कौन हैं भगवान अयप्पा, जानें सबरीमाला मंदिर से जुड़ी ये खास बातें
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर शुक्रवार यानी आज का दिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति दे दी है। इस मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी।
इसी लैंगिक आधार पर भेदभाव पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि सबरीमाला के नियम संविधान, के अनुच्छेद 14 और 25 का उल्लंघन करते हैं। यह फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ-साथ यहां जानिए सबरीमाला मंदिर के बारे में-
सबरीमाला भारत के ऐसे कुछ मंदिरों में से है जिसमें सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र से अलग) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं। यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं। यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है। इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं।
साथ ही यहां पर उन भक्तों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है, जो मंदिर में ज्यादा बार आए होते हैं न कि उनको जिनकी जाति को समाज तथाकथित रूप से ऊंचा मानता हो। इसके अलावा सबरीमाला आने वाले भक्तों को यहां आने से 40 दिन पहले से बिल्कुल आस्तिक और पवित्र जीवन जीना होता है।
ये समय सबरीमाला मंदिर में जाने के लिए माना जाता है खास
इस मंदिर में हर साल नवंबर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। क्योंकि बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास माना जाता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज्यादा भक्त पहुंचते हैं।
इस मंदिर में महिलाओं का जाना क्यों था वर्जित
आपको जानकर हैरानी होगी कि 1500 साल पहले से इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि इस मंदिर में पूजे जाने वाले भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी और तपस्वी थे।
हालांकि कुछ लोगों का कहना था कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण उनके पीरियड्स हैं जबकि यह पूरी सच्चाई नहीं है। मंदिर के आख्यान में इसके पीछे कोई दूसरी ही कहानी है।
ब्रह्मचारी और तपस्वी भगवान अयप्पा का है ये मंदिर
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
इस मंदिर की सीढ़ियों का भी है अलग-अलग महत्व
यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं।
- पहली पांच सीढियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है।
- इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है।
- अगली तीन सीढियों को मानवीय गुण।
- और आखिरि दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
तो इसलिए सिर पर पोटली रखकर करते हैं इस मंदिर में प्रवेश
इसके अलावा यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीजें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।