकर

वह 1983 में मुंबई पुलिस में आया। कहा जाता है कि उसने 75 अपराधियों के एनकाउंटर किए। इनमें अरुण गवली गैंग के सदस्य भी शामिल हैं। 2008 में मुंबई में आतंकवादियों के हमले (26/11) के दौरान एटीएस चीफ हेमंत करकरे और एडिशनल कमिश्नर अशोक कामटे के साथ सालासर की भी मौत हो गई। उसे 2009 में अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।

सचिन वझे

1990 में माओवादी प्रभावित गढ़चिरौली जिले में सब इंस्पेक्टर के रूप में शुरुआत की। उसके नाम 60 से ज्यादा एनकाउंटर हैं, जिनमें छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम गैंग के सदस्य भी शामिल हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर ख्वाजा यूनुस की हिरासती मौत के मामले में उसे 17 वर्षों के लिए सस्पेंड किया क्या। सचिन वझे 2008 में शिवसेना में शामिल हो गया। इसके बाद शिवसेना सरकार में आई तो आरोपी होने के बावजूद 2020 में उसे फिर से बहाल कर दिया गया।

रवींद्रनाथ आंग्रे

 

रवींद्रनाथ 1983 में सब इंस्पेक्टर के रूप में पुलिस में शामिल हुआ। विजय सालसकर और प्रदीप शर्मा उसके बैच के ही हैं। आंग्रे के नाम 50 से ज्यादा एनकाउंटर हैं लेकिन दूसरों की तरह है उस पर भी कई आरोप लगे। 2008 में ठाणे में एक बिल्डर से वसूली के आरोप में उसे गिरफ्तार किया गया। हालांकि जल्दी ही उसकी दोबारा बहाली हो गई और उसे गढ़चिरौली ट्रांसफर कर दिया गया। लेकिन उसने उस ट्रांसफर को स्वीकार नहीं किया। आंद्रे 2015 में भाजपा में शामिल हो गया।

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OUTLOOK 05 April, 2021
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