‘शहाबुद्दीन को बिहार के बाहर किसी जेल में भेजें’
उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह पटना उच्च न्यायालय का शहाबुद्दीन को हत्या के एक मामले में जमानत देने का फैसला रद्द करते हुए कहा था कि रिहा करने के विवेक का इस्तेमाल सामान्य तरीके से नहीं बल्कि न्यायपूर्ण तरीके से होना चाहिए।
शहाबुद्दीन को बिहार के बाहर किसी जेल में स्थानांतरित करने के लिए न्यायालय में अपील सिवान के चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू ने दायर की है जिनके तीन बेटे दो अलग-अलग घटनाओं में मारे गए। उनका आरोप है कि बिहार की जेलों में शहाबुद्दीन को बंद करने के बाद भी उसे जेलों के नियम-कानूनों का उल्लंघन करने से नहीं रोका जा सका और जेल प्रशासनों की मिलीभगत से वह सजा से एक तरह से मुक्त रहा।
अपील में कहा गया है याचिकाकर्ता अपने तीसरे पुत्र की हत्या का प्रत्यक्षदर्शी गवाह है जिसे प्रतिवादी संख्या तीन (शहाबुद्दीन) ने मारा क्योंकि वह अपने दो भाइयों की हत्या का प्रत्यक्षदर्शी गवाह था। तीसरे पुत्र की हत्या के मामले में सुनवाई अभी लंबित है। प्रसाद की ही याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने शहाबुद्दीन की जमानत रद्द की। उनकी अपील का बिहार सरकार ने भी समर्थन किया था और विवादित राजद नेता को जमानत देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अलग अपील भी दायर की थी।
अपील में कहा गया कि जब शहाबुद्दीन बिहार में है तब तक लंबित मामलों की न केवल निष्पक्ष सुनवाई होना बहुत मुश्किल है बल्कि याचिकाकर्ता और अन्य मामलों के गवाहों की जान को भी खतरा है। आगे अपील में कहा गया है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ कम से कम 75 मामले दर्ज हैं जिनमें से दस मामलों में उसे दोषी ठहराया जा चुका है और कम से कम 45 मामलों की सुनवाई चल रही है।
अपील के अनुसार जिन दस मामलों में उसे दोषी ठहराया गया है उनमें से दो में वह उम्र कैद की और एक मामले में 10 साल के सश्रम कारावास की सजा काट रहा है। लंबित 45 मामलों में से कम से कम 21 मामले वह हैं जिनमें अधिकतम सात साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है। इनमें से नौ मामलों में उस पर हत्या का और चार में हत्या के प्रयास का आरोप है।(एजेंसी)