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16 December 2024

जाकिर हुसैन –शून्‍य जो कभी भरा नही जा सकेगा

अपनी जादुई उगुलियों से ऐसी बेमिसाल थाप, जिसकी तिहाई पर दुनिया रुक जाती थी और ठेके पर उठ जाती थी,देने वाले उस्‍ताद जाकिर हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से लडते लडते अंतत: 14 दिसम्‍बर को हमसे बिछुड गये । जानलेवा इस बीमारी से ग्रस्‍त उस्‍ताद बीते दो हफ्ते से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे। परिवार ने अपरिहार्य कारणों से उनके जाने की खबर को छिपाये रखा और 15 दिसम्‍बर की रात से उस्‍ताद के निधन की खबर मीडिया में आने पर सोमवार ( 16 दिसम्‍बर ) की सुबह परिवार ने इसकी पुष्टि की।किसी बडी हस्‍ती के इस फानी दुनिया से जाने पर एक बडा सा शून्‍य उभर आया है कहने का चलन सा है लेकिन उस्‍ताद जाकिर हुसैन के लिए यह कथन शत प्रतिशत सच दिखाई देता है, ऐेसा शून्‍य जिसकी भरपाई कभी नही हो सकेगी।

 

 73 साल पहले 9 मार्च1951 को ख्‍यात तबला वादक उस्‍ताद उल्‍ला रक्‍खा कुरैशी के घर आंगन में जन्‍मे जाकिर हुसैन की मां बीवी बेगम ने जब डेढ दिन के नवजात को पिता अल्‍ला रक्‍खा की गोद में सौंपा तो पिता ने नन्‍हे जाकिर के कान में तबला के ताल गाते हुए कहा था कि यही मेरा आर्शीवाद और यही मेरी प्रार्थना है ।जाकिर का बचपन पिता के तबले की थाप सुनते ही बीता और पिता ने तीन साल की उम्र में जाकिर को भी तबला थमा दिया । पिता से मिले इस आर्शीवाद ने जाकिर हुसैन को तबले का दीवाना बना दिया गया । उनकी सुबह शाम दिन रात सब कुछ तबला ही था । छुटपन में वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे । रसोई में मां खाना बना रही है और बालक जाकिर तवा, हांडी और थाली, जो भी मिलता, वे उसी पर अपनी उगुलियां की थाप देने लगते । जाहिर है इस दीवानगी का नतीजा बेहतर ही निकलना था ।

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 12 साल की उम्र में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के दिग्गजों की मौजदूगी में बालक जाकिर हुसैन ने अपने पिता के साथ अपने जीवन के पहले कॉन्सर्ट में भाग लिया ।जिसमें बतौर इनाम उन्‍हें पांच रुपये मिले । अपने 73 साल के जीवन में अपने हूनर के दम पर एक कंसर्ट के लिए दस लाख रुपये तक फीस लेने वाले उस्‍ताद जाकिर हुसैन 61 साल पहले बतौर इनाम मिले पांच रुपये को कभी नही भूल पाये । उस्‍ताद अक्‍सर कहा करते थे कि - " मैंने अपने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन वे 5 रुपए सबसे कीमती थे।" उस्‍ताद जाकिर हुसैन की सवेंदनशीलता का इससे बडा उदाहरण और क्‍या हो सकता है कि शुरुआती दिनों में ट्रेन में जनरल कोच में यात्रा करते तबले पर किसी का पैर न लगे, इसके लिए वह तबले को अपनी गोद में लेकर ही सो जाते थे।

 

 कामयाबी की तमाम मंजिलें पाने के बाद भी उस्‍ताद जाकिर हुसैन का अपने तबले की प्रति वही आदर हमेशा बना रहा । मंच पर अपना तबला वह खुद ही लेकर पहुंचते थे । साल 1960 की ऐतिहासिक फिल्म मुगल-ए-आजम के निर्माता निर्देशक के आसिफ चाहते थे कि जाकिर हुसैन इस फिल्म में सलीम के छोटे भाई की भूमिका अभिनीत करें लेकिन पिता उस्ताद अल्लारक्खा जानते समझते थे कि उनके बेटे की दुनिया तबला ही है,उन्‍हानें निर्माता के आसिफ को विन्रमता से मना कर दिया । यह अलग बात है कि अपने दोस्‍त अभिनेता शशि कपूर के आग्रह को जा‍किर हुसैन टाल नही पाये और वर्ष 1983 में ब्रिटिश फिल्म हीट एंड डस्ट में शशि कपूर के साथ काम किया । 

 

जाकिर हुसैन ने 1998 की एक फिल्म साज में भी शबाना आजमी के साथ काम किया था। भारत के शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों से लेकर मशहूर ड्रमर माइकल हार्ट और ग्रेट गिटारिस्ट पैट मार्टिनो के साथ उनकी जुगलबंदी नायाब रही लेकिन पंडित शिव कुमार शर्मा के साथ उनकी जुगलबंदी का कोई तोड नजर नही आता । जानकार बताते है कि ढाई साल पहले 14 मई 2022 को पंडित शिव कुमार शर्मा के दाह संस्‍कार के समय उस्‍ताद जाकिर हुसैन की जो अवसाद मुद्रा दिखाई दी,वह उनकी सांसो तक बनी रही । अपने हुनर के दम पर तबले को वैश्विक मंच पर स्‍थापित कर अपनी जादुई उगुलियों की बदौलत बेजोड़ लय से दुनिया भर को मंत्रमुग्ध करने वाले उस्‍ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाजा गया । उन्हें 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला था। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग एल्बम के लिए 3 ग्रैमी भी जीते।

 

 इस तरह जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड अपने नाम किएए जो अपने आप में एक रिकार्ड है । उनके निधन के साथ हमने केवल एक महान कलाकार को नहीं खोया है—हमने एक शाश्वत आत्मा को खोया है, एक ऐसे संगीतज्ञ को जिसकी युवा उत्साह और आनंदमय कला ने तबले को नृत्य, गान और उड़ान दी। उनके जाने से जो सन्नाटा छा गया है, वह असीम और अवर्णनीय है। फिर भी, उनके स्वर और लय उन सभी के हृदयों में सदा गूँजते रहेंगे, जिन्होंने उन्हें सुनने का सौभाग्य पाया, उनकी अद्भुत प्रतिभा और आत्मा की चिरस्थायी याद के रूप में। यह एक ऐसी क्षति है जिसे शब्दों में बाँध पाना असंभव है। दुनिया भर के संगीत प्रेमी उस्‍ताद के जाने से दुखी है । कवि यश मालवीय अपनी मन की पीडा को शब्‍दों में पिराते हुए कहते है कि

 

जाकिर भी चुप हो गए,चुप तबले के बोल दूर गगन में उड गया, हंसा पॉंखे खोल ।।

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TAGS: Zakir Khan death, Zakir khan tabla player, Music, Indian classical music
OUTLOOK 16 December, 2024
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