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19 June 2020

मां की दवाई और स्कूल फीस के लिए कोरोना से मरने वालों को शमशान तक पहुंचाता है 12वीं का ये छात्र

पीटीआइ

चांद मोहम्मद 12वीं कक्षा का छात्र है और भविष्य में मेडिकल क्षेत्र में जाना चाहता है, लेकिन आर्थिक तंगी, अपने भाई-बहनों के स्कूलों का खर्चा उठाने और मां के इलाज के लिए कोरोना से मरने वाले लोगों के शवों को अंतिम संस्कार स्थल तक पहुंचाने के कार्य में लगा हुआ है। उसकी मां को थायराइड संबंधी शिकायत है और उन्हें तत्काल इलाज की जरूरत है, लेकिन परिवार के पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर के रहने वाले 20 वर्षीय चांद मोहम्मद ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान कृष्णा नगर मार्केट में कपड़े की दुकान से मेरे भाई की नौकरी चली गई, तब से हम मुश्किल से अपना खर्चा चला पा रहे हैं।

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(नौकरी पर जाने से पहले चांद को खाने का डब्बा देती उसकी मां। फोटो- पीटीआई)

 

पड़ोसियों द्वारा दिए गए खाने या भाई द्वारा छोटी-मोटी नौकरी करके कमाए गए पैसों से उनका परिवार चल रहा है। एक सप्ताह पहले चांद ने एक निजी कंपनी में नौकरी शुरू की, जिसने उसे लोकनायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में सफाई कर्मी के काम पर लगा दिया। इस नौकरी में कोविड-19 से मरने वाले लोगों के शव की देखेरख का काम भी होता है। वह दोपहर 12 बजे से लेकर रात आठ बजे तक काम करता है।

(गल्व्स और मास्क लगाकर नौकरी के लिए घर से निकलता चांद मोहम्मद। फोटो- पीटीआई)

 

मजबूरी में करना पड़ा यह काम

चांद ने बताया कि काम के सारे विकल्प खत्म हो जाने के बाद अब उसने यह काम शुरू किया है। यह एक खतरनाक काम है क्योंकि इसमें संक्रमित होने का खतरा ज्यादा रहता है। चांद ने कहा कि हमारे परिवार में तीन बहनें, दो भाई और माता-पिता हैं जो बिना पैसे के संघर्ष कर रहे हैं। अभी हमें खाने-पीने और मां की दवाई के लिए पैसों की सख्त जरूरत है। उसने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि घर में एक ही बार का खाना होता है। संभव है कि वायरस से तो फिर भी बच जाएंगे, लेकिन हम भूख से नहीं बच सकते हैं?

(कोरोना शवों को शमशान तक पहुंचाता चांद। फोटो- पीटीआई)

पढ़ने के लिए पैसों की जरूरत

चांद मोहम्मद ने कहा कि उसकी दो बहनें भी स्कूल में हैं और वह खुद भी 12वीं का छात्र है और पढ़ने के लिए पैसों की जरूरत है क्योंकि अब भी स्कूल की फीस बाकी है। उसे उम्मीद है कि पहली सैलरी मिलने के बाद चीजें एक हद तक ठीक हो जाएं। उसने कहा कि उसे अल्लाह पर भरोसा है और वे ही उसका ख्याल रखेंगे और रास्ता दिखाएंगे। वहीं उसे सबसे ज्यादा इस बात से डर है कि इस तरह की खतरनाक नौकरी के बाद भी उसके जैसे कर्मियों के लिए निजी कंपनियां बीमा की व्यवस्था नहीं करती हैं।

(फोटो- पीटीआई)

 

पीपीई किट से सांस लेने में भी होती है दिक्कत

चांद ने कहा कि फिलहाल कोरोना मृतकों के शव उठाने के दुनिया के सबसे खतरनाक काम के बदले उसे प्रति महीना 17,000 रुपये मिलेंगे। उसने बताया कि वह रोजाना कम से कम दो से तीन शवों को अन्य सफाई कर्मियों के साथ एम्बुलेंस में डालता है, श्मशान स्थल पहुंचने पर उसे स्ट्रैचर से उठाकर नीचे रखता है। इस दौरान पीपीई किट पहनकर काम करना होता है और इतनी गर्मी में यह बेहद मुश्किल है, सांस लेने में भी तकलीफ होती है।

(फोटो- पीटीआई)

परिवार उसकी सुरक्षा को लेकर बेहद डरा हुआ है

चांद मोहम्मद ने बताया कि वह लोगों से कम ब्याज पर पैसे लेने की कोशिश कर रहा है। वहीं उसका परिवार उसकी सुरक्षा को लेकर बेहद डरा हुआ है, उसकी मां काफी रोती है, लेकिन उसने उन्हें अच्छी तरह से समझाया है।

 

(फोटो- पीटीआई)

उसने बताया कि इस काम की वजह से वह अपने परिवार से भी दूरी बनाकर रखता है। चांद ने कहा कि मैं हर तरह के एहतियाती कदम उठा रहा हूं, लेकिन फिलहाल हमें मदद की जरूरत है ताकि हमारा परिवार चल सके।

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TAGS: 'World's Toughest Job', Class 12 Student, Cremates, Covid Victims, Pay, Mother's Medicines, School Fees
OUTLOOK 19 June, 2020
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