नजीब अहमद का मामला बंद, मां ने इसके लिए जांच एजेंसियों की ‘लापरवाही’ को जिम्मेदार ठहराया
जेएनयू के छात्र नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस ने मंगलवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और दिल्ली पुलिस पर अपने लापता बेटे के मामले में ‘‘लापरवाही’’ का आरोप लगाया और कहा कि अगर उन्हें न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाना पड़ा तो वह ऐसा करेंगी। नजीब अहमद 2016 में लापता हो गया था।
उसकी मां ने फेसबुक पर एक पोस्ट में कहा कि वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ेंगी।
दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को सीबीआई को अहमद के मामले को बंद करने की अनुमति देते हुए कहा कि एजेंसी ने ‘‘सभी विकल्प आजमा’’ लिए हैं।
प्रथम वर्ष का छात्र अहमद 15 अक्टूबर 2016 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के माही-मांडवी छात्रावास से लापता हो गया था। उसकी एक रात पहले कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े कुछ छात्रों के साथ हाथापाई हुई थी।
पहले इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस ने की थी और बाद में इसे सीबीआई को सौंप दिया गया।
नफीस ने कहा कि उनकी लड़ाई सिर्फ अपने बेटे के लिए नहीं है, बल्कि हर उस मां के लिए है जो अपने बच्चे के लिए न्याय की मांग कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘और अगर मुझे इस देश के उच्चतम न्यायालय में जाना पड़ा, तो मैं वहां भी जाऊंगी।’’
नफीस ने अपने पोस्ट में कहा, ‘‘मेरे नजीब को लापता हुए (लगभग) नौ साल हो गए हैं। लेकिन दिल्ली पुलिस और सीबीआई ने पहले दिन से ही जो लापरवाही दिखाई, उसी के चलते आज यह नौबत आई है कि अदालत ने सीबीआई की मामला बंद करने की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कई बार मैं खुद से पूछती हूं कि मैं उम्मीद कैसे छोड़ सकती हूं? मैं अपनी हिम्मत कैसे टूटने दे सकती हूं? आखिर वह मेरा बेटा है। मुझे अपना बेटा वापस चाहिए। अगर इसके लिए मुझे इस देश की हर अदालत में जाना पड़े, तो मैं जाऊंगी। मैं अपनी आखिरी सांस तक लडूंगी।’’
सीबीआई ने अक्टूबर 2018 में मामले की जांच बंद कर दी थी क्योंकि अहमद का पता लगाने के उसके प्रयासों का कोई नतीजा नहीं निकला था। दिल्ली उच्च न्यायालय से अनुमति मिलने के बाद एजेंसी ने अपनी ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की।
नफीस के वकील ने पहले कहा था कि यह एक ‘‘राजनीतिक मामला’’ है जिसमें ‘‘सीबीआई अपने आकाओं के दबाव के आगे झुक गई है।’’
अदालत ने सीबीआई की ‘क्लोजर रिपोर्ट’ को स्वीकार कर लिया, लेकिन एजेंसी को अहमद के बारे में कोई भी विश्वसनीय जानकारी मिलने पर जांच फिर से शुरू करने और अदालत को सूचित करने की छूट दी।