पाकिस्तान खुफिया एजेंसी ISI के प्रमुख पहुंचे काबुल, भारत ने कहा- हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाएगा पाक जासूस
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई प्रमुख के काबुल दौरे से साफ हो गया कि किस कदर अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार में पाकिस्तान अपनी पैठ बढ़ाने की भरसक कोशिशें कर रहा है। यहां तक कि खबरों के मुताबिक़ पाकिस्तानी सेना पंजशीर पर कब्ज़ा जमाने में भी तालिबान के साथ मिलकर लड़ रही है।
आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद शनिवार को इस्लामाबाद से एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ काबुल पहुंचे। आईएसआई प्रमुख फैज़ हमीद तालिबान के कब्ज़े के बाद काबुल पहुंच कर तालिबानी नेतृत्व से मिलने वाले विश्व के पहले इस दर्जे के प्रतिनिधि हैं। इससे दो बातें बिल्कुल साफ हो जातीं हैं। एक पाकिस्तान की तालिबान सरकार में अपने हस्तक्षेप की हड़बड़ाहट और दूसरा हक्कानियों को खुला समर्थन. हालांकि पाकिस्तान की तरफ से दावा किया गया है कि फैज़ हमीद तालिबान के न्यौते पर काबुल पहुंचे हैं पर सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।
टोलो न्यूज ने बताया कि तालिबान द्वारा पाकिस्तान के जासूस और उनकी टीम को आमंत्रित किया गया था। इस यात्रा का समय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अटकलें लगाई जा रही हैं कि आईएसआई का तालिबान पर बड़ा प्रभाव है। प्रतिबंधित आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क का खूंखार आईएसआई मुख्य संरक्षक न केवल है, बल्कि आईएसआई बॉस समान रूप से क्वेटा शूरा के मुल्ला याकूब और मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच बढ़ते मतभेदों को हल करना चाहता है।
पाकिस्तान के जासूस ऐसे समय में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं, जब अफगानिस्तान में सरकार के गठन को लेकर तालिबान के शीर्ष नेतृत्व और हक्कानी नेटवर्क के बीच महत्वपूर्ण व्यस्त बातचीत चल रही है। भारत का मानना है कि तालिबान अब एक राजनीतिक गुट है लिहाज़ा वो हक्कानियों के इतिहास को देखते हुए पाकिस्तान के ज़्यादा दबाव में नहीं आना चाहेगा मगर पाकिस्तान अपना भरसक प्रयास ज़रूर करेगा।
इस बीच, अमेरिका ने लीक हुए दस्तावेजों के अनुसार, अफगानिस्तान में संकट के रूप में पाकिस्तान से आतंकी समूहों से लड़ने का आग्रह किया है। एक प्रमुख अमेरिकी मीडिया आउटलेट को लीक हुए दस्तावेजों और राजनयिक केबलों के एक सेट के अनुसार, राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिग्रहण के बाद आईएसआईएस-के और अल कायदा जैसे खूंखार आतंकवादी समूहों से निपटने में सहयोग करने के लिए चुपचाप इस्लामाबाद पर दबाव डाल रहा है।
डॉन अखबार ने शनिवार को अफगानिस्तान में तालिबान विद्रोहियों द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद हाल ही में वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच आदान-प्रदान किए गए राजनयिक संदेशों पर पोलिटिको द्वारा शुक्रवार को प्रकाशित एक समाचार के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की।
तालिबान के दिवंगत संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मोहम्मद याकूब और शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई, जिन्होंने अफगानिस्तान में 1996 और 2001 के बीच विद्रोहियों के आखिरी बार सत्ता में आने पर उप विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया था, की कथित तौर पर नई सरकार में प्रमुख भूमिकाएं होंगी।
सूत्रों के मुताबिक़ अफगानिस्तान में नई तालिबानी हुकूमत की पूरी रूपरेखा तय हो जाने के बावजूद अब सरकार का एलान तालिबान और हक्कानियों के बीच सरकार में हिस्सेदारी पर विवाद के चलते नहीं हो पा रहा है। साफ है इसीलिए आईएसआई प्रमुख काबुल पहुंचे हैं। इस बीच पंजशीर में तालिबान को टक्कर दे रहे रेज़िसटेन्स फ्रंट के नेता अमरुल्लाह सालेह ने पाकिस्तान पर पंजशीर के खिलाफ तालिबान का समर्थन करने का आरोप लगाया। यही नहीं अफगानिस्तान की पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल के प्रवक्ता रहे रहमतुल्लाह अंदार ने ट्वीट कर तालिबान को चेताया कि विदेशी मुल्कों से रिश्ते ज़रूर रखना चाहिए मगर पाकिस्तान और ईरान से संबंध खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि पाकिस्तान ने कभी भी अफगानिस्तान के नागरिकों के हित में कुछ नहीं किया।