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13 October 2025

लद्दाख: मांगा हक, मिली गोली, राजद्रोह!

लद्दाख की राजधानी लेह में सेानम नर्बो मेमोरियल अस्पताल के भीड़भरे वार्ड में 34 साल के जिग्मे‍ट स्तांजिन लेटे हुए थे। उनके हाथ जख्मी हैं। प्रदर्शनकारियों की ओर पुलिस के अश्रु गैस के गोले को उठाकर वापस फेंकने के वक्त गोला उनके हाथ में फट गया था। 24 सितंबर के प्रदर्शन पर पुलिस बलों की गोलीबारी के शिकार लोगों में वे एक हैं। लद्दाख को राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग के साथ शुरू हुआ आंदोलन अब अस्पतालों के बिस्तरों पर प्रियजनों की तलाश और घायलों की तीमारदारी में जुटे बदहवास परिवारों के इंतजार में सिमट गया है। उस प्रदर्शन में पुलिस की गोली से चार युवकों की मौत और 86 लोग जख्मी हो गए थे।

सोनम वांगचुक

मैं जेल में ही रहना चाहूंगा जब तक पुलिस गोलीबारी की स्वतंत्र जांच नहीं हो जाती। राज्य और छठी अनुसूची की मांग का आंदोलन जारी रहेगाः सोनम वांगचुक, पर्यावरण कार्यकर्ता

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यह लद्दाख के शांत माहौल में बिरली और चौंकाऊ घटना थी, जिससे समूचा देश और दुनिया भी हैरान रह गई। उससे भी ज्यादा हैरानी बड़े पर्यावरण कार्यकर्ता तथा लद्दाख के लोगों की पहचान बन चुके, मेगसायसाय पुरस्कार तथा कई सम्मानों से नवाजे गए सोनम वांगचुक को राजद्रोह के आरोपों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत गिरफ्तारी थी। उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ देश-दुनिया के कई हलकों से आवाजें उठीं। इसके खिलाफ पहली दफा लेह अपेक्स बॉडी (एलएबी) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) एक मंच पर आए। वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश अरविंद कुमार और एन.वी. अंजारिया की पीठ ने 6 अक्टूबर को केंद्र और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी किया। वांगचुक को राजस्‍थान के जोधपुर जेल ले जाया गया है। गीतांजलि लेह और फिर दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि पाकिस्तान और चीन से संबंधों का झूठा आरोप फैलाया जा रहा है।

जोधपुर जेल लाए गए वांगचुक

वांगचुक को लद्दाख से जोधपुर जेल लाया गया है

वहां उनसे मिलने गए उनके भाई और उनकी वकील के हाथों भेजी चिट्ठी में वांगचुक ने कहा, मैं तब तक जेल में ही रहना चाहूंगा जब तक प्रदर्शन पर पुलिस गोलीबारी की स्वतंत्र जांच नहीं हो जाती, मृतकों के परिजनों तथा घायलों को उचित मुआवजा नहीं दिया जाता, राजद्रोह जैसे झूठे आरोप वापस नहीं लिए जाते। राज्य के गठन और छठी अनुसूची की मांग का आंदोलन गांधीवादी अहिंसक तरीके से जारी रहेगा।

वांगचुक राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची और दूसरी मांगों को लेकर 10 सितंबर से कई स्थानीय लोगों के साथ अनशन पर बैठे थे। वे इसी मांग को लेकर इस साल मार्च में लेह से दिल्ली तक की पैदल यात्रा भी कर चुके थे। 23 सितंबर को अनशन पर 80 साल से ऊपर के दो बुजुर्गों की हालत बिगड़ी तो उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। इससे वहां युवाओं में रोष पैदा हुआ और 24 सितंबर को बंद का आह्वान किया गया। उनमें 18-25 वर्ष के युवक बड़ी तादाद में थे, जिन्हें जेन जी कहा जाने लगा है।

