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10 February 2019

पशुओं की भावनाओं के बारे में जागरुकता फैलाने का माध्यम है जीव जंतु कल्याण दिवस

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- डॉ नीलम बाला

वसंत ऋतु का पांचवा दिन यानी वसंत पंचमी, सर्दियों के अंत का प्रतीक है। इसे  हमारे कैलेंडर में बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। वसंत शब्द हमारे जहन में चारों ओर चहकती पक्षियों के साथ हरी घास और फसलों से आच्छादित विशाल क्षेत्र की छवि निर्मित करता है। शायद यह मौसम जानवरों के लिए भी सबसे अच्छा है इसलिए भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) ने हर साल वसंत पंचमी के दिन जीव जंतु कल्याण दिवस मनाने का फैसला किया।

इसके पीछे यह विचार है कि देश में जानवरों की भावनाओं के बारे में जागरूकता का स्तर बढ़ाया जाए और पशु कल्याण मानकों को अपनाया जाना सुनिश्चित किया जाए। इस समय एनिमल फार्मिंग औद्योगिक स्तर पर हो रही है, इसलिए डेयरियों और पोल्ट्री फार्मों में हमेशा पशु कल्याण से समझौते की संभावना बनी रहती है। इसके अलावा भी जानवरों के खिलाफ क्रूरता के मामले बड़ी संख्या में सामने आते हैं।

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जानवरों के पास मनुष्य के समान मूल अधिकार हैं और उनके लिए पांच स्वतंत्रता का समर्थन किया है। इनमें भूख, प्यास और कुपोषण से मुक्ति; भय और संकट से मुक्ति; शारीरिक दर्द और असुविधा से मुक्ति; दर्द, चोट और बीमारी से मुक्ति; और व्यवहार के सामान्य पैटर्न को व्यक्त करने की स्वतंत्रता शामिल है। 

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत वैधानिक निकाय होने के नाते, एडब्ल्यूबीआई  जानवरों के मूल अधिकारों की गारंटी के लिए राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के साथ काम कर रहा है, लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के वास्तविक कार्यान्वयन के लिए अभी बहुत दूरी तय करनी होगी।

जानवरों को दर्द और पीड़ा देने के अलावा ‘कल्याणकारी उपायों’ के खराब कार्यान्वयन से मानव स्वास्थ्य पर भी बड़ा असर पड़ता है। अपर्याप्त सुविधाओं के साथ एक खराब प्रबंधित डेयरी गायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए बाध्य है। यह निश्चित रूप से मनुष्यों द्वारा खपत की जाने वाली दूध की गुणवत्ता को प्रभावित करेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरियों में साफ-सफाई के अलावा हवा, पानी और धूप का उचित प्रावधान हो। कई मौकों पर इन आवश्यक चीजों को लागत बचाने के लिए समझौता किया जाता है लेकिन लंबे समय में इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

हाल के वर्षों में, बेघर जानवरों का मुद्दा एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। शहरी क्षेत्रों में वे प्लास्टिक की थैलियों को खाने से दर्दनाक मौत मर जाते हैं, जबकि  ग्रामीण क्षेत्रों में वे क्रूरता का शिकार हो जाते हैं क्योंकि किसान अपने खेतों को बेघर जानवरों से बचाने के लिए कठोर उपायों का सहारा लेते हैं। प्रत्येक पंचायत और जिलों में गौ-आश्रयों के निर्माण के लिए यूपी सरकार का निर्णय बहुत सराहनीय है और अन्य राज्यों में भी इस तरह की योजना कृषि पशुओं के लिए बुनियादी अधिकारों को हासिल कराने में मिल का पत्थर साबित होगी।

अपनी ओर से, बोर्ड क्षमता निर्माण के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता रहा है। बोर्ड ने देश भर से 300 से अधिक पशु प्रेमियों और कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया है और उन्हें 30 जुलाई 2018 से पशु कल्याण कानूनों और नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सीधे काम करने के लिए मानद पशु कल्याण अधिकारी के रूप में नियुक्त किया है। इसके अलावा, इसने राज्य सरकारों के साथ राज्य पशु कल्याण बोर्ड और जिला एसपीसीए (सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स) की सक्रियता और मजबूती का मुद्दा उठाया है।

पशुधन तथा अन्य पालतु जानवर के अलावा, बोर्ड ने जंगली जानवरों पर भी समान जोर दिया है और संबंधित एजेंसियों के साथ उनके खिलाफ क्रूरता की रोकथाम और सुरक्षा के लिए काम किया है। यह ध्यान देने योग्य है कि हम सभी जानवरों के साथ धरती को साझा करते हैं और इस पर समान रूप से रहते हैं जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ऐसी उम्मीद की जाती है कि जीव जन्तु कल्याण दिवस मनाए जाने से पशुओं से संबंधित मुद्दों पर हमारी जागरुकता बढ़ेगी और भारत निश्चित रूप से पशु कल्याण के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती है। सहिष्णुता, करुणा और दया भारतीय संस्कृति का मूल है और इसलिए पशु कल्याण की दिशा में एक छोटा भी कदम बड़ा बदलाव ला सकता है। 

 

(लेखक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) के तहत भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड की सचिव हैं।)

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TAGS: vasant panchmi, Jeev jantu kalyan diwas, animals
OUTLOOK 10 February, 2019
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