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23 January 2018

आउटलुक एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव: इनोवेशन से खेती को फायदेमंद बनाने पर चर्चा

Outlook

'आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड इनोवेशन अवॉर्ड्स' एक पहल है, जिसमें किसानों की आय बढ़ाने के लिए कोऑपरेटिव, बेहतर मार्केटिंग, फार्म मैकेनाइजेशन और फसल सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा हुई।

साथ ही अपने-अपने क्षेत्र में नया इनोवेशन करने वाले किसानों, महिला उद्यमी और कृषि वैज्ञानिक सहित कुल 9 भागीदारों को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह 'आउटलुक एग्रीकल्चर इनोवेशन अवॉर्ड्स' देकर सम्मानित किया।

इस दौरान कृषि संबंधित मुद्दों, चुनौतियों की चर्चा हुई। आउटलुक के सम्पादक हरवीर सिंह ने देश भर से आए किसानों, वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों का स्वागत करते हुए कहा कि कितनी भी मुुश्किलेें क्यों न हो, हमें कोशिश कर रास्ता निकालना चाहिए। ग्रामीण आबादी को सपने देखना नहीं छोड़ना चाहिए। ये संभव भी हुआ है। एक समय हम कहां थे, आज हम काफी आगे आए हैं। फूड सिक्योरिटी के मामले में हालात अब सुधरे हैं। आर्थिक उदारीकरण के बाद निवेश, सर्विस सेक्टर में ग्रोथ हुआ लेकिन इतने बड़े कृषि क्षेत्र में वृद्धि के बगैर सुधार नहीं हो सकता। इस समय 2 फीसदी वृद्धि दर कृषि क्षेत्र में है। जब तक किसानों की आमदनी में बढ़ोत्तरी नहीं होगी अर्थव्यवस्था में वृद्धि संभव नहीं। ग्रामीण क्षेत्र और शहरी इलाकों में स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा हो सकें, इस पर नीति निर्धारकों को काम करना होगा।

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कॉन्क्लेव की शुरुआत करते हुए स्वराज ट्रैक्टर्स के सीओओ विरेन पोपली ने थीम एड्रेस दिया। उन्होंने कहा- फूड सिक्योरिटी के क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर हुए हैं। किसान की आय दोगुनी करने से बड़ी चुनौती किसानों का लाभ बढ़ाना है। पहले विविधता थी, आमदनी होती रहती थी। आज ज्यादातर लोग एक ही फसल में फंसे हुए हैं। 

पहला सेशन:

विषय- टैपिंग कोऑपरेटिव सेक्टर फॉर डब्लिंग फार्मर्स इनकम

कॉन्क्लेव के पहले सत्र में भारत सरकार के कृषि सचिव एस के पटनायक, नीति आयोग में स्पेशल सेल ऑन लैंड पॉलिसी के चेयरमैन डॉक्टर टी हक, अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आर एस सोढ़ी, एनसीडीसी के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर डीएन ठाकुर और स्वराज डिवीजन के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट, सेल्स एंड मार्केटिंग राजीव रेलन ने हिस्सा लिया। सत्र का संचालन 'आउटलुक' के संपादक हरवीर सिंह ने किया।

सवाल-जवाब:

हरवीर सिंह: पटनायक जी, सरकारी क्षेत्र के योगदान के बारे में हम जानते हैं। लेकिन हम देखते हैं कि आज सहकारिता थोड़ी सुस्त है। इसके महत्व को आप किस तरह देखते हैं।

एस के पटनायक: भारत में कृषि में सहकारिता का काफी योगदान है। सहकारी संस्थाओं का आउटरेज काफी है। कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट के तहत किसान संगठन बना सकते हैं। किसी चीज को साथ मिलकर खरीद सकते हैं। एफपीओ भी हमारे देश में अच्छे रूप में काम कर रहे हैं।

हरवीर सिंह: हक साहब, जो बदलता स्वरूप है उसमें सहकारी संस्थाओं का क्या रोल है?

टी हक:  जब तक किसानों का कोऑपरेटिव नहीं होगा, वो एक होकर मार्केट में नहीं जाएंगे, वो कहीं के नहीं रहेंगे। उनका समूह बनाना जरूरी है। लोग सोचते थे कि कोऑपरेटिव का कुछ नहीं होगा लेकिन ऐसा नहीं है। चुनौती यह है कि इनकी संख्या फिलहाल बहुत कम है। इतने बड़े देश में जितने किसान हैं, जिस तेजी से इनकी संख्या बढ़नी चाहिए, वैसे बढ़ नहीं रही।

हरवीर सिंह: सोढ़ी जी, अमूल बेहतरीन सहकारिता का उदाहरण बन गया है। आप अपने अनुभव से बताएं कि बाकी लोग ऐसा कैसे कर सकते हैं और आप कैसे कर रहे हैं?

