चमोली त्रासदी से सबक, हिमाचल में बिजली प्रोजेक्टों और ग्लेश्यिर के खतरों पर होगा मंथन
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा है कि राज्य में हाइड्रो प्रोजेक्टों तथा ग्लेशियर के खतरों पर मंथन किया जायेगा। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर टूटने की घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए आज सुबह पत्रकारों से बातचीत में श्री ठाकुर ने कहा कि कहां क्या सावधानी बरती जाये ,उस पर ध्यान दिया जायेगा । मुश्किल घड़ी में हिमाचल सहित पूरा देश उत्तराखंड के साथ खड़ा है। उन्हें हर संभव मदद देने के लिए प्रदेश तैयार है।
उन्होंने बताया कि उनकी उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से बात हुई है। हैरानी की बात सर्दियों में ग्लेशियर का टूटना और इसके चलते बाढ़ जैसे हालात पैदा होना एक नई चुनौती है। निश्चित रूप से प्रदेश में चल रहे प्रोजेक्टों के संबंध में नियम कायदे कानून को लेकर सभी पहाड़ी प्रदेशों को सबक सीखने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि खासकर हाइड्रो प्रोजेक्ट का काम को लेकर सरकार जरूर इन सभी बातों का पूरा ख्याल रखेगी। उन्होंने मलबे में फंसे लोगों के सकुशल होने के लिए कामना की। उल्लेखनीय है कि ग्लेशियोलॉजिस्ट ने पहले ही चेतावनी जारी कर दी कि मोराइन डैमेड ग्लेशियल झीलों की निगरानी हिमालय क्षेत्र में बहुत आवयश्क है ताकि उत्तराखंड जैसी घटना हिमाचल में न हो। हिमाचल प्रदेश में सतलुज, ब्यास, चेनाब और रवि बेसिन हिमालय क्षेत्र में शोधकर्ताओं के अनुसार 562 झीलें है। चेनाब बेसिन में, कुल 242 ग्लेशियल झीलों की पहचान की गई, जिनमें कुछ कमजोर क्षेत्र जैसे मियार उप-बेसिन भी शामिल हैं।
हिमाचल में सतलुज नदी के ऊपर परचू झील के फटने से पिछले दिनों तबाही हुई थी। 2005 में आई बाढ़ ने कई मानव जीवन और संपत्ति को नुकसान हुआ था।
वैज्ञानिकों के अध्ययन में तिब्बती हिमालयी क्षेत्र के ऊपरी कैचमेंट और स्पीति के भीतर कुछ अलग-अलग पॉकेट्स में पानी जमा होने की चेतावनी दी गई है। बेसिन, जो सतलज बेसिन का हिस्सा है। काजा के गांव चिचम के पास की कुछ झीलों को नदी के किनारे होने के कारण निगरानी की आवश्यकता है और फटने पर बड़ी क्षति हो सकती है।