असम में नागरिकता को लेकर क्यों बना है विवाद
असम में गैर कानूनी रूप से आए बांग्लादेशियों और स्थानीय लोगों के बीच टकराव लंबे समय से चला आ रहा है। 1980 के मध्य में इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की गई लेकिन वह अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। असम में भाजपा सरकार ने सत्ता में आने से पहले इन अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने का वादा किया था। अब जब कोर्ट के आदेशों के बाद एनआरसी ने 40 लाख लोगों को वैध नहीं पाया है तो क्या राज्य सरकार इन्हें निकालने के अपने वादे पर अमल कर पाएगी।
सोमवार को दूसरे एनआरसी ड्राफ्ट के जारी होने के बाद यह साफ हो गया है कि राज्य में रह रहे कुल लोगों में से 2 करोड़ 89 लाख से ज्यादा लोग ही वैध हैं। राज्य में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट दिसंबर 2016 में जारी हुआ था। इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल किए गए थे। दूसरा ड्राफ्ट जारी होने के बाद 40 लाख लोगों को रजिस्टर में जगह नहीं मिली है। वैसे, अभी भी उनके लिए रास्ते खुले हैं और वे फिर से आवेदन कर सकते हैं।
एनआरसी ड्राफ्ट के बारे में जानें सब कुछ
- देश में असम अकेला ऐसा राज्य है, जिसका नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) है। यह वो प्रक्रिया है जिससे परोक्ष तौर पर देश में गैर-कानूनी तरीके से रह रहे विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है। अगर कोई असम का नागरिक है और देश के किसी दूसरे हिस्से में रह रहा है या काम कर रहा है, तो उसे एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराने की जरूरत है।
- यह पूरा मामला असम आंदोलन से जुड़ा हुआ है। 1985 का समझौता बांग्लादेश से अवैध रूप से आने वालों के खिलाफ छह साल तक हिंसक विरोध प्रदर्शनों का नतीजा था। 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम में मुसलमानों की आबादी 1961 में 23 फीसदी थी जो बढ़कर 34 फीसदी हो गई। लेकिन इसमें यह साफ नहीं है कि कितने असमी, बंगाली या बांग्लादेशी हैं।
- असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बड़ा मुद्दा रहा है, जिसके कारण यहां हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं। यहां के मूल निवासियों का मानना है कि अवैध रूप से यहां आकर बसे लोग उनसे उनका हक छीन रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर 80 के दशक में असम में बड़ा आंदोलन हुआ था और इसके बाद असम गण परिषद (एजीपी) और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ जिसमें तय हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निकाल दिया जाएगा। लेकिन यह समझौता आगे नहीं बढ़ सका और लंबे समय बाद इस पर फिर से काम शुरू हुआ है।
- अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए एनआरसी जारी करने का फैसला लिया गया और 24 मार्च 1971 की आधी रात के बाद से अवैध रूप से राज्य में घुस आए बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने की कोशिश की गई। यह तारीख 1985 के समझौते में तय की गई थी।
- राज्य सरकार समझौते में तय विदेशियों की पहचान करने और निकालने में नाकाम रही। 2005 तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और केंद्र सरकार में एक अन्य समझौते के तहत एनआरसी को जारी करने का फैसला लिया गया था। देश में,पहली बार एनआरसी विभाजन के बाद 1951 की जनगणना के बाद प्रकाशित किया गया था, उस समय असम के नागरिकों की संख्या 80 लाख थी। तब एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हुई लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा हो गई जिसके बाद इसे रोक दिया गया।
- एनजीओ असम लोक निर्माण (एपीडब्ल्यू) ने जुलाई 2009 में राज्य में बांग्लादेशी विदेशियों की पहचान करने और मतदाताओं की सूची से उनके नामों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिसके बाद कोर्ट ने इस काम को जल्द पूरा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने तब 31 दिसंबर,16 को एनआरसी के पहले ड्राफ्ट को रिलीज करने का आदेश दिया था। तब से सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।