आर एस सोढ़ी: हम आज इसलिए इकट्ठा हुए हैं कि किसानों की आमदनी कैसे बढ़े। भारत जब आजाद हुआ तब शहर में आमदनी थोड़ी ही ज्यादा थी, ज्यादा अंतर नहीं था। लेकिन आज इनकम में काफी अंतर हो गया है।

प्रोडक्शन खूब हो रहा है लेकिन किसान को भाव नहीं मिल रहा। दूध में यही स्थिति 1970 में थी। भारत दूध आयात करता था। बाद में सहकारिता और कोऑपरेटिव मॉडल में उनके हाथ में मार्केटिंग आई। आज प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन, ब्रांडिग की जरूरत है। आज गुजरात, पंजाब, बिहार में दूध का 80-85 फीसदी किसान की जेब में जाता है। कई कोऑपरेटिव को मिलकर अपना स्ट्रक्चर बनाना होगा।

हरवीर सिंह: डी एस ठाकुर जी, एफपीओ और कोऑपरेटिव दोनों को आप कैसे देखते हैं?

डीएन ठाकुर: मां तो सहकारिता ही है। शुरूआत यहीं से हुई है क्योंकि जब सिस्टम नहीं था तब भी लोग सहयोग से ही काम करते थे। मूल भावना सहकारिता की ही है। एफपीओ नए जनरेशन का को-ऑपरेटिव है। मैं एनसीडीसी का अनुभव बताऊं तो हम एक फाइनेंसियल संस्था हैं, जो कोऑपरेटिव को लोन देते हैं। कोऑपरेटिव सबसे सफल मॉडल है क्योंकि हमने जितना भी पैसा लोन में दिया, वह वापस आया है। हमें नुकसान नहीं हुआ है। उन्होंने कमाकर ही तो हमें वापस किया होगा लेकिन कोऑपरेटिव में भी इनोवेशन की जरूरत है। मैं मानता हूं, एफपीओ और कोऑपरेटिव में कंपटीशन नहीं है।

अमूल की तरफ से सोढ़ी जी ने कहा- कस्टमर इसलिए आपका प्रोडक्ट नहीं खरीदता कि आप कोऑपरेटिव हैं। लीडरशिप और परफेक्शनिज्म चाहिए। अमूल भी छोटी सी कोऑपरेटिव थी। डॉक्टर वर्गीज कुरियन एक प्रोफेशनल थे। उन्होंने पाश्चराइजर खरीदने को कहा क्योंकि दूध खराब हो जाता है। कई लोग इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन अगर आप लीडर हैं तो उस तरह का समर्पण चाहिए। आज कोऑपरेटिव में मैनेजमेंट के लोग काम नहीं करना चाहते। छोटी जगहों पर होते हैं। अमूल के पास लीडरशिप और प्रोफेशनल थे।

सेशन के अंत में किसानों से बातचीत हुई और उनके सवालों के जवाब दिए गए।

दूसरा सेशन:

विषय- सस्टेनेबल फार्म मैकेनाइजेशन फॉर इंक्रीजिंग फार्मर्स इनकम

दूसरे सेशन में पैनलिस्ट के तौर पर डॉ. त्रिलोचन महापात्र (डायरेक्टर जनरल, आईसीएआर, सेक्रेटरी, डीएआरआई), पंजाब के एग्रीकल्चर कमिश्नर बीएस सिद्धू, स्वराज डिविजन के सीनियर वीपी राजीव रेलन ने भाग लिया।

सवाल-जवाब:

सवाल: मैकेनाइजेशन को प्रमोट करने ने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

त्रिलोचन महापात्रा: मैकेनाइजेशन या यांत्रिकीकरण का फायदा निश्चित तौर पर हुआ है। इससे समय से काम होने लगा है। 20 फीसदी तक लागत कम हुई है और प्रोडक्टिविटी बढ़ी है। मैकेनाइजेशन से यह फायदा है कि इससे युवाओं का खेती की तरफ रुझान बढ़ता है क्योंकि युवा हाथ से काम नहीं करना चाहता। इससे बेरोजगारी घटाने में मदद मिलेगी।

सवाल: सिद्धू जी, मैकेनाइजेशन से पंजाब को कैसे लाभ पहुंचा है?

बीएस सिद्धू: इसकी वजह से क्षमता बढ़ी है। हर खेत में दो से ज्यादा फसल पैदा हो सकती हैं। धान की रोपाई को छोड़कर सारा काम मशीनों से हो रहा है। साथ ही अवसर भी बढ़े हैं।

सवाल: मैकेनाइजेशन का किस तरह इस्तेमाल हो। क्या यह एक चुनौती है?

सिद्धू: देखिए, असल में मैकेनाइजेशन से ज्यादा ट्रैक्टराइजेशन हुआ है। 65 फीसदी ट्रैक्टर से ही काम होता है। इसकी वजह से ठेके पर खेती हो रही है। जुताई की लागत बढ़ी है। जैसे-जैसे फसल की गहनता बढ़ती है ज्यादा मशीनों की जरूरत पड़ती है।

सवाल: इस पर आप क्या सोचते हैं, रेलन जी?

राजीव रेलन: चीन में खेती के विकास में छोटी-छोटी मशीनों का योगदान ज्यादा है। हमारे यहां ट्रैक्टर पर ही फोकस ज्यादा रहा। लेबर की समस्या है। पूरी तरह मैकेनाइजेशन से ही प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी।

सवाल: मशीनों पर पूरी तरह निर्भरता कहां तक सही है? रिसर्च मॉडल और लैंड होल्डिंग के क्षेत्र में क्या होना चाहिए?

