सुप्रीम कोर्ट ने 1996 की पेंशन योजना लागू न करने पर पंजाब के मुख्य सचिव को अवमानना नोटिस भेजा
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के मुख्य सचिव को राज्य में तीन दशक पुरानी पेंशन लाभ योजना को लागू करने में विफल रहने पर बुधवार को अवमानना नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि अदालत को गुमराह नहीं किया जा सकता। पीठ ने मुख्य सचिव से जवाब मांगा कि वचनबद्धता के उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए।
अदालत ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को बार-बार दिए गए आश्वासन के बावजूद राज्य सरकार द्वारा अनुपालन नहीं किया गया है। इसलिए हम पंजाब के मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए उनसे यह बताने को कह रहे हैं कि क्यों न उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 (दीवानी और आपराधिक दोनों) के तहत कार्रवाई शुरू की जाए।’’
पीठ ने कहा कि यदि अधिकारी को लगता है कि कोई अन्य अधिकारी दोषी है, तो वह ‘‘हलफनामा दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं’’ जिसमें वह जिम्मेदार अधिकारियों के नाम या अन्य विवरण दें, ताकि अदालत कार्रवाई शुरू कर सके। इस मामले में अगली सुनवाई 24 मार्च को होगी।
पीठ ने पंजाब के लोक शिक्षण निदेशक (महाविद्यालय) कार्यालय के उपनिदेशक को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा कि झूठा हलफनामा दायर करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए।
सुनवाई के दौरान पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने पीठ को आश्वासन दिया कि अगली तारीख पर वह योजना के कार्यान्वयन के संबंध में कुछ सकारात्मक जानकारी लेकर आएंगे।
अदालत ने मुख्य सचिव से स्पष्ट शब्दों में जवाब देने को कहा कि क्या राज्य सरकार इस योजना के तहत लाभ देने को तैयार है। अदालत ने इसके साथ ही अवमानना कार्रवाई की भी चेतावनी दी।
शीर्ष अदालत रजनीश कुमार और अन्य द्वारा पंजाब निजी प्रबंधित संबद्ध और पंजाब सरकार सहायता प्राप्त कॉलेज पेंशन लाभ योजना, 1996 का कार्यान्वन न होने के संबंध में दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। चूंकि योजना का क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा था, इसलिए निर्देश के लिए पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं।
उच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार को न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत कार्रवाई से मुक्त कर दिया, क्योंकि राज्य सरकार ने यह वचन दिया था कि योजना 15 जून, 2002 तक प्रकाशित और क्रियान्वित कर दी जाएगी। इसके बाद मामला उच्चतम न्यायालय ले जाया गया।