प्रधानमंत्री को परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट एक्का के गांव 'जारी' बुलाने के लिए जुटे हजारों लोग
रांची। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे झारखंड के अंतिम जिला गुमला के जारी गांव में रौनक है। यह सुदुरवर्ती गांव गुमला जिला मुख्यालय से भी करीब 80 किलोमीटर दूर है। मेले की तरह रौनक है, मंच के सामने पारंपरिक तीर धनुष लिये लोगों की कतार है, नागपुरिया गीत पर लोगों के थिरकने का क्रम जारी है। बिहार, बंगाल, झारखंड, ओडिशा या कहें पूर्वी क्षेत्र के एकमात्र परमवीर च्रक विजेता अलबर्ट एक्का का गांव है।
जारी में प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के लिए विभिन्न गांवों के हजारों लोग एकत्र हुए हैं। संभवत: देश में यह पहला मौका होगा कि प्रधानमंत्री को बुलाने के लिए इस तरह हजारों लोग जुटे। मौका था अलबर्ट एक्का के जन्मदिन का। शहरों में तो अल्बर्ट एक्का के जन्मदिन और शहादत पर प्रतिमाओं पर माल्यार्पण की औपचारिकताएं होती रहती हैं। पहली बार ऐसा हुआ कि अलबर्ट एक्का के गांव में इतने भव्य तरीके से शहीद की जयंती मनाई गई हो। आचार्य कृष्ण के वैदिक मंत्र गूंजे। भारत माता और अलबर्ट एक्का के जयकारे लगे। कार्यक्रम का आयोजन अलबर्ट एक्का गौरव रक्षा सम्मान समिति ने किया था। मुख्य संयोजक एक सामाजिक कार्यकर्ता संत स्वामी दिव्य ज्ञान (सौम्य मिश्र) थे जिन्होंने प्रबुद्धजनों को इससे जोड़ा, स्थानीय व सम्मान समिति के अध्यक्ष दिलीप बड़ाई ने समाज के लोगों का जुटान किया।
स्वामी दिव्य ज्ञान कहते हैं कि प्रधानमंत्री को आमंत्रण के लिए इस आयोजन का मकसद था कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा मुंडा के गांव खूंटी के उलिहातू आये उसी तरह अलबर्ट एक्का के गांव गुमला के जारी आयें और यहां की सूरत बदले। प्रधानमंत्री यहां आयेंगे, उनका ध्यान जायेगा तो स्वत: जारी के साथ गुमला जिला के विकास के रास्ते खुलेंगे। दिसंबर में शिक्षाविदों, चिकित्सकों, कारोबारियों, गोल्ड मेडल हासिल करने वाले खिलाड़ियों, विभिन्न आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने इसे लेकर अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस कर प्रधानमंत्री को आमंत्रण दिया।
अलबर्ट एक्का की जयंती पर जुटे लोगों का मानना है कि अलबर्ट एक्का को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया है। जारी और गुमला का समेकित विकास हो, अलबर्ट एक्का पर और शोध हो, उनके गांव में उन पर संग्रहालय बने, उनके नाम पर विश्वविद्यालय बने, सिलेबस में अध्याय के रूप में उन्हें पढ़ाया जाये ताकि आने वाली पीढ़ियां उन्हें जान सके, देश प्रेम की भावना विकसित हो। 29 साल की उम्र में ही 1971 के भारत-पाक युद्ध में अलबर्ट एक्का शहीद हो गये थे। उनकी 81 वीं जयंती मनाई जा रही है। मगर आज भी उनके गांव और गुमला के लिए जो होना चाहिए नहीं हो पाया है। सड़कें बनी हैं मगर चैनपुर से उनके गांव जारी जाने वाली मुख्य सड़क अभी भी बेहाल है। पिता की शहादत के समय उनके पुत्र विसेंट एक्का मां बलमदीना के गर्भ में ही थे।
आयोजन देखकर खुश हैं मगर उदास भाव से आउटलुक से कहते हैं कि संयुक्त बिहार के समय ही सरकार ने पांच एकड़ जमीन दी थी, पथरीली थी, विवादित थी। आज तक उस पर कब्जा नहीं मिल पाया। मौके पर आईटी फर्म हास्ट बुक ने एक लाख रुपये खाते में डाले और 11 हजार रुपये का चेक अलबर्ट एक्का के पुत्र विसेंट को सौंपे। समारोह में आरएसएस के उत्तर पूर्व के संपर्क प्रमुख अनिल ठाकुर, चैम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष किशोर मंत्री किशोर मंत्री, अलबर्ट एक्का के पुत्र विसेंट, विद्यार्थी परिषद के याज्ञवल्क्य शुक्ल, सममान समिति के अध्यक्ष दिलीप बड़ाईक, प्रख्यात चिकित्सक डॉ विजय राज डॉ अभिषेक रामाधीन, डॉ अटल पांडेय, बीएयू की कृषि वैज्ञानिक डा मणि गोपा चटर्जी आदि ने हिस्सा लिया।
समारोह में वरीय पत्रकार संजय कृष्ण की शोधपरक पुस्तक '1971 के नायक परमवीर अल्बर्ट एक्का' का भी वितरण किया गया। जिसमें मान्य परंपरा से अलग अलबर्ट एक्का का जन्मदिन प्रचलित तिथि 27 दिसंबर से अलग 13 जनवरी बताया गया है। साक्ष्य के तौर पर पवित्र हृदय चर्च, भिखमपुर का रजिस्टर, जहां अलबर्ट एक्का की स्कूली शिक्षा हुई के रजिस्टर की तस्वीर भी लगाई है।