त्रिलोचन महापात्रा: हमारे यहां 85 फीसदी किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। मैं ट्रैक्टराइजेशन वाली बात से असहमत हूं। ट्रैक्टर अच्छा उत्पादन कर रहे हैं। ट्रैक्टराइजेशन सिर्फ हरियाणा, पंजाब में हुआ है। उसे पूरे देश में लागू नहीं करना चाहिए। हर किसान को ट्रैक्टर खरीदना नहीं चाहिए। मशीनों में सिर्फ ट्रैक्टर ही नहीं हैं। दूसरी मशीनें भी मिल रही हैं। छोटे किसानों को छोटी मशीनें खरीदनी चाहिए।

समस्या यह है कि हमारे यहां बड़े-बड़े मैन्यफैक्चरर नहीं आ रहे हैं। साथ ही सोलर एनर्जी जैसी चीजें कैसे इस्तेमाल हों, इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

सवाल: सही टेक्नोलॉजी और डिजाइन को कैसे प्रमोट किया जाए?

राजीव रेलन: टेक्नोलॉजी मौजूद है लेकिन बेल्टवाइज उसकी पहुंच नहीं है। ट्रैक्टर मूल जरूरत है लेकिन सिर्फ इससे किसान कुछ नहीं कर सकता। हमारा फोकस बेसिक चीजों को पहुंचाने में होना चाहिए। फाइनेंस करने की सुविधा होनी चाहिए। किसानों में जानकारी की कमी है। वे पूरी क्षमता से टेक्नोलॉजी को अपना नहीं पा रहे हैं। पॉलिसी मेकिंग में बदलाव की जरूरत है।

सवाल: पॉलिसी में क्या बदलाव किए जाने चाहिए?

सिद्धू: असल में कोई नीति ही नहीं है। केंद्र और राज्यों की अलग-अलग नीतियां हैं। एक नीति बनानी होगी। ट्रेनिंग, कैपेसिटी बिल्डिंग की जरूरत है।

सवाल: पोस्ट हार्वेस्टिंग के लिए हम क्या कर रहे हैं?

रेलन: पंजाब में पोस्ट हार्वेस्टिंग पर ध्यान दिया जा रहा है। स्वराज डिवीजन की तरफ से भी इस पर काम हुआ है।

महापात्रा: यह कहना गलत है कि सरकार की कोई नीति नहीं है। सबसे ज्यादा आज नीतियों का फायदा पंजाब को हुआ है। 32 लाख किसानों को ट्रेनिंग दी गई है। काफी मशीनरी लाई गई है। पीपीपी मॉडल में सुधार हुआ है।

तीसरा सेशन:

विषय- इम्पॉर्टेंस ऑफ क्रॉप प्रोटेक्शन एंड पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट

तीसरे सत्र में इम्पॉर्टेंस ऑफ क्रॉप प्रोटेक्शन एंड पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट विषय पर पैनलिस्ट के बीच चर्चा हुई। इसमें एके सिंह (डीडीजी हॉर्टिकल्चर, आईसीएआर), अडानी एग्रोफ्रेश के सीईओ अतुल चतुर्वेदी, एचडीएफसी अर्गो के बालाचंद्रन एमके, यूपीएल के एग्जिक्यूटिव चेयरमैन आरडी श्रॉफ विशेषज्ञ के तौर पर शामिल हुए।

आरडी श्रॉफ ने कहा कि भारत का किसान छोटा है, लेकिन प्रति एकड़ उत्पादन उनका अधिक है। उन्होंने तकनीक अपनाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत के किसानों को इंफ्रास्ट्रक्चर दे दीजिए, वो अपनी आमदनी खुद बढ़ा लेगा।

एके सिंह ने कहा कि हम कृषि में पोस्ट हार्वेस्टिंग की तो बात करते हैं, लेकिन प्री-हार्वेस्टिंग पर चर्चा तक नहीं करते। जबकि इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। वहीं, अडानी एग्रोफ्रेश के सीईओ अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि हमारे नीति-निर्धारकों में माइंडसेट बदलने की जरूरत है। आज भी 1960 के कानून लागू होते हैं। हमारे यहां कोल्ड चेन की कमी नहीं है। कमी कनेक्टिविटी की है। उन्होंने कहा कि एसेंशियल कॉमोडिटी एक्ट पर भी सवाल उठाए।

एचडीएफसी अर्गो के बालाचंद्रन एमके ने फसलों की बीमा संबंधित दिक्कतों के बारे में बताया। प्रधानमंत्री बीमा योजना है लेकिन उससे आगे बढ़ने की जरूरत है। फसल बीमा को एरिया बेस्ड अप्रोच से निकालकर फार्मर्स बेस्ड अप्रोच की तरफ ले जाना चाहिए। 

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TAGS: Outlook, agriculture and innovation awards, agriculture minister radha mohan singh
OUTLOOK 23 January, 2018
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