सुप्रीम कोर्ट के इन ऐतिहासिक फैसलों की वजह से याद रहेगा 2018
साल 2018 कई मायनों में खास रहा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दिए गए फैसले के लिहाज से यह साल यादगार रहेगा। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे ऐतिहासिक फैसले दिए जिसका राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इनमें से ज्यादातर फैसले रूढ़िवादिता और टैबू को तोड़ने वाले रहे। चाहेसमलैंगिकता मामला या फिर एडल्ट्री का मुद्दा या सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा- सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसले दिए वे बेहद चर्चित रहे। वहीं, अन्य तमाम फैसलों का लोगों से सीधा सरोकार रहा है, जिनमें आधार कार्ड से जुड़ा मामला भी शामिल है। आइए, जानते हैं कि इस साल सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कौन-कौन से फैसले दिए जिनका सीधा आपसे सरोकार रहा है।
समलैंगिकता मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है। इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने गैर-संवैधानिक करार दिया है और इसे समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की संवैधानिक बेंच ने अपने 493 पेज के फैसले में एकमत से फैसला दिया था कि बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को धारा-377 के तहत अपराध मानना अतार्किक और साफ तौर पर मानमाना प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 158 साल पुराने इस कानून के कारण एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोग तिस्कृत हुए हैं। धारा-377 का उक्त प्रावधान गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्शुअल ओरिएंटेशन बायोलॉजिकल तथ्य हैं। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
आधार की संवैधानिकता को बररकरार रखा
26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आधार मामले में ऐतिहासिक फैसले में आधार के संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में आधार की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बैंक अकाउंट से आधार को लिंक करना अनिवार्य नहीं होगा। बहुमत से 4 जजों ने फैसले में कहा था कि आधार न तो बैंक अकाउंट के लिए और न ही मोबाइल कनेक्शन के लिए अनिवार्य होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्कूल में दाखिले के लिए भी आधार जरूरी नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार किसी भी शख्स के निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है। सुप्रीम कोर्ट ने 4 बनाम 1 के बहुमत के फैसले से कहा था कि आधार इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने और पैन के लिए अनिवार्य बना रहेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में आधार ऐक्ट की धारा-57 को खारिज कर दिया जिसके तहत प्राइवेट कंपनी और कॉरपोरेट को बायोमेट्रिक डेटा को लेने और इस्तेमाल की इजाजत दी गई थी।
प्रमोशन में आरक्षण
26 सितंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित मामले में 2006 में नागराज से संंबधित वाद में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए फैसले को 7 जजों को रेफर करने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी-एसटी प्रमोशन में आरक्षण से पहले पिछड़ेपन का डेटा एकत्र करने की जरूरत नहीं है। नागराज के जजमेंट में पिछड़ेपन के डेटा एकत्र करने के साथ-साथ ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि नागराज जजमेंट के अन्य पहलू में दखल की जरूरत नहीं है, ऐसे में प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होगा। इस फैसले के बाद सरकार के लिए प्रमोशन में आरक्षण देने का रास्ता साफ हो गया लेकिन सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी।
नागराज जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सीलिंग लिमिट 50 फीसदी, क्रीमीलेयर के सिद्धांत को लागू करने, पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए डेटा एकत्र करने और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में देखना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ेपन का डेटा एकत्र करने की शर्त हटा दी है। इसके बाद अब सरकार के लिए एससी एसटी को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ देने का रास्ता साफ हो गया है।
राफेल मामले मेें सुप्रीम कोर्ट से सरकार को राहत
