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08 December 2022

एक जिला एक उत्पाद योजना से हो रहा विकास, रोजगार के खुल रहे हैं अवसर

लखनऊ में ब्याही बबीता अग्रवाल की कहानी घोड़े की नाल में ठुकी कील की तरह है। सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, क्रोशिया के गुणों से भरी लड़की, जिसकी देहरी पर आते ही लोग कहते-लड़की बहुत गुणी है, क्योंकि घर में उन चीजों से बने सजावटी सामान नजर आते, जिन्हें अमूमन लोग फेंक देते थे। जब इस लड़की की शादी हुई तो दहेज में हाथ से बना डिजाइनर पंखा, हाथ से कढ़ी हुई चिकनकारी की साड़ियां, बल्ब से बना तोता, थालपोश और न जाने-जाने क्या-क्या, साथ गया। ससुराल में भी जमकर तारीफ हुई-’भई बहू बहुत गुणी है।’ अभी हाथों की हल्दी उतरी ही थी कि साल 2000 में पति की असमय मृत्यु हो गई। गोद में ढाई साल का बच्चा और सूनी मांग लिए औरत का कोई अपना नहीं होता। ऐसे बुरे वक्त में बबीता की मदद की उसके हाथ के हुनर ने। 

 

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लखीमपुर के छोटे से गांव के बनिया परिवार में पली-बढ़ी बबीता कहती हैं कि दिमाग में ये बात तो सेट थी कि शादी के बाद नौकरी तो नहीं कर पाऊंगी। ऐसे में कुछ घर से ही शुरू करना पड़ेगा। मैंने नानी-मम्मी से हाथ का काम सीखा था। पहले शौक में करती थी लेकिन मुझे ये नहीं मालूम था कि मेरे जीवन में एक दिन ऐसा भी आएगा जब धागों के समान जीवन के सारे रंग सफेद पड़ जाएंगे। विधवा होने के इस सफेद रंग को मैंने चिकनकारी के उजले रंगों से जोड़ा। पति के गुजरने के बाद अपने भीतर की सारी हिम्मत जुटाकर मैंने आशा महिला एवं बाल कल्याण समिति संस्था बनाई। हालांकि, इस संस्था की नींव मेरे पति पहले ही डलवा चुके थे, लेकिन पति के गुजरने के बाद यही संस्था मेरी रोजी-रोटी का सहारा बनी। 

 

 

बबीता ने इंदिरा नगर में आसपास रहने वाली महिलाओं और बच्चियों को मुफ्त में चिकनकारी का काम सिखाना शुरू किया और धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में लोग उन्हें जानने लगे। एरिया के अधिकारी खुद उनसे मिलने आए और बाराबंकी के हैंडीक्राफ्ट विभाग से उनका आर्टिजन कार्ड बनवाया, जिसकी वजह से उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शनी लगाने का मौका मिला। इसके बाद मैं जिला उद्योग से जुड़ी और वहां से भी ओडीओपी के तहत काम मिलना शुरू हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मेरे काम को खूब सराहा और चिकनकारी व समाजसेवा के क्षेत्र में कई सम्मान मिल चुके हैं। अब मेरे साथ करीब आठ हजार महिलाएं जुड़ी हैं और अपना घर चला रही हैं।

ये सफलता केवल बबीता की ही नहीं है बल्कि उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में कोई न कोई बबीता बन रही है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साल 2018 में शुरू की गई ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना के बाद स्त्री और पुरुषों को अपने हाथ का हुनर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखाने का मौका मिला। राज्य में ओडीओपी की सफलता ऐसी रही कि हाल ही में वन डिस्ट्रिक्ट वन स्पोर्ट (ओडीओएस) योजना की भी शुरुआत की गई है। एकैडमी ऑफ मार्केटिंग स्टडीज जर्नल पर छपे एक शोध के मुताबिक, कोविड के दिनों में ओडीओपी जैसी योजनाएं उत्तर प्रदेश के लिए डूबते को तिनके का सहारा के रूप में सामने आईं।  

 

 

सिलाई मशीनें बनी वरदान

 

लखनऊ की निशा शर्मा कहती हैं कि कोविड-19 के दौरान उनके पति की नौकरी चली गई तब ओडीओपी के तहत उन्हें जो मशीनें मिलीं और चिकनकारी की जो ट्रेनिंग मिली उसी से उनका घर चला। उन दिनों उन्होंने मास्क बनाने से लेकर बाद में हर घर तिरंगा के तहत झंडे भी बनाए और अपना घर भी चलाया। 27 साल की निशा आगे कहती हैं, चिकनकारी की ट्रेनिंग मिलने और सिलाई मशीन मिलने से हमें अपना काम बड़े मंच पर भी दिखाने का मौका मिला। पहले हम घर से बाहर निकलने में झिझकते थे, लेकिन अब हर दुकानदार के पास जाकर सौदा पक्का कर आते हैं। अपना माल बेच भी आते हैं और उनसे काम मांग भी लेते हैं। अब हम केवल लखनऊ में ही नहीं बल्कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद तक भी पहुंच गए हैं। यहां पर भी हमारा चिकनकारी का काम जाता है। ओडीओपी कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से राज्य के निर्यात में 80 प्रतिशत (2017-18 में 88,967 करोड़ रुपए से बढ़कर 2021-22 में 1.58 लाख करोड़ रुपए हो गया है) की वृद्धि हुई है। इस योजना के अंतर्गत आने वाले उद्योगों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी में रखा गया है और एमएसएमई का उत्तर प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत की भागीदारी है।   

