मालेगांव के बाद अजमेर विस्फोट में यू-टर्न
गुजरात में फर्जी घोटाले में आरोपियों की एक के बाद एक रिहाई, महाराष्ट्र में मालेगांव बम विस्फोट में सरकारी वकील पर हिंदू आतंकियों के प्रति नरम रवैया अख्तियार करने के दबाव के बाद 2007 में अजमेर शरीफ दरगाह विस्फोट में 14 प्रमुख चश्मदीद गवाहों का मुकर जाना-एक बड़ी कड़ी का छोटा सा हिस्सा प्रतीत होता है। इसमें से ज्यादातर गवाहों की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नजदीकी रही है। गवाहों में से एक रणधीर सिंह भाजपा में शामिल हुए और उन्हें झारखंड की राज्य सरकार में मंत्री तक बना दिया गया।
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के एक साल के भीतर 2007में अजमेर शरीफ दरगाह विस्फोट के मामले में 14 प्रमुख चश्मदीद गवाहों के मुकर जाने से सरकारी वकील अश्विनी शर्मा बेतरह परेशान है। इन गवाहों में आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के सामने जो बयान दिया था और 2010 में मेजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दर्ज कराया था, वे सब उससे मुकर गए हैं।
इससे पूरा केस ही कमजोर हो गया है। इस बारे में अनहद ससंस्था से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने आउटलुक को बताया कि पूरे देश में यही हो रहा है। दोषियों को जेलों से निकालकर आजाद किया जा रहा है और पीड़ितों को इंसाफ से महरूम किया जा रहा है।
शबनम का कहना है कि ऐसा ही गुजरात में मासूमों को मारने वाले दोषी पुलिसकर्मियों को रिहा करके किया जा रहा है, तो आसाराम बापू के खिलाफ गवाही देने वालों को मार