राफेल लड़ाकू विमान के खरीद के मामले में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से 14 दिसंबर को बड़ी राहत मिली। राफेल खरीद प्रक्रिया और इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में सरकार द्वारा भारतीय कंपनी को फेवर किए जाने के आरोपों की जांच की गुहार लगाने वाली तमाम याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि फैसला लेने की प्रक्रिया में कहीं भी कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील मामले में केस दर्ज कर कोर्ट की निगरानी में जांच की गुहार खारिज कर दी। आरोप लगाया गया था कि 58,000 करोड़ की डील में अनियमितताएं हुई हैं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने कहा था कि इस मामले में दाखिल याचिका में 3 मुख्य मुद्दा उठाया गया था, इसमें फैसला लेने की प्रक्रिया, इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव और कीमत का मुद्दा था। अदालत ने कहा कि जो दलीलें और तथ्य दलील सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे गए हैं, उसे डीटेल में सुना गया है और 36 राफेल डील के मामले में ऐसा कोई आधार नहीं है कि कोर्ट उसमें दखल दे। ऐसे में तमाम अर्जियां खारिज की जाती है।
अडल्टरी अब अपराध नहीं रहा
अडल्टरी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को गैरसंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अडल्टरी कानून महिला को पति का गुलाम और संपत्ति की तरह बनाता है। अदालत ने इसे गैरसंवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने एक मत से फैसला दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की 5 जजों की बेंच ने एकमत से दिए फैसले में अडल्टरी कानून यानी आईपीसी की धारा-497 को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये धारा मनमाना है और समानता के अधिकार का हनन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कहा कि ये कानून महिलाओं को पसंद करने के अधिकार से वंचित करता है। अभी तक के कानून के हिसाब से अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला से संबंंध बनाता था तो शादीशुदा महिला का पिता ऐसे संबंध बनाने वाले शख्स के खिलाफ आईपीसी की धारा-497 के तहत केस दर्ज किया जा सकता था। लेकिन पति की सहमति हो तो फिर उसकी पत्नी से संबंध बनाने पर तीसरे शख्स के खिलाफ केस दर्ज नहीं हो सकता था। अदालत ने कहा कि मानवीय सेक्शुअलिटी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण पहलू है। सेक्शुअल चाइस अधिकार है। शारीरिक अंतरंगता पसंद को जाहिर करता है। मानवीय व्यक्तित्व से सेक्शुअलिटी को अलग नहीं कर सकते है। मानवीय गरिमा स्वायत्तता और सेक्शुअल चॉइस को मान्यता देता है। सेक्शुअल चॉइस को थोपा नहीं जा सकता बल्कि ये खुद की पसंद है। इस तरह देखा जाए तो 497 महिला के सेक्शुअल चॉइस यानी मौलिक चॉइस को छीनती है। क्योंकि शादी के बाद पति की सहमति पर सबकुछ निर्भर करता है। धारा-497 सेक्शुअल ऑटोनमी का आदर नहीं करती है।
सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को मिली प्रवेश की इजाजत
अपने ऐतिहासिक फैसले में 28 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने 4 बनाम 1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा था कि 10 साल से लेकर 50 साल की उम्र की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश पर बैन लिंग के आधार पर भेदभाव वाली प्रथा है और ये हिंदू महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन करता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि धर्म एक जीवनशैली है और ये जीवन और देवत्व से जुड़ा हुआ है। चीफ जस्टिस ने कहा कि भक्ति को भेदभाव का विषय नहीं बनाया जा सकता। भगवान अयप्पा के अनुयायी अलग से पंथ का निर्माण नहीं कर सकते। जस्टिस नरीमन ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर के परंपरा के मुताबिक 10 साल से 50 साल की महिलाओं को बैन किया गया है। अनुच्छेद-25 व 26 जो धार्मिक स्वतंत्रता की बात करता है। सविधान के ये प्रावधान 10 साल से 50 साल की महिलाओं के बैन की परंपरा को सपॉर्ट नहीं करता है। किसी महिला को पूजा स्थल पर जाने से रोकना अनुच्छेद-25 का उल्लंघन है।
नाबालिग बच्चों को भी मिलेगा मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 5 सितंबर 2018 को रेप विक्टिम और ऐसिड अटैक विक्टिम के लिए बनाए गए कॉम्पेंसेशन स्कीम का लाभ पॉक्सो मामले में नाबालिग विक्टिम (लड़के और लड़की दोनों) को भी मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (नालसा) ने रेप विक्टिम और ऐसिड अटैक विक्टिम के लिए जो स्कीम बनाई है उसे पॉक्सो (प्रटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज) ऐक्ट मामले की सुनवाई करने वाले स्पेशल कोर्ट गाइडलाइंस के तौर पर इस्तेमाल करें ताकि इस स्कीम के तहत नाबालिग विक्टिम को मुआवजा दिया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक पॉक्सो कानून के तहत सरकार ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं बनाया है जिसके तहत स्पेशल कोर्ट विक्टिम को मुआवजा देने का निर्देश जारी कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबतक सरकार पॉक्सो कानून के तहत मुआवजा के लिए नियम तय नहीं करती तब तक नालसा द्वारा रेप विक्टिम के लिए बनाई गई स्कीम पॉक्सो मामले में गाइडलाइंस के तौर पर इस्तेमाल होगी।
