जेएनयू घटना बताती है कि पुलिस का हो चुका है राजनीतिकरण
नागरिकता (संशोधन) कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी हालिया घटनाओं ने ऐसी जनधारणाओं को जन्म दिया है कि हमारी पुलिस सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव में रहती है। उत्तर प्रदेश और जामिया मिलिया में उसके कठोर उपायों और 5 जनवरी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में उसकी भूमिका को इसके सबूत के तौर पर देखा जा सकता है।
जेएनयू मामले में पुलिस जानकारी देने से बचती रही
विदेशी मीडिया ने भी इस बात को माना कि गृहमंत्री की "प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ सामंजस्य" बैठाने में कमी के चलते ही जेएनयू हिंसा के बाद छात्रों के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए। उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस आयुक्त के कंधों पर राजधानी की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी थी, बावजूद इसके उन्होंने मीडिया को रोजमर्रा की स्थिति की जानकारी देने के बजाय बचने की ही कोशिश की। जिस अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के कैंपस में नकाबपोश गुंडों द्वारा हिंसा की अभूतपूर्व घटना हुई, उसके लिए ऐसा लग रहा था कि वे उच्च राजनीतिक लोगों से कोई इशारा लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि मामले को किस तरफ ले जाया जाए।
विदेशों में सक्षम हैं अधिकारी
इसकी तुलना में, विदेशों में जूनियर अधिकारी मीडिया के जरिए कानून और व्यवस्था और अपने अधिकार क्षेत्र की प्राकृतिक आपदा की घटनाओं की जानकारी जनता को देते हैं। वे आतंकवादी घटनाओं, स्कूल हमलों, बाढ़, भूकंप और जंगल में आग लगने तक की जानकारी देते हैं। वे किसी उच्च स्तर के दबाव का इंतजार नहीं करते। तथ्यों को जुटाकर इसकी जानकारी आगे बढ़ा दी जाती है।
आखिर क्यों इंटरनेट और सोशल मीडिया पर पाबंदी
लेकिन हमारे यहां प्रशासन ने इस तरह की पारदर्शिता शुरू करने के बारे में नहीं सोचा है। हम मीडिया से बातचीत करने के लिए स्थानीय अधिकारियों को मजबूत नहीं करते, बेशक उनके पास कानूनी रूप से संबंधित पोर्टफोलियो के साथ चार्ज ही क्यों न हो। इससे जनता में संदेह पैदा होता है कि सरकार सच्चाई छिपा रही है और अफवाह को बढ़ावा मिलता है। तथ्यों को उजागर किए बिना इंटरनेट या सोशल मीडिया को रोकने जैसे कदम उठाना भी प्रशासन में विश्वास को कम करता है, जैसा कि हम अब करते हैं।
न्यूयॉर्क में 2010 की घटना का मैं गवाह हूं, जब स्थानीय पुलिस (एनवाईपीडी) ने आतंकवादी हमले पर मीडिया को जानकारी दी थी। पाकिस्तानी नागरिक फैसल शहजाद ने डिवाइस के माध्यम से एक मई को न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर पर करीब 7 बजे बमबारी करने का प्रयास किया। नाकाम होने पर वह भाग गया। सीसीटीवी की गलत तरह से व्याख्या की गई थी। 2 मई की सुबह एनवाईपीडी के पास हमले पर रात भर के पाकिस्तानी तालिबान के दावे के साथ इसे समेटने में कठिन समय था। फिर भी वे मीडिया को यह बताने में लगे रहे कि उन्हें क्या पता था। फैसल को 3 मई को रात 11 बजे कैनेडी एयरपोर्ट से पाकिस्तान भागने की कोशिश के दौरान पकड़ लिया गया था। जानकारी एकत्र होते ही प्रत्येक चरण के बारे में मीडिया को बताया गया।
जरूरत है भरोसेमंद संस्थानों को मजबूत करने की
अगर हम पांच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के साथ एक प्रमुख लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में विकसित होना चाहते हैं, तो हमें अपने संविधान का पालन करने वाले भरोसेमंद संस्थानों का मजबूत करना है, न कि केवल राजनीतिक दलों का पालन करना है। अमेरिका केवल आंतरिक और बाह्य मामलों में सक्षम है, क्योंकि उनके सभी संस्थान मौजदूा खंडित राजव्यवस्था के बावजूद, स्थापित कानून और प्रक्रिया के अनुसार कार्य करते हैं।
यह इजराइल पर भी लागू होता है, जो भारत में कई लोगों के लिए रोल मॉडल है। लेकिन बहुत से लोग यह नहीं जानते कि उनकी पुलिस घरेलू राजनीति के बावजूद स्वतंत्र है। लाहव 433 ने भ्रष्टाचार के लिए पद पर रहते हुए भी अपने सभी शीर्ष नेताओं की जांच की थी जिसमें राष्ट्रपति एज़र वीजमैन (1993-2000), प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (1996 -1999), एहुद बराक (1999-2001), एरियल शेरोन (2001-2006) और एहुद ओलमर्ट (2006-2009) शामिल हैं। क्या हम कभी भारत में होने वाली ऐसी घटना की कल्पना कर सकते हैं?
(लेखक कैबिनेट सचिवालय में स्पेशल सेक्रेटरी रह चुके हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)