 

 

जरदोजी के हुनर ने दिलाया सम्मान

 

बरेली की रहने वाली रिम्पी राठौर को साल 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘प्रादेशिक राज्य हस्तशिल्प पुरस्कार’ मिला। वे कहती हैं कि उन्हें जरदोजी का काम आता था लेकिन इस काम को और बड़े स्तर पहुंचाने में सरकारी सुविधाओं ने बहुत मदद की है। वे कहती हैं कि साल 2018 के बाद मेरी जिंदगी की तस्वीर बदल गई। मेरे हाथ में हुनर तो पहले ही था लेकिन उस हुनर को चार चांद लगाए सरकारी योजनाओं ने। अभी तक ओडीओपी के तहत मैंने बदायुं में 14 ट्रेनिंग कराई हैं। इससे पहले 2019 में भी बदायूं में ट्रेनिंग कराई थीं।  

 

 

ओडीओपी के तहत साल में दो ट्रेनिंग होती हैं और उसके लिए सरकार की तरफ से आर्थिक मदद भी मिलती है। एक ट्रेनिंग 10 दिन की होती है। एक बैच में 25 बच्चे होते हैं। बच्चों का रहना खाना, सामान सबकुछ के लिए सरकार पैसे देती है। इसके अलावा हर आर्टिस्ट का आर्टिजन कार्ड बनवाया जाता है। दिल्ली हाट, एक्सपो मार्ट में प्रदर्शनी लगाने के लिए उन्हें भेजा जाता है। यही नहीं कलाकारों को विदेशों में भी भेजा जाता है। मैंने जारा ब्रांड के कपड़े भी डिजाइन किए हैं। सरकार सुविधाएं तो बहुत देती है बस हमें उसे इनकैश करना आना चाहिए। रिम्पी अब तक आठ हजार बच्चियों को जरदोजी की ट्रेनिंग दे चुकी हूं।

 

 

पराली से बन रहे शिव-शंकर

 

एक तरफ दिल्ली में पराली को लेकर हाय-तौबा मची है तो दूसरी तरफ बहराइच के कृष्ण शंकर प्रसाद इसी पराली से शंकर, कृष्ण, बुद्ध, ओम, सत्यमेव जयते की कलाकृतियां बनाकर देश ही नहीं विदेश में भी नाम कमा रहे हैं। कृष्ण शंकर प्रसाद कहते हैं कि पराली को लोग घास, फूस समझकर फेंक देते हैं या चारे के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं, लेकिन मैंने इसे बिजनेस बनाया। बचपन से पराली से कोई न कोई कलाकृति बनाता रहता था, लेकिन तब ये नहीं मालूम था कि बचपन का शौक एक दिन बिजनेस बन जाएगा। उत्तर प्रदेश के बहराइच के रहने वाले कृष्ण शंकर प्रसाद को अपने को बढ़ाने में एक जनपद एक उत्पाद के तहत और सराहना मिली। उन्हें यहां तीन लाख का लोन लेकर इस काम को और आगे बढ़ाया और आज कई महिलाओं को पराली से कलाकृतियां बनाने की ट्रेनिंग देकर उन्हें रोजगार मुहैया करा रहे हैं। कृष्ण शंकर प्रसाद का कहना है कि अब उनका काम ओडीओपी मार्ट पर भी उपलब्ध है।

 

स्वर्ग ही नहीं स्वर भी दिया

 

लखनऊ में एसिस्टेंट कमिश्नर इंडस्ट्रीज आशुतोष श्रीवास्तव का कहना है कि ओडीओपी एक श्रृंखला के तहत काम करता है। इस योजना के तहत हुनर को प्रोत्साहन तो मिलता ही है साथ ही महिला को काम शुरू करने से लेकर बेचने तक जो भी मदद चाहिए होती है वह हर जिले में उपस्थित कॉमन फेसिलिटी सेंटर (सीएफसी) के तहत मिल जाती है। सामान को बेचने के लिए देश में लगने वाले अलग-अलग हस्तशिल्प के मेलों में भेजे जाते हैं और यहां आने-जाने तक का खर्च सरकार उठाती है। किसी घऱ में अगर स्त्री और पुरुष दोनों कामकाजी होते हैं तो घर की आर्थिक स्थिति स्वत: ही बेहतर हो जाती है। ओडीओपी जैसी योजनाओं ने सिर्फ पुरुषों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी स्वर्ग बेशक नहीं दिया हो लेकिन स्वर तो जरूर दिया है।  

 

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TAGS: Uttar Pradesh, one district one product, Yogi Adityanath, Narendra Modi, Bhartiya Janta party, Indian politics, administration, uttar Pradesh progressive scheme
OUTLOOK 08 December, 2022
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