सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा- राजद्रोह कानून का हो रहा दुरुपयोग
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि पिछले कुछ सालों से राजद्रोह से संबंधित कानून का काफी दुरुपयोग हुआ है। जस्टिस गुप्ता ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘पिछले कुछ सालों में जिस तरह राजद्रोह से संबंधित धारा 124ए का दुरुपयोग हुआ है उससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या हमें इसके बारे में फिर से विचार करने की जरूरत है।‘ उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना करने से कोई भी व्यक्ति कम देशभक्त नहीं हो जाता। जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, देशविरोधी नारे लगाना राजद्रोह नहीं है।
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में कई ऐसे मामले हुए हैं, जहां राजद्रोह या सौहार्द्र बिगाड़ने के कानून का पुलिस ने जमकर दुरुपयोग किया है और उन लोगों को गिरफ़्तार करने और अपमानित करने के लिए इनका इस्तेमाल किया है जिन्होंने राजद्रोह के तहत कोई अपराध नहीं किया है।’
‘स्वतंत्रता के अधिकार की ज्यादा अहमियत’
उन्होंने कहा कि संवैधानिक अधिकार होने के नाते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की राजद्रोह के कानून से ज्यादा अहमियत होनी चाहिए। जस्टिस गुप्ता अहमदाबाद में प्रेलेन पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में ‘लॉ ऑफ सेडिशन इन इंडिया एंड फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ विषय पर वकीलों को संबोधित कर रहे थे।
‘कोई स्वस्थ चर्चा नहीं होती’
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘बातचीत करने की कला खुद ही खत्म हो रही है, अब कोई स्वस्थ चर्चा नहीं होती, कोई भी मुद्दों और सिद्धांतों की वकालत नहीं करता और केवल चिल्लाना और गाली-गलौच ही होती है।’
‘किसी से अलग राय रखने का अधिकार’
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ‘दुर्भाग्य से यह आम बात है कि अगर आप मुझसे सहमत नहीं हैं तो या तो आप मेरे दुश्मन हैं और या इससे भी बद्तर आप देश के दुश्मन हैं, देशद्रोही हैं।’ न्यायमूर्ति ने कहा, ‘असहमति का अधिकार हमारे संविधान के द्वारा हमें दिया गया सबसे अहम अधिकार है। जब तक कोई व्यक्ति कानून नहीं तोड़ता है या किसी संघर्ष को बढ़ावा नहीं देता है या नहीं उकसाता है तब तक उसे हर दूसरे नागरिक से अपनी राय अलग रखने का अधिकार है।’
‘सोशल मीडिया पर ट्रोल होने का डर’
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘लोकतंत्र का सबसे अहम पहलू यह है कि लोगों को सरकार का कोई डर नहीं होना चाहिए। उन्हें ऐसे विचार रखने में कोई डर नहीं होना चाहिए जो सत्ता में बैठे लोगों को पसंद नहीं हों। दुनिया रहने के लिए बहुत खूबसूरत होगी अगर लोग बिना डर के अपनी बात रख सकेंगे और उन्हें इस बात का डर नहीं होगा कि उन पर मुक़दमा चलाया जायेगा या उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जायेगा।’
न्यायमूर्ति गुप्ता ने बताया कि राजद्रोह का कानून भारत में ब्रिटिश शासन में लाया गया था और इसका मकसद यह था कि बागियों की आवाज को चुप करा दिया जाए।
क्या है राजद्रोह कानून
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 (ए) के तहत उन लोगों को गिरफ्तार किया जाता है जिन पर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने का आरोप होता है। यह कानून ब्रिटिश सरकार ने 1860 में बनाया था और 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया था।