खाट के साथ गन्ने के खेत का खतरा
हमें तो कहा जाता रहा है कि किसी से दुश्मनी का हिसाब चुकता करना हो, तो डराकर गन्ने के घने खेत में दौड़ा दो। आप पर कोई आरोप नहीं लगेगा। इसीलिए कुछ अनुभवी बुजुर्ग कांग्रेसियों को खाट सभा का पहला ‘शो’ ही गड़बड़ा जाने, भगदड़ में खाटों की लूटपाट पर अफसोस हो रहा है। कांग्रेस के लिए गांव की राजनीति करने वाले 70 वर्षों से चुनावी बेला में नहीं नियमित रूप से ग्रामीणों के बीच खाट पर बैठकर गर्म चाय, गन्ने का रस, ताजी मूली-गाजर, मक्के की रोटी और प्याज-गुड़ का आनंद लिया करते थे। साठ के दशक में चौधरी चरण सिंह जैसे नेता कांग्रेस में ही थे जो मुख्यमंत्री-गृहमंत्री-प्रधानमंत्री तक बने। इंदिरा गांधी तो युवाकाल से ही प्रधानमंत्री बनने तक गांव, तालाब ही पार करती रहीं। अस्सी के दशक में राजेश पायलट और अशोक गहलोत जैसे नेता राजीव गांधी को ग्रामीणों के बीच घुमाते रहे। राहुल गांधी को ‘खाट’ का ध्यान बहुत देरी से दिलाया गया। सत्ता में दस साल सांसद रहते हुए उन्होंने ऐसी खाट सभाएं क्यों नहीं की? यूं उनकी नेकनीयत मानकर इस एक महीने के खाट अभियान को ज्ञानवर्द्धन के लिए ठीक मान लें, तो सवाल उठेगा कि उनकी पार्टी के नेता कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्यों में किसानों के बीच कितना घूम रहे हैं। हरीश रावत जमीनी मुख्यमंत्री हैं, लेकिन सत्ता सुख भोगने वाले नेता तो उनको ही उखाड़ने में लगे रहते हैं। वीरभद्र सिंह वैसे भी राजा हैं और उनकी सरकार को मुसीबत में डालने के लिए हमेशा राज्यसभा की शोभा बढ़ाने वाले आनंद शर्मा ही भाजपा के लिए वरदान हैं। राहुल गांधी जमीनी राजनीति करने निकले हैं लेकिन अपने घर-आंगन में दांव-पेच करने वालों को कितना नियंत्रित कर पा रहे हैं? वह कांग्रेस के सत्ता काल में किसानों के लिए 70 हजार करोड़ रुपये देने का दावा करते हैं, जो गलत भी नहीं है। लेकिन किसान यही तो पूछ रहे हैं कि उनकी प्रादेशिक सरकारों के नेता कितना धन हजम कर गए? छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, म.प्र., हरियाणा, पंजाब में कितने कांग्रेसी नेता-मंत्री गरीबों का पैसा हजम कर गए और आरोपों पर कानूनी कार्रवाई तक नहीं हुई। बिहार में तो ‘चारा घोटाले’ में सजायाफ्ता लालू यादव आज भी कांग्रेस के लिए बैसाखी का इंतजाम कर रहे हैं। इसलिए शुरुआत अच्छी होने पर भी राहुल को घर-आंगन में सफाई करनी पड़ेगी।