Advertisement
23 April 2022

ट्रांसजेंडर: चुनौतियां अभी भी बेहिसाब

ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो ट्रांसजेंडर को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है और उनके प्रति समाज का रवैया भी असम्मान का रहता है। उन्हें अपने ही घर से निकाल दिया जाता है, अपने ही परिवार के लोग उन्हें छोड़ देते हैं। यह भेदभाव उनके जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाता है। वे उस प्रेम, सम्मान और मर्यादा से महरूम रह जाते हैं जिसके वे हकदार होते हैं। उनके साथ सामान्य लोगों से अलग व्यवहार किया जाता है, जबकि हमें यह समझने की जरूरत है कि वे भी आश्चर्यजनक रूप से संतुलित मनुष्य होते हैं।

ट्रांसजेंडर ने अपने साथ होने वाले इस भेदभाव का विरोध किया और अनेक बाधाएं दूर भी की हैं। ट्रांस समुदाय ने स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। बीते एक दशक में ट्रांसजेंडर आंदोलन में उल्लेखनीय प्रगति होने और महत्वपूर्ण कानूनी जीत मिलने के बावजूद उनके साथ भेदभाव खत्म नहीं हुआ। उनके साथ बड़े पैमाने पर शारीरिक हिंसा की घटनाएं भी होती हैं।

हाल ही ट्रांसजेंडर विजिबिलिटी डे के अवसर पर हमने ट्रांसजेंडर लीडरशिप कॉनक्लेव का आयोजन किया था। यह ट्रांसजेंडर समुदाय के उन प्रयासों की सराहना करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था जिन्होंने साहस दिखाया और आने वाली पीढ़ियों के लिए राह आसान की।

Advertisement

दुनिया की अनेक संस्कृतियों में लिंग के बारे में अलग-अलग मान्यताएं हैं। अमेरिका की मूल संस्कृति में ऐसे लोगों को, जिनका लिंग किसी स्त्री या पुरुष के समान नहीं है, उन्हें सामान्य मनुष्य और देवताओं के बीच का दर्जा दिया जाता है। पुराने हिंदू धर्मग्रंथों में भी हिजड़ा या किन्नर को दैवीय माना गया है और उन्होंने राज प्रासादों में सम्मानित सलाहकारों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ट्रांसजेंडर को अपनी असलियत स्वीकार करने के लिए काफी हिम्मत की जरूरत होती है। नालसा के फैसले में ट्रांस व्यक्तियों को कानूनी मान्यता दी गई तो समझा गया कि समाज इन लोगों के साथ समान व्यवहार करेगा और सभी जनसंचार माध्यमों के जरिए इसके प्रति जागरूकता फैलाई जाएगी। यह भी सोचा गया कि उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएंगे ताकि वे भी समाज में सम्मानजनक दर्जा प्राप्त कर सकें।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की एक खामी यह है कि यह स्किल के विकास को बढ़ावा नहीं देती है। कक्षा बढ़ने के साथ अनेक छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि समुदाय में एक अनुपयोगी वर्ग तैयार हो जाता है। ज्यादातर ट्रांस व्यक्ति इसी श्रेणी में आते हैं। स्किल आधारित शिक्षा से इस अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है। भारत में 14 वर्ष की उम्र तक के हर शख्स को शिक्षा पाने का अधिकार है। यह अधिकार ट्रांस व्यक्तियों को भी मिला हुआ है। इनके प्रति स्कूलों को संवेदनशील बना कर, शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों के साथ मिलकर ट्रांसजेंडर के अधिकारों को बढ़ावा देकर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा केंद्र और राज्यों के शिक्षा बोर्ड के जरिए ट्रांस व्यक्तियों को शिक्षित किया जा सकता है।

विभिन्न देशों और एक्टिविस्ट समूहों ने अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए लक्ष्य तय किए हैं। केरल में सहज इंटरनेशनल स्कूल जैसे प्रयास, दिल्ली यूनिवर्सिटी में 2014 में ट्रांसजेंडर छात्रों को दाखिले की अनुमति देना और मानबी बंदोपाध्याय का पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर महिला कॉलेज की पहली ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल बनना दिखाता है कि भारत में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन बदलाव हो रहे हैं। अनेक कॉलेज और विश्वविद्यालय अब छात्रों के लिए पहचान के तौर पर ट्रांसजेंडर का विकल्प भी दे रहे हैं।

स्वास्थ्य के मामले में ट्रांस व्यक्तियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनके साथ दुर्व्यवहार और भेदभाव की अनेक घटनाएं होती रहती हैं। इलाज से इनकार करना सबसे बड़ी समस्या है। उन्हें न सिर्फ परेशान किया जाता है, बल्कि कई बार उनके साथ शारीरिक हिंसा भी होती है। यह उनके लिए उचित स्वास्थ्य सेवा हासिल करने में बड़ी बाधा है। अस्पताल कर्मी और मेडिकल स्टाफ को भी नहीं मालूम होता है कि ट्रांसजेंडर के साथ कैसे बर्ताव किया जाए। इससे उनमें एचआइवी और दूसरी यौन संक्रमित बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। ट्रांसफॉर्मेशन से संबंधित इलाज के मामले में भी भेदभाव आम बात है। किसी की सर्जिकल अवस्था के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह का व्यवहार रोकने की जिम्मेदारी हर मेडिकल प्रोफेशनल की होनी चाहिए।

किसी ट्रांसजेंडर की कानूनी पहचान से ही उसकी नौकरी का सवाल जुड़ा होता है। वोट देने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाएं इत्यादि हासिल करने के लिए पहचान पत्र आवश्यक होते हैं। नौकरी में भेदभाव, काम की जगह पर उत्पीड़न, वेतन में असमानता, विधिक संसाधनों की कमी और विभिन्न कागजात का न होना ट्रांसजेंडर आबादी के लिए नौकरी मिलने में बड़ी बाधा होती है। इसलिए कार्यस्थल पर उत्पीड़न रोकने के साथ वहां मिलने वाली सुविधाओं पर समान अधिकार को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि ये लोग भी उत्पादक और स्वस्थ जीवन बिता सकें।

भारत में जाति भेदभाव मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए आज भी बड़ी चिंता का विषय है। किसी भी समुदाय के साथ जो ‘कलंक’ जुड़ा होता है उसकी वजह से न सिर्फ उसे अवसर कम मिलते हैं, बल्कि उन्हें स्वीकार्यता भी बड़ी मुश्किल से मिल पाती है। इसी का नतीजा है कि ट्रांसजेंडर को उचित स्कूली शिक्षा नहीं मिल पाती है। ऐसे में जीवन यापन के लिए देह व्यापार ही उनके पास एकमात्र रास्ता बच जाता है। इससे इनके यौन संक्रमित रोगों से ग्रसित होने का खतरा बढ़ जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ट्रांस समुदाय आज भी समाज के हाशिए पर खड़ा है। उन्हें मुख्यधारा में लाना बड़ी चुनौती है।

(लेखक पीएचडी चैम्बर के प्रेसिडेंट हैं। विचार निजी हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Magazine, transgender community, education health, Jobs, Pradeep Multani, Outlook Hindi
OUTLOOK 23 April, 2022
Advertisement