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04 June 2018

आडवाणी और शरद यादव ने मनाया जॉर्ज फर्नांडिस का जन्मदिन, ताजा की पुरानी यादें

ANI

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी और संजय गांधी के नाक में दम करने वाले समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस का 3 जून (रविवार) को 88वां जन्मदिन था। इस मौके पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और जदयू नेता शरद यादव ने उनके घर जाकर उन्हें शुभकामनाएं दीं।

साथ ही आडवाणी ने कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस जैसे ‘बागी नेताओं’ की जरूरत हमेशा रहती है, क्योंकि कोई भी देश उनके बिना प्रगति नहीं कर सकता। आडवाणी ने जार्ज फर्नांडिस के जन्मदिन पर उन पर आधारित एक वेबसाइट के लांच के मौके पर यह बात कही। दिल्ली स्थित आवास पर बीमार चल रहे इस नेता से मिलने के बाद आडवाणी ने कहा कि वह एक शानदार व्यक्ति हैं।

आडवाणी ने वेबसाइट ‘जॉर्ज फर्नांडिस डॉट ओआरजी’ के लांच के बाद कहा, ‘मैं कई वर्षों तक संसद में उनके साथ रहा। वह शानदार व्यक्ति हैं। बागी नेताओं की हमेशा जरूरत होती है। उनके बिना कुछ नहीं होता।’

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शरद यादव ने केक के साथ ट्विटर पर फोटो शेयर की और लिखा, 'श्री जॉर्ज फर्नांडिस जी का 88वां जन्मदिन उनके परिवार के साथ उनके आवास पर मनाया तथा उन्हें शुभकामनाएं दीं।'

जानें जॉर्ज फर्नांडिस की 10 बड़ी बातें

1. भारतीय संसद की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इनका जन्म मैंगलोर में 3 जून 1930 को हुआ।

2. जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार हैं- हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन। उनकी मां किंग जॉर्ज फिफ्थ की बड़ी प्रशंसक थीं। उन्हीं के नाम पर अपने छह बच्चों में से सबसे बड़े का नाम उन्होंने जॉर्ज रखा।

3. मंगलौर में पले-बढ़े फर्नांडिस जब 16 साल के हुए तो एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजे गए पर चर्च में पाखंड देखकर उनका उससे मोहभंग हो गया। उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और रोजगार की तलाश में बंबई चले आए।

4. जॉर्ज खुद बताते हैं कि इस दौरान वे चौपाटी की बेंच पर सोया करते थे और लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक जबरदस्त विद्रोही की थी। उस वक्त मुखर वक्ता राम मनोहर लोहिया, फर्नांडिस की प्रेरणा थे।

5. 1950 आते-आते वे टैक्सी ड्राइवर यूनियन के बेताज बादशाह बन गए। बिखरे बाल, और पतले चेहरे वाले फर्नांडिस, तुड़े-मुड़े खादी के कुर्ते-पायजामे, घिसी हुई चप्पलों और चश्मे में खांटी एक्टिविस्ट लगा करते थे। कुछ लोग तभी से उन्हें ‘अनथक विद्रोही’ (रिबेल विद्आउट ए पॉज) कहने लगे थे। जंजीरों में जकड़ा उनकी एक तस्वीर इमरजेंसी का एक तरह से सिंबल बन गई थी।

6. देश में जब 1967 के लोकसभा चुनाव हुए तो वे बंबई के एक कद्दवार नेता के खिलाफ उतरने की तैयारी कर डाली और उस समय के बड़े कांग्रेसी नेताओं में से एक एसके पाटिल को बॉम्बे साउथ की पर हरा दिया। इस सीट पर जैसे ही उन्होंने पाटिल को हराया तो लोग उन्हें ‘जॉर्ज द जायंट किलर’ कहकर बुलाने लगे।

7. धीरे-धीरे समय आगे चलता रहा और जॉर्ज फर्नांडिस राजनीति के अखाड़े में मजबूत होते गए। सन् 1973 में फर्नांडिस ‘ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन’ के चेयरमैन चुने गए। इंडियन रेलवे में उस वक्त करीब 14 लाख लोग काम किया करते थे और सरकार रेलवे कामगारों की कई जरूरी मांगों को कई सालों से दरकिनार कर रही थी। ऐसे में जॉर्ज ने आठ मई, 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का आह्वान किया और रेल का चक्का जाम हो गया। कई दिनों तक रेल का संचालन ठप रहा।

8. इसके बाद जब जनता पार्टी में टूट हुई तो जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी का गठन किया और भाजपा का समर्थन किया।

9. जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल तीन मंत्रालयों का कार्यभार संभाला- उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय। पर वे इनमें से किसी में भी बहुत सफल नहीं रहे। कोंकण रेलवे के विकास का श्रेय उन्हें भले जाता हो, लेकिन उनके रक्षा मंत्री रहते हुए परमाणु परीक्षण और ऑपरेशन पराक्रम का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही दिया गया।

10. वैसे तो रक्षामंत्री के रूप में जॉर्ज का कार्यकाल खासा विवादित रहा। ताबूत घोटाले और तहलका खुलासे में उनके संबंधों को खूब तूल दिया गया। पर बाद में मामले में जॉर्ज फर्नांडिस को अदालत से तो क्लीन चिट मिल गई थी।

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TAGS: Sharad yadav, lal krishna advani, george fernandes, 88th birthday
OUTLOOK 04 June, 2018
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