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09 July 2018

धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिका पर SC कल से करेगा सुनवाई, कोर्ट ने ठुकराई केंद्र की याचिका

file photo

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई मंगलवार से करेगा। इस मामले में सुनवाई कुछ समय के लिए स्थगित करने वाली केंद्र की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। बता दें कि केंद्र ने सुनवाई स्थगित करने की मांग की थी और कुछ और समय मांगा था।

न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक, धारा 377 की सुनवाई को लेकर केंद्र ने कुछ और समय मांगा था लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका को ठुकराते हुए कल यानी मंगलवार से इस मामले पर सुनवाई शुरू करेगा।

 

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जस्टिस मिश्रा ने कहा कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस मामले में सरकार को हलफनामा दाखिल करना है जो इस केस में महत्वपूर्ण हो सकता है। इस वजह से केंद्र ने अपील की थी कि केस की सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी जाए।

 

इससे पहले, चीफ जस्‍टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने वाले अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया था।

 

जस्‍टि‍स मिश्रा ने कहा था, 'हमारे पहले के आदेश पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है'। अदालत ने यह आदेश 12 अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर दिया था, जिसमें कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। इन याचिकाकर्ताओं में सेलिब्रिटीज, आईआईटी के छात्र और एलजीबीटी एक्टिविस्ट हैं।

क्या है धारा 377

- धारा-377 इस देश में अंग्रेजों ने 1862 में लागू किया था। इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैरकानूनी ठहराया गया है।

- अगर कोई स्‍त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।

- किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है।

- सहमति से अगर दो पुरुषों या महिलाओं के बीच भी संबंध इस कानून के दायरे में आता है।

- इस धारा के अंतर्गत अपराध को संज्ञेय बनाया गया है। इसमें गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार के वारंट की जरूरत नहीं होती है।

- शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है।

- धारा-377 एक गैरजमानती अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट ने ही दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश को किया था रद्द

दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट ने नाज फाउंडेशन के मामले में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में शामिल मानने की आइपीसी की धारा 377 के उस अंश को रद कर दिया था जिसमें दो बालिगों के बीच एकांत में बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था। लेकिन हाईकोर्ट के बाद जब मामला सुप्रीम कोर्ट आया तो सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने धारा 377 को वैध ठहराते हुए हाईकोर्ट का आदेश रद कर दिया था।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो न्यायाधीशो के फैसले पर जताई थी असहमति

अगस्त 2017 में निजता के फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने धारा 377 को वैध ठहराने के दो न्यायाधीशो के फैसले से असहमति जताते हुए कहा था कि उस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गए निजता के संवैधानिक अधिकार को नकारने आधार सही नहीं था। सिर्फ इस आधार पर तर्क नहीं नकारा जा सकता कि देश की जनसंख्या का बहुत छोटा सा भाग ही समलैंगिक हैं जैसा की कोर्ट के फैसले में कहा गया।

कोर्ट ने कहा था कि किसी भी अधिकार को कम लोगों के प्रयोग करने के आधार पर नहीं नकारा जा सकता। सेक्सुअल ओरिन्टेशन के आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव बहुत ही आपत्तिजनक और गरिमा के खिलाफ है। निजता और सैक्सुअल पसंद की रक्षा संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार के केंद्र में है। इसका संरक्षण होना चाहिए।

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TAGS: Supreme Court, hear petitions, challenging, Section 377, tomorrow, refuses, adjourn, the hearing
OUTLOOK 09 July, 2018
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