'मन की बात' में बोले मोदी- एक बेटी 10 बेटों के बराबर, जानिए अहम बातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिए अपनी बात रखी। पीएम ने कहा कि हर क्षेत्र में हमारी नारी-शक्तियों ने समाज की रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए असाधारण उपलब्धियां हासिल की, एक कीर्तिमान स्थापित किया है।
पीएम ने बताया कि तीन बहादुर महिलाएं भावना कंठ, मोहना सिंह और अवनी चतुर्वेदी फाइटर पायलेट बनी हैं और सुखोई विमान उड़ाने का प्रशिक्षण ले रही हैं।
पढ़िए, कुछ अहम बातें-
पीएम ने कहा, 'मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार। 2018 की यह 'पहली मन की बात' है और दो दिन पूर्व ही हमने गणतन्त्र पर्व को बहुत ही उत्साह के साथ और इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि 10 देशों के मुखिया इस समारोह में उपस्थित रहे।'
उन्होंने कहा, 'आज श्रीमान प्रकाश त्रिपाठी ने नरेंद्र मोदी ऐप पर एक लम्बी चिट्ठी लिखी है। उन्होंने लिखा है कि 1 फरवरी को कल्पना चावला की पुण्यतिथि है। कोलंबिया अंतरिक्षयान दुर्घटना में वह हमें छोड़ कर चली गई लेकिन दुनिया भर के युवाओं को प्रेरणा दी गई। मैं भाई प्रकाश का आभारी हूं कि उन्होंने चिट्ठी की शुरुआत कल्पना चावला की विदाई से की है। यह सबके लिए दुख की बात है कि हमने कल्पना चावला जी को इतने कम उम्र में खो दिया. लेकिन उन्होंने अपने जीवन से संदेश दिया कि नारी शक्ति के लिए कोई सीमा नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'आज हम 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' की बात करते हैं लेकिन सदियों पहले हमारे शास्त्रों में, स्कन्द-पुराण में कहा गया है कि एक बेटी 10 बेटों के बराबर होती है. प्रकाश जी ने और भी कई उदाहण दिए हैं। चाहे वैदिक काल की विदुषियां लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्रेयी की विद्वता हो या अक्का महादेवी और मीराबाई का ज्ञान और भक्ति हो, चाहे अहिल्याबाई होलकर की शासन व्यवस्था हो या रानी लक्ष्मीबाई की वीरता, नारी शक्ति हमेशा हमें प्रेरित करती आई है।'
तीन बहादुर महिलाएं भावना कंठ, मोहना सिंह और अवनी चतुर्वेदी फाइटर पायलेट बनी हैं और सुखोई विमान उड़ाने का प्रशिक्षण ले रही हैं। हर क्षेत्र में हमारी नारी-शक्तियों ने समाज की रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए असाधारण उपलब्धियां हासिल की, एक कीर्तिमान स्थापित किया। मुंबई का माटुंगा स्टेशन भारत का ऐसा पहला स्टेशन है जहां सभी कर्मचारी महिलाएं हैं।
गणतंत्र दिवस की परेड देखने के बाद कई लोगों ने बीएसएफ की महिला विंग के बारे में खासतौर पर लिखा है, जिन्होंने बाइक पर करतब दिखाए हैं। आज हमारी नारियां शक्ति नेतृत्व के रूप में आगे रही हैं। छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा इलाक़ा, जो माओवाद-प्रभावित क्षेत्र है। हिंसा, अत्याचार, बम, बन्दूक, पिस्तौल- माओवादियों ने इसी का एक भयानक वातावरण पैदा किया हुआ है। ऐसे ख़तरनाक इलाक़े में आदिवासी महिलाएं, ई-रिक्शा चला कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
हम बार-बार सुनते आए हैं कि लोग कहते हैं ‘कुछ बात है ऐसी कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। वो बात क्या है। वो बात है, लचीलापन। अभी कुछ दिन पहले बिहार में सामाजिक कुरीतियों खिलाफ जागरुकता फैलाने के लिए 13 हजार किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला बनाई गई। इसमें बाल विवाह और दहेज जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ लोगों को जागरुक किया गया।
प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना के पीछे उद्देश्य है- स्वास्थ्य सुविधाओं को वहन करने के योग्य बनाना. जन-औषधि केन्द्रों पर मिलने वाली दवाएं बाज़ार में बिकने वाली दवाइयों से लगभग 50-90% तक सस्ती हैं. सस्ती दवाइयां प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि केन्द्रों,अस्पतालों के ‘अमृत स्टोर’ पर उपलब्ध हैं।
मुझे पता चला कि अकोला के नागरिकों ने ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत मोरना नदी को साफ़ करने के लिए स्वच्छता अभियान का आयोजन किया था। इस नेक कार्य में अकोला के छह हज़ार से अधिक नागरिकों, सौ से अधिक एनजीओ, छात्र, बच्चे, बुजुर्ग, माताएं-बहनें हर किसी ने इसमें भाग लिया। इससे साबित होता है कि अगर कोई इंसान ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है।
आपको जानकर गर्व होगा कि अब आम आदमियों को पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने लगे हैं। हमने बीते 3 सालों में इन पुरस्कारों को देने की प्रक्रिया में बदलाव किया है। आपने देखा होगा कि जो लोग किसी टीवी चैनल, अखबार में दिखाई नहीं देते हैं या फिर बहुत चर्चित नहीं उनको इन पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है।
आपने अरविंद गुप्ता जी का नाम सुना होगा जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों के खिलौने बनाने में लगा दिए। इसी तरह मध्य प्रदेश के भज्जूश्याम के बारे में, वे जीवन यापन के लिए सामान्य नौकरी करते थे लेकिन उनको पारम्परिक आदिवासी पेंटिंग बनाने का शौक था। आज इसी शौक की वजह से इनका भारत ही नहीं, पूरे विश्व में सम्मान है।
30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य-तिथि है, जिन्होंने हम सभी को एक नया रास्ता दिखाया है। उस दिन हम 'शहीद दिवस' मनाते हैं। अगर हम संकल्प करें कि बापू के रास्ते पर चलें -जितना चल सके, चलें तो उससे बड़ी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है।