इसके तहत गैंग रेप विक्टिम को अधिकतम 10 लाख रुपये मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है जबकि रेप विक्टिम को अधिकतम 7 लाख रुपये मुआवजा दिया जा सकेगा। महिला की जान जाने की स्थिति में 5 से 10 लाख रुपये मुआवजे का प्रावधआन किया गया है, जबकि गैंग रेप में 5 से 10 लाख, रेप विक्टिम को 4 से 7 लाख रुपये, अप्राकृतिक दुराचार के मामले में 4 लाख से 7 लाख रुपये मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। असॉल्ट के कारण गर्भपात की स्थिति में 2 से 3 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान किया गया है। अगर महिला रेप के कारण गर्भवती जो जाती है तो उसे 3 लाख रुपये से लेकर 4 लाख रुपये तक मुआवजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। जलाए जाने के कारण शारीरिक विकृति आने पर 7 से 8 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान किया गया है। ऐसिड विक्टिम को 7 से 8 लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
दहेज मामले में पति और उसके परिजनों को मिले सेफगार्ड को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया
दहेज प्रताड़ना मामले में पति व उनके परिजनों को मिले सेफगार्ड को खत्म कर दिया गया। पिछले साल के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने जहां दहेज प्रताड़ना मामला दर्ज होने के बाद मामले को परिवार कल्याण समिति के पास भेजने और तबतक गिरफ्तारी पर रोक का प्रावधान किया था, वहीं 14 सिंतबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने परिवार कल्याण समिति बनाए जाने और तबतक गिरफ्तारी पर रोक के प्रावधान को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये प्रावधान विधायी फ्रेमवर्क के बाहर है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब दहेज प्रताड़ना मामले में शिकायत के बाद मामला सीधे पुलिस के अधिकार क्षेत्र में चला गया है। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने पिछले साल 27 जुलाई 2017 को राजेश शर्मा से संबंधित वाद में कहा था कि दहेज प्रताड़ना के केस में सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुआई वाली बेंच ने दो जजों की बेंच के कमिटी बनाए जाने के प्रावधान को खत्म कर दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अब कहा कि पुलिस सीआरपीसी की धारा-41 और 41 ए के प्रावधान के तहत काम करे और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले पर अमल करे जिसमें कहा गया है कि 7 साल से कम सजा के प्रावधान वाले मामले में पुलिस तभी गिरफ्तारी करे जब इसके लिए पर्याप्त कारण हो और गिरफ्तारी का कारण बताए।
अयोध्या मामला संवैधानिक बेंच को रेफर नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में एक अहम फैसला सुनाया। 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है, के बारे में 1994 के फैसले को दोबारा विचार के लिए संवैधानिक बेंच भेजने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि मामला जमीन विवाद के तौर पर निपटाया जाएगा। मुस्लिम पक्षकारों ने कहा था कि अयोध्या के जमीन विवाद पर सुनवाई से पहले इस्माइल फारुखी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के जजमेंट के दोबारा परीक्षण की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने बहुमत से दिए फैसले में कहा कि मामले को संवैधानिक बेंच रेफर करने की जरूरत नहीं है और कहा कि अयोध्या जमीन विवाद मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर से होगी, जिसके बाद जनवरी के पहले हफ्ते के लिए मामले को सुनवाई के लिए रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से कहा था कि मामले का साक्ष्यों के आधार पर परीक्षण किया जाएगा न कि धार्मिक महत्व के आधार पर देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारुखी मामले में जो फैसला दिया गया था वह सीमित पहलू जमीन अधिग्रहण से संंबंधित मामले को लेकर था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामला जमीन विवाद का है और उक्त टिप्पणी का जमीन विवाद के फैसले से लेना देना नहीं है। चूंकि मामला अब संवैधानिक बेंच को रेफर नहीं हुआ, ऐसे में जमीन विवाद मामले की सुनवाई अब शुरू होगी।