चीफ जस्टिस बोले, कानूनी सहायता बड़ा मुद्दा, वकीलों की गुणवत्ता में सुधार की जरूरत
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि देश में कानूनी सहायता एक बड़ा मुद्दा है। देश में 67 फीसदी कैदी विचाराधीन हैं। इनमें 47 फीसदी 18-30 उम्र के हैं। यानी युवा कैदियों की संख्या ज्यादा है। इसके लिए वकीलों की गुणवत्ता को सुधारने की जरूरत है।
शनिवार को चीफ जस्टिस गोगोई ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के इवेंट में कहा कि देश में करीब 13 से 14 लाख वकील होंगे जो कि ज्यादा नहीं है। यूएस में हर 200 लोगों पर एक वकील है जबकि भारत में 1800 पर एक। भारत में वकीलों की संख्या को बढ़ाना होगा।
चीफ जस्टिस ने कहा कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक मोर्चे पर लगातार लोगों की सक्रियता बढ़ रही है, इसलिए हमें और अधिक मामलों को सुलझाने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि मामलों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ वकीलों और जनसंख्या अऩुपात में और अधिक अंतर आएगा। इस मामले में बार काउंसिल को आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
'जैसा हूं वैसा रहूंगा'
इससे पहले एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था, 'मैं जो हूं वैसा ही रहूंगा और मैं खुद को बदलने वाला नहीं हूं।' उन्होंने कहा था कि कैसे वह न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाएंगे और रिक्त स्थानों को भरेंगे खासतौर से निचली अदालतों को। आने वाले 3-4 महीनों में रिक्त स्थानों को भरने की पूरी कोशिश करेंगे। समय कम है और इसमें बेहतर परिणाम हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
3 अक्टूबर को संभाला था पदभार
जस्टिस रंजन गोगोई ने 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के 46वें चीफ जस्टिस के तौर पर पदभार संभाला है। जस्टिस गोगोई इस पद पर पहुंचने वाले नार्थ ईस्ट इंडिया के पहले चीफ जस्टिस हैं। जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के ऐसे पहले चीफ जस्टिस हैं, जिनके पिता मुख्यमंत्री रहे। पिता केशब चंद्र गोगोई असम में कांग्रेसी नेता थे और वर्ष 1982 में मुख्यमंत्री भी रहे हैं।