देश में रोजाना निकलता है 25,000 टन प्लास्टिक कचरा, इसका 40 फीसदी बिखरा रह जाता है
भारत में रोजाना 25 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसका 40 फीसदी हिस्सा इकट्ठा नहीं हो पाता और जहां-तहां फैला रहता है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने शुक्रवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि साबुन-शैंपू जैसे एफएमसीजी प्रोडक्ट के कारण प्लास्टिक के इस्तेमाल में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे प्लास्टिक कचरा प्रबंधन मैनेजमेंट एक बड़ी चुनौती बन गया है।
एएफएमसीजी से बढ़ा प्लास्टिक कचरा
जावड़ेकर ने कहा कि “प्लास्टिक लंबे समय तक चलने वाला मटेरियल है, मजबूत है और कीमत में कम है। यही वजह है कि यह सभी उद्योगों में यह भरोसेमंद पैकेजिंग मटैरियल के रूप में इस्तेमाल होता है। इससे प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ रहा है और कचरा प्रबंधन में इसका निस्तारण चुनौती बन रहा है।
प्लास्टिक का विकल्प खोजना चुनौती
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि प्लास्टिक एक सस्ता विकल्प है और इसी लागत में पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाला दूसरा मटेरियल खोजना चुनौती का काम है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा भारत के 60 प्रमुख शहरों में अध्ययन किया था। अध्ययन में पाया गया कि इन शहरों से प्रति दिन लगभग 4,059 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इन्हीं 60 शहरों के आंकड़ों के आधार पर यह आकलन किया गया है कि पूरे देश में रोजाना 25,940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से 60 फीसदी यानी 15,384 टन प्लास्टिक का ही रोजाना इकट्ठा हो पाता है और उसकी रिसाइक्लिंग की जाती है। बाकी 10,556 टन प्लास्टिक रोजाना फैला रह जाता है। देश में इस समय 4,773 रजिस्टर्ड प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग/रिसाइक्लिंग यूनिट हैं।
2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक का लक्ष्य
जावड़ेकर ने बताया कि प्लास्टिक से खाद या बायोडिग्रेडेबल तकनीक के लिए अनुसंधान और विकास के संबंध में केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (सीपैट) द्वारा एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया है। सरकार का लक्ष्य स्वच्छ भारत अभियान के तहत 2022 तक एकल उपयोग प्लास्टिक से देश को मुक्त करना है। सरकार ने 50 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैग के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।