सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, अदालत से बाहर सुलझाएं अयोध्या विवाद
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने मध्यस्थता का भी प्रस्ताव दिया। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने सुझाव दिया कि विवाद के पक्ष इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक सार्थक और गंभीर बातचीत के लिए थोड़ा देने और थोड़ा लेने का रुख अपनाएं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 2010 में उत्तर प्रदेश में स्थल के विवादित 2. 77 एकड़ क्षेत्र को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा था कि जमीन तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटी जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के धार्मिक मुद्दे बातचीत के जरिये ही सर्वश्रेष्ठ तरीके से सुलझा सकते हैं। पीठ ने कहा कि ये धर्म और भावनाओं से जुड़े मुद्दे हैं। ये ऐसे मुद्दे है जहां विवाद को खत्म करने के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठना चाहिए और सर्वसम्मति से कोई निर्णय लेना चाहिए। आप सभी साथ बैठ सकते हैं और सौहार्दपूर्ण बैठक कर सकते हैं। पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसके कौल भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की। स्वामी ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दीवानी अपील पर फैसला सुनाए जाने के बाद इस मामले को छह साल से भी ज्यादा समय हो गया है और इस पर जल्द से जल्द सुनवाई किए जाने की जरुरत है।
सांसद ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों से बात की थी जिन्होंने विवादित विषय में न्यायिक फैसले का समर्थन किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सर्वसम्मति से किसी समाधान पर पहुंचने के लिए आप नए सिरे से प्रयास कर सकते हैं। अगर जरूरत पड़े तो आपको इस विवाद को खत्म करने के लिए कोई मध्यस्थ भी चुनना चाहिए। अगर दोनों पक्ष चाहते हैं कि मैं उनके द्वारा चुने गये मध्यस्थों के साथ बैठूं तो मैं इसके लिए तैयार हूं। यहां तक कि इस उद्देश्य के लिए मेरे साथी न्यायाधीशों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अगर दोनों पक्ष चाहें तो वह प्रधान वार्ताकार भी नियुक्त कर सकता है। इसके बाद पीठ ने स्वामी से कहा कि वे दोनों पक्षों से सलाह करें और 31 मार्च तक उनके फैसले के बारे में सूचित करें। (एजेंसी)