अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दोहराया, कहा- इसके "राष्ट्रीय चरित्र" को देखते हुए नहीं हो सकता अल्पसंख्यक संस्थान
75 साल पहले के विवाद की ताजा सुनवाई में केंद्र सरकार ने मंगलवार (9 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट में दोहराया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अपने "राष्ट्रीय चरित्र" को देखते हुए अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है। इस मामले में कानून के सवालों पर बहस हो रही है कि क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एक शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है, और क्या संसदीय कानून द्वारा स्थापित केंद्रीय वित्त पोषित विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में नामित किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार, 9 जनवरी से मामले पर सुनवाई शुरू की। शीर्ष अदालत में दायर अपने लिखित आवेदन में, केंद्र ने कहा है कि एएमयू अपने "राष्ट्रीय चरित्र" को देखते हुए अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है। इसमें कहा गया है कि एएमयू किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।
पीठ ने यह भी कहा कि एएमयू अधिनियम के तहत "विश्वविद्यालय" की एक नई परिभाषा डालने के लिए संसद द्वारा 1981 में किए गए संशोधन 1967 के मामले के फैसले का आधार नहीं छीन सकते, अगर इसने अधिनियम में मूलभूत परिवर्तन नहीं किए, जिसकी व्याख्या अदालत ने की थी। यह नियम बनाने के लिए कि एएमयू न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित किया गया था। शीर्ष अदालत को इस मामले पर अभी फैसला सुनाना बाकी है।