तीस्ता सीतलवाड को SC से राहत, गुजरात HC के आदेश पर एक सप्ताह के लिए लगाई रोक
आखिर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ से राहत मिली है। तीन जजों की स्पेशल बेंच ने देर रात चली सुनवाई के बाद तीस्ता सीतलवाड़ को आत्मसमर्पण करने के हाईकोर्ट के आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी।
2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित रूप से सबूत गढ़ने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने आज तीस्ता की नियमित ज़मानत खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने उन्हें तुरंत सरेंडर करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता को जमानत देने के साथ ही शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले पर भी रोक लगा दी है।
गुजरात सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वकील थे। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि एक जस्टिस ने हाई कोर्ट में आदेश दिया और हफ्ते भर का प्रोटेक्शन नही दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम प्रोटेक्शन दिया था। इसे एक हफ्ते के लिए एक्सटेंड करना आदर्श स्थिति है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा ये साधारण केस नही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा 8 दिन अंतरिम प्रोटेक्शन बढाने में क्या दिक्कत हैं। कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी।
गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि किसी व्यक्ति को ज़मानत को चुनौती देने के लिए 7 दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह इतने लंबे समय से बाहर है। तुषार मेहता ने कहा, 'इस मामले को जिस सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है, ये उससे कहीं ज्यादा संगीन है।'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित की गई थी और जिसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की है। गवाहों ने एसआईटी को बताया कि सीतलवाड़ ने उन्हें बयान दिया था और उनका फोकस एक विशेष पहलू पर था जो ग़लत पाया गया। सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि सीतलवाड ने झूठे हलफनामे दायर किए।
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच के सामने तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि अंतरिम प्रोटेक्शन देने को लेकर दोनों जजों के बीच एक मत नहीं है। हम चीफ जस्टिस को आग्रह करते हैं कि मामले की सुनवाई के लिए केस लार्जर बेंच रेफर किया जाए। मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया। मामले में दोनों के विपरीत मत आने के बाद मामला लार्जर बेंच को सौंपा गया।