 बौद्ध बहुल लेह में राजनैतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के गठबंधन लेह अपेक्स बॉडी (एलएबी) ने मार्च का आयोजन किया।  हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर मार्च में जुट गए। मकसद था केंद्र पर राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के दर्जे पर बातचीत के लिए दबाव बनाना। ये मांगें महीनों या बरसों से चली आ रही हैं।

उस दिन प्रदर्शन के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्थानीय कार्यालय और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (एलएएचडीसी) परिसर में तोड़फोड़ और आगजनी की घटना हुई। सुरक्षा बलों की गोलीबारी में चार लोग मारे गए, करीब 90 लोग घायल हुए, जिनमें कुछ पुलिसवाले भी बताए जाते हैं। उसके बाद पुलिस ने दर्जनों लोगों को हिरासत में ले लिया।

गिरफ्तार किए गए कइयों के परिवार वालों ने कहा कि उनके परिजन प्रदर्शन में शामिल नहीं थे, फिर भी उन्हें पकड़ लिया गया है। एसएनएम अस्पताल के बाहर अमीना बानो अपने रिश्तेदारों के साथ इंतजार करती मिलीं। उन्हें पता चला कि उनके बेटे जुल्फिकार अली को चिकित्सा जांच के लिए वहां लाया गया है। उन्होंने बताया कि जुल्फिकार सुबह कॉलेज गया था और घर नहीं लौटा।

मुद्दे की बातः एलएबी के चेयरमैन चेरिंग दोरजे (बीच में), अन्य सदस्य प्रेस कॉन्फ्रेंस में

मुद्दे की बातः एलएबी के चेयरमैन चेरिंग दोरजे (बीच में), अन्य सदस्य प्रेस कॉन्फ्रेंस में 

दूसरे मोहल्लों में लोग मारे गए युवकों के लिए शोक प्रार्थना की तैयारी कर रहे थे। पुलिस की गोली से मारे गए 25 वर्षीय जिग्मेट दोरजी के चाचा 48 वर्षीय कोंचक दोरजी ने बताया कि जिग्मेट को गर्दन में गोली लगी। भीड़भाड़ वाले इलाके चोगलमसेर में 23 वर्षीय स्तांजिन नामग्याल के घर पर भी मातम छाया था।

इस पूरे मामले के हालिया इतिहास में चलते हैं। केंद्र सरकार ने अचानक 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया, जिससे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया। फिर, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के जरिए राज्य दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया। चंडीगढ़ की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा का प्रावधान किया गया, लेकिन लद्दाख को उससे वंचित रखा गया।

तभी से, वहां के संगठन लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं, ठीक कई पूर्वोत्तर राज्यों की तरह, जहां स्वायत्त परिषदें स्थानीय निवासियों की नौकरियों, रोजगार और जमीन की सुरक्षा के लिए कानून बना सकती हैं। तब केंद्र सरकार ने ऐसा करने का वादा भी किया था, लेकिन छह साल बाद भी कोई हरकत नहीं हुई। मुस्लिम बहुल करगिल क्षेत्र के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के गठबंधन केडीए ने एलएबी की इस मांग का समर्थन किया है।

छह साल से भी ज्यादा समय से लेह और करगिल दोनों के लोग कई मांगों को लेकर सक्रिय हैं। उनमें संसदीय सीट की संख्या एक से बढ़ाकर दो करने और सरकारी पदों पर भर्ती के लिए स्थानीय लोक सेवा आयोग का गठन शामिल है।

लेह में मार्च मुख्य चौक से निकला था। जुलूस शांतिपूर्ण आगे बढ़ रहा था। मार्च में शामिल लोगों के मुताबिक, जुलूस भाजपा कार्यालय और एलएएचडीडीसी कार्यालय के करीब पहुंचा तो दोनों ओर तैनात पुलिस बल ने गोलियां दागनी शुरू कर दीं। उसी दौरान भगदड़ में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने भाजपा कार्यालय, एलएएचडीडीसी कार्यालय में तोड़फोड़ और आगजनी शुरू कर दी।

पुलिस के मुताबिक, उसे आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। बकौल पुलिस, 49 युवकों को हिरासत में लिया गया है, जिन पर दंगा-फसाद करने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप है। लेकिन, लोगों का कहना है कि उन्हें स्कूलों या अस्पतालों से पकड़ा गया, जहां वे वारदात के बाद लोगों का हालचाल जानने गए थे। अगले दिन वांगचुक को उनके गांव से गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर भड़काऊ बयानों के जरिए युवाओं को हिंसा के लिए उकसाने और राजद्रोह जैसे आरोप मढ़ दिए गए। मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं।

प्रदर्शन में शामिल कई लोगों के मुताबिक, पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने उन्हें मुख्य चौक से आगे बढ़ने से रोक दिया, जहां एलएएचडीडीसी का कार्यालय है। भीड़ पीछे हटने को तैयार नहीं थी, तो झड़प शुरू हो गई। उसके बाद आंसू गैस के गोले चलने लगे और गोलियां दागी जाने लगीं। कुछ युवकों को गोली लगी तो मामला संगीन हो उठा।

भीड ने लद्दाख स्थिति भाजपा कार्यालाय में आग लगा दी

भीड़ ने लद्दाख स्थिति भाजपा कार्यालाय में आग लगा दी

एसएनएम अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि ज्‍यादातर मरीज गोली लगने से जख्मी हैं, कम से कम दो की हालत काफी गंभीर है। अस्पताल के एक डॉक्टर ने कहा, ‘‘मरीजों के शरीर के ऊपरी हिस्से में गोलियां लगी हैं। दो की आंतों और फेफड़ों में गोली लगी थी।’’ एलएबी के सह-संस्थापक तथा उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे ने कहा कि बिना चेतावनी के अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं। उन्होंने बताया, ‘‘पुलिस या सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) पानी की बौछारें या भीड़ हटाने के दूसरे उपायों का इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन गोलियां और छर्रे चलाए गए। सीआरपीएफ को बाहर से बुलाया गया।’’

यह हिंसा लेह में एलएएचडीसी के चुनावों से कुछ दिन पहले हुई, जिसका कार्यकाल अक्टूबर में समाप्त हो रहा है। कई प्रदर्शनकारियों और एलएबी के सदस्यों ने कहा कि पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर सीधे गोलियां चलाईं, और कई युवाओं के शरीर के ऊपरी हिस्से में गोलियां लगीं। एसएनएम अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि उन्होंने सात-आठ लोगों की सर्जरी की, जिनके शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों में गोली लगी थी। मारे गए चारों युवकों के सीने और माथे में गोलियां लगीं। 

आखिर इस हिंसक वारदात के बाद गृह मंत्रालय ने एलएबी और केडीए के प्रतिनिधियों के साथ 6 अक्टूबर को उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक तय की। लेकिन, एलएबी और केडिए दोनों ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके कहा कि अब ऐसी बैठक बेमानी है। दोनों ही संगठनों ने बातचीत से पहले कई शर्तें रखी हैं। मसलन, हिंसा और पुलिस की गोलीबारी की जांच के लिए हाइकोर्ट के मौजूदा जज की अगुआई में समिति बनाई जाए, जो अदालती निगरानी में काम करे, सभी मृतकों के परिजनों और घायलों को उचित मुआवजा दिया जाए, बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के गोली चलाने वाले और उन्हें ऐसा करने का आदेश देने वाले अधिकारियों के खिलाफ फौरन कार्रवाई की जाए, सभी गिरफ्तार लोगों को छोड़ा जाए, वांगचुक और दूसरों पर से राजद्रोह के झूठे मुकदमे हटाए जाएं।

दोरजे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘‘हमारे पास प्रमाण है कि बिना आदेश के अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं। मौके पर मौजूद मजिस्ट्रेट लद्दाखी हैं और उन्होंने गोली चलाने का आदेश देने से इनकार किया है। फिर, ऐसे दसियों लोगों को शरीर के ऊपरी हिस्सोंे में गोली लगी है, जो नेपाल, डोडा, जम्मू, हिमाचल प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश के हैं और जो यहां काम के लिए आए हैं। वे सड़क चलते गोली के शिकार हो गए। इन्हीं लोगों को बाहरी बताकर सरकार बाहरी शक्तियों का झूठा इल्जाम मढ़ रही है।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘ऐसे दहशत के माहौल में बातचीत का क्या‍ मतलब है। बातचीत बंदूक की नोक पर नहीं होती।’’

उधर, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विरोध प्रदर्शन को ‘‘राजनीति से प्रेरित’’ बताया और आरोप लगाया कि वांगचुक ने ‘‘अरब स्प्रिंग और नेपाल में जेन-जेड विरोध प्रदर्शनों का जिक्र कर लोगों को गुमराह किया।’’

वांगचुक पर पाकिस्तान से रिश्ते के आरोप हैं क्योंंकि वे वहां के मशहूर डॉन अखबार के किसी कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे। दोरजे पूछते हैं, ‘‘मैं भी तो एक कार्यक्रम में पाकिस्तान गया था तो मैं भी पाकिस्तानी एजेंट हुआ!’’ वे डीजीपी के उस आरोप को हास्यास्पाद बताते हैं कि नेपाल से जेन जी के प्रतिनिधि आए थे। उनका कहना है, ‘‘ऐसे इल्जाम लगाकर और हिंसा तथा दमन का सहारा लेकर सरकार को हम अपनी जमीन छीनने के एजेंडे में कामयाब नहीं होने देंगे।’’

कई भाजपा नेताओं ने वांगचुक की आंदोलनकारी राजनीति पर सवाल उठाया है कि केंद्र सरकार लद्दाखी जनता की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार हैं, तो इसकी कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि लद्दाख की ओर से ही मांग थी कि इस क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए।

लद्दाख का राजनैतिक परिदृश्य बौद्ध-बहुल लेह और मुस्लिम-बहुल करगिल में बंटा है। ऐतिहासिक रूप से, लेह के लोग लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांगों में सबसे आगे रहे हैं। इसके विपरीत, करगिल के लोगों को लेह के प्रभुत्व को लेकर शिकायतें रही हैं। वहां केडीए प्रभावी भूमिका में है। लेकिन अब दोनों ही इलाकों की पार्टियों और संगठन एक मंच पर आ गए हैं।

दरअसल दोनों ही इलाकों के लोगों को डर है कि बाहरी निवेश से क्षेत्र के पर्यावरण को नुकसान होगा और बाहरी लोगों के आने से उनकी नौकरियां, रोजगार और संस्कृति बर्बाद हो जाएगी। ये आशंकाएं इसलिए उठ रही हैं कि इस शीत रेगिस्तान में धूप सीधी और प्रचूर मात्रा में आती है, जो सौर ऊर्जा के लिए आदर्श है। खबरें हैं कि अदाणी समूह अपनी सौर परियोजना के लिए उसे मुफीद मान रहा है। लेकिन इस रेगिस्तान में बौद्ध स्तूप और मठ बिखरे पड़े हैं, जहां हरियाली बहुत कम है और उद्योग भी कम हैं। फिलहाल यहां पर्यटन ही अर्थव्यवस्था की बुनियाद है। यहां के लोग पर्यावरण को लेकर खास संवेदनशील है और ज्यादातर मिट्टी के खूबसूरत घरों में ही रहना पसंद करते हैं।

पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध को लेकर सोनम वांगचुक पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है। उकसाऊ बयान देने की बातें भी गलत हैं: गीतांजलि, सोनम वांगचुक की पत्नी

पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध को लेकर सोनम वांगचुक पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है। उकसाऊ बयान देने की बातें भी गलत हैं: गीतांजलि, सोनम वांगचुक की पत्नी

इसलिए मौजूदा घटनाक्रम से सरकार के प्रति लोगों की शंकाएं बढ़ गई हैं। एसएनएम अस्पताल में भर्ती ऑटोमोबाइल स्पेयर पार्ट्स की दुकान चलाने वाले 33 वर्षीय थिनलेस के पैर में गोली लगी है। थिनलेस पूछते हैं, ‘‘हम क्या मांग रहे थे, बेहतर विकास? और नतीजा क्या हुआ? हम पर गोलियां चलाई गईं। पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भीड़ पर सीधे गोली चलाने की इजाजत किसने दी? अब वे वांगचुक को दोषी ठहरा रहे हैं। आप जानते हैं कि वे किस तरह के नेता हैं, जो लोगों की परवाह करते हैं और चाहते हैं कि क्षेत्र का विकास हो। बाहरी लोग कौन होते हैं जो हमें बताएं और शर्तें थोपें?’’

थिनलेस कहते हैं कि युवा अपनी नौकरी, रोजगार और जमीन की रक्षा के अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। गिरफ्तार युवकों का मुकदमा लड़ रहे वकीलों में एक मोहम्मद रमजान बताते हैं कि लगभग 40 लोग अभी भी हिरासत में हैं, जिनमें कुछ को अब न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। वे कहते हैं, ‘‘इन मामलों का कोई आधार नहीं है और इनमें ज्यादातर वे युवक हैं, जो प्रदर्शन में शामिल ही नहीं थे।’’

क्षेत्र के कई बौद्ध और मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने भी आंदोलन को समर्थन दिया है, जिनमें अंजुमन-ए-मोइन-उल-इस्लाम और लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन लेह शामिल हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की जरूरत है ताकि यह तय हो सके कि वे अपने ही इलाके में अल्पसंख्यक न बन जाएं। इस क्षेत्र में नौकरियां अभी भी कम हैं।

64 वर्षीय ताशी अंगदुआ कहते हैं, ‘‘स्थानीय आबादी कुछ लाख लोगों की ही है और हमें डर है कि अगर बाहरी लोग यहां आकर बस गए तो हम अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इससे हमारा रोजगार छिन जाएगा, नौकरियां बाहरी लोगों के जिम्मे चली जाएंगी। यहां पहले से ही रोजगार बहुत कम है।’’ साथ ही वे यह भी कहते हैं कि क्षेत्र के लोग अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा को लेकर भी चिंतित हैं।

दोरजे कहते हैं, ‘‘सरकार हमें बता रही हैं कि यह कुछ राष्ट्र-विरोधी तत्वों का काम था। लेकिन युवाओं ने भाजपा के कार्यक्रम स्थल पर तिरंगा नहीं जलाया।’’ वे वांगचुक पर विदेशी चंदा लेने के आरोपों के समय पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, ‘‘सरकार कह रही है कि विरोध में विदेशी हाथ है, लेकिन विरोध प्रदर्शन से पहले वह क्या कर रही थी? लद्दाख में गैर-स्थानीय लोगों की आमद देखी गई है।’’

बहरहाल, हमेशा शांत और अपने में मगन रहने वाले लद्दाखी लोगों के लिए यह नया संघर्ष है। पर्यावरण कार्यकर्ता वांगचुक अब प्रतिरोध की आवाज बन गए हैं। यह संघर्ष यह भी जाहिर करता है कि कोई भी विकास स्थानीय लोगों को ध्यान में रखकर ही सहज और समावेशी हो सकता है।


 

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TAGS: demonstration, statehood and inclusion, sixth schedule, vandalized, ladakh
OUTLOOK 13 October, 2025
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