कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध के लिए लोकसभा में बिल पेश, जानिए इसकी अहम बातें
मोदी सरकार ने किराए की कोख के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरोगेसी (रेगुलेशन) बिल 2019 पास कराने की तैयारी की है। लोकसभा में सोमवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस बिल को पेश किया। इस बिल में कमर्शियल सरोगेसी को गैर-कानूनी ठहराया गया है और इसका उल्लंघन करने पर 10 साल के कारावास और 10 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस बिल के जरिए नेशनल सरोगेसी बोर्ड, स्टेट सरोगेसी बोर्ड के गठन की बात है। वहीं सरोगेसी की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति करने का भी प्रावधान है।
कैबिनेट ने दी थी मंजूरी
मोदी सरकार ने 2016 में ही सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए इस बिल को लाया था। मगर अब इसके नए प्रारूप को सरोगेसी रेगुलेशन बिल 2019 नाम से पेश किया गया है। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस बिल के प्रारूप को मंजूरी मिली थी। इसका मकसद है कि किराए के कोख का व्यावसायिक इस्तेमाल न हो।
विधि आयोग ने की थी सिफारिश
दरअसल, हालिया वर्षों में दुनिया के कई देशों के दंपतियों के लिए भारत सरोगेसी का हब बनता जा रहा है। सरोगेट मांओं के शोषण, सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़ देने और मानव भ्रूणों के इम्पोर्ट के मामले सामने आए हैं। भारत के विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने की सिफारिश की थी जिसके बाद सरकार ने यह पहल की है।
क्या हैं बिल के प्रावधान
Publish Date:Mon, 15 Jul 2019 10:27 PM (IST)
मोदी सरकार का बड़ा कदम, कोख के कारोबार पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में लोक सभा में बिल पेश
सरोगेट मां की उम्र 25 से 35 साल के बीच होनी चाहिए और उसका पहले से अपना एक बच्चा होना चाहिए। सरोगेट मां को सिर्फ एक बार ही सरोगेसी की अनुमति होगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। किराये पर कोख यानी कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में अहम कदम उठाते हुए सरकार ने 'द सरोगेसी (रेग्युलेशन) बिल, 2019' सोमवार को लोक सभा में पेश किया गया। इस विधेयक में कमर्शियल सरोगेसी को गैर-कानूनी ठहराया गया है और इसका उल्लंघन करने पर 10 साल के कारावास और 10 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
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सरकार को यह विधेयक लाने की जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि हाल के वर्षो में भारत सरोगेसी हब के तौर पर उभरा है जिसके चलते सरोगेट माताओं के शोषण की खबरें आ रही हैं। इस विषय पर कानून का अभाव होने के चलते सरोगेसी का अंधाधुंध व्यवसायीकरण हुआ है और सरोगेसी क्लीनिक सरोगेसी का दुरुपयोग कर रहे हैं। विधि आयोग ने भी अपनी 228वीं रिपोर्ट में एक कानून बनाकर कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने की सिफारिश कर चुका है।
क्या हैं बिल के प्रावधान
सरोगेसी (रेग्युलेशन) बिल, 2019 के मुताबिक, अगर कोई चिकित्सक या क्लिनिक कानून का उल्लंघन कर सरोगेसी का व्यवसायिक इस्तेमाल करता है तो उसे पहली बार यह अपराध करने पर पांच साल की सजा और पांच लाख रुपये जुर्माना हो सकता है। अगर वह दुबारा यह अपराध करता है तो कारावास की अवधि बढ़कर दस साल और जुर्माने की राशि दस लाख रुपये हो सकती है।
निकटवर्ती रिश्तेदार महिला ही बन सकती है सरोगेट मां
इस विधेयक के कानून का रूप लेने पर सिर्फ उन भारतीय दंपत्ति को ही सरोगेसी से संतान प्राप्त करने की अनुमति होगी जो संतान उत्पन्न करने में अक्षम हैं। ऐसे दंपत्ति अगर सरोगेसी के माध्यम से संतान प्राप्त करना चाहते हैं तो उनकी निकटवर्ती रिश्तेदार महिला ही सरोगेट मां बन सकेगी।
उम्र को लेकर शर्त, व्यावसायिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध
सरोगेट मां की उम्र 25 से 35 साल के बीच होनी चाहिए और उसका पहले से अपना एक बच्चा होना चाहिए। सरोगेट मां को सिर्फ एक बार ही सरोगेसी की अनुमति होगी। प्रस्तावित कानून के तहत सरोगेसी क्लिनिक का पंजीकरण अनिवार्य होगा और कोई भी व्यक्ति या क्लिनिक सरोगेसी का व्यवसायिक इस्तेमाल या प्रचार नहीं कर पायेगा।