Advertisement
26 July 2024

नए आपराधिक कानून अधिक दमनकारी, सत्तारूढ़ दल को विपक्ष को निशाना बनाने और उन पर मुकदमा चलाने का देंगे मौकाः कपिल सिब्बल

file photo

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को कहा कि नए आपराधिक कानून उन कानूनों से “अधिक दमनकारी” हैं, जिन्हें उन्होंने प्रतिस्थापित किया है और इनका उद्देश्य देश के नागरिकों को नियंत्रित करना है। उन्होंने कहा कि ऐसे देश में लोकतंत्र नहीं हो सकता, जहां राज्य का कामकाज व्यक्तियों और संस्थाओं को धमकाने के उद्देश्य से कानूनों के दुरुपयोग पर आधारित हो।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के प्रावधानों में “कुछ खामियों” का उल्लेख किया और कहा कि इन कानूनों के शीर्षक में भी पूरी तरह से विवेक का प्रयोग नहीं किया गया है।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने वाले बीएनएस और बीएनएसएस 1 जुलाई, 2024 से लागू हुए। विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा आयोजित अपराध और सजा पर उद्घाटन व्याख्यान देते हुए सिब्बल ने कहा कि नए कानूनों का उद्देश्य "सोशल मीडिया, किसानों, छात्रों सहित इस देश के नागरिकों को नियंत्रित करना" है।

Advertisement

उन्होंने कहा, "हम एक अधिनायकवादी व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। नए कानून आपदा के लिए एक आदर्श नुस्खा हैं और सत्तारूढ़ दल को विपक्ष को निशाना बनाने और उन पर मुकदमा चलाने का मौका देंगे।" उन्होंने कहा, "आपने कानूनों को पहले की तुलना में कहीं अधिक दमनकारी बना दिया है।"

उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा है कि इन नए आपराधिक कानूनों को लागू करना औपनिवेशिक युग से हटकर है और इन कानूनों को और अधिक उदार बनाया गया है। हालांकि, उन्होंने जो किया है वह इसके ठीक विपरीत है। वरिष्ठ वकील ने कहा "यह इस देश में तबाही मचा रहा है। जिस तरह से वे लोगों को गिरफ्तार कर रहे हैं, जिस तरह से वे गिरफ्तार कर रहे हैं और जिस तरह से दस्तावेजों का सहारा लिया जा रहा है, वह बेहद संदिग्ध है।

उन्होंने कहा, "यह सब दिखाता है कि अब इस देश में राजनीति या यूं कहें कि कानून राजनीति का साधन बन गया है। और इन तीनों कानूनों का इस्तेमाल अब न्याय के लिए नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा कि आप लोगों को सजा दें, चाहे आपके पास सबूत हों या नहीं। यही बात गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के साथ भी है और अखबारों में 70 प्रतिशत खबरें सिर्फ अपराध और राजनीति की होती हैं।"

सिब्बल ने कहा कि सवाल यह उठता है कि क्या ये कानून संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अनुरूप हैं। वरिष्ठ वकील-राजनेता ने कहा कि ऐसे नए कानूनों की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है जो संवैधानिक मूल्यों से दूर जाकर अधिक अधिनायकवादी संस्कृति की ओर बढ़ते हैं।

उन्होंने कहा, "आप एक लोकतांत्रिक देश नहीं बना सकते जहां राज्य का कामकाज व्यक्तियों, संस्थाओं को धमकाने के उद्देश्य से कानूनों के दुरुपयोग पर आधारित हो। यही कारण है कि हम देख रहे हैं कि कई उच्च निवल संपत्ति वाले लोग इस देश को छोड़ रहे हैं और इसका असर यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई है और कोई भी अब निवेश नहीं करना चाहता है। "कोई भी इस तरह से निशाना नहीं बनना चाहता। उन्होंने कहा, "कानून अधिकाधिक हस्तक्षेपकारी होते जा रहे हैं और लोगों से जुड़े वास्तविक मुद्दों का इससे कोई लेना-देना नहीं है।"

उन्होंने कहा कि बच्चों सहित लोगों के सशक्तीकरण और युवाओं की बेरोजगारी जैसे वास्तविक मुद्दों को संबोधित करने के बजाय, सरकार अब लोगों के जीवन को खतरे में डालने और यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसे कानून बना रही है कि वे संविधान के मूल्यों के अनुरूप नहीं बल्कि शासन करने वालों के मूल्यों के अनुरूप काम करें। नई दंड संहिता बीएनएस के नाम पर आपत्ति जताते हुए सिब्बल ने पूछा कि 'न्याय' का इससे क्या लेना-देना है, क्योंकि दंड संहिता का उद्देश्य समाज के खिलाफ अपराध करने वाले लोगों को दंडित करना है और यही कारण है कि राज्य ही मुकदमा चलाता है, न कि कोई व्यक्ति। बीएनएसएस के बारे में उन्होंने आश्चर्य जताया कि 'सुरक्षा' का इससे क्या संबंध है, क्योंकि यह एक प्रक्रियात्मक संहिता है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
OUTLOOK 26 July, 2024
Advertisement