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10 February 2020

सबरीमला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तय किए 7 सवाल, नौ जजों की संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई

File Photo

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उसकी पांच जजों की पीठ सबरीमला मामले में पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र के तहत अपनी सीमित शक्ति का इस्तेमाल करते हुए कानून के प्रश्नों को बड़ी पीठ को भेज सकती है। चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था संबंधी मामलों पर सात प्रश्न तैयार किए हैं, जिनकी सुनवाई नौ जजों की संवैधानिक पीठ करेगी।

मामले  में सुनवाई 17 फरवरी से सुप्रीम कोर्ट में शुरू होगी जो प्रतिदिन की जाएगी। इसके अलावा विभिन्‍न धर्मों में धार्मिक स्‍वतंत्रता को लेकर सवाल निश्चित किए गए हैं जिनकी सुनवाई होनी है। नौ सदस्यीय पीठ संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और विभिन्न धार्मिक पंथों के अधिकारों के बीच उसकी भूमिका पर भी विचार करेगी।

पंथ विशेष से अलग भी क्या कोई उठा सकता है कोई सवाल

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पीठ धार्मिक परंपराओं के संबंध में न्यायिक समीक्षा की सीमा और अनुच्छेद 25(2)(बी) में उल्लिखित ‘हिन्दुओं के वर्गों’ से तात्पर्य के बारे में भी विचार करेगी। यही नहीं, कोर्ट इस बात पर भी विचार करेगा कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी धर्म या धार्मिक पंथ विशेष का सदस्य नहीं होते हुए भी उस धर्म से जुड़ी धार्मिक आस्थाओं पर जनहित याचिका के माध्यम से सवाल उठा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों को यह सूचित करने का निर्देश दिया कि वे किसका प्रतिनिधत्व कर रहे हैं और इसी के बाद पीठ उन्हें बहस के लिए समय आवंटित करेगी। पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता 17 फरवरी को बहस शुरू करेंगे और उनके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन बहस करेंगे। नौ सदस्यीय संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एम एम शांतानागौडर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।

पहले पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा था मामला

विभिन्न धर्मों में महिलाओं के साथ पक्षपात से संबंधित मुद्दों को पिछले साल 14 नवंबर  को तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बड़ी पीठ को सौंपा था। इस पीठ ने सबरीमला मामले के साथ ही मस्जिदों और दरगाहों में महिलाओं के प्रवेश और गैर-पारसी व्यक्ति से विवाह करने वाली पारसी महिला को अज्ञारी के पवित्र अग्नि स्थल पर प्रवेश से वंचित करने की परंपरा से जुड़े मुद्दे बड़ी पीठ के पास भेजे थे ताकि धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामलों के बारे में एक न्यायिक नीति तैयार की जा सके। इससे पहले, सितंबर, 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4-1 के बहुमत से केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने संबंधी व्यवस्था खत्म करते हुए इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था।

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OUTLOOK 10 February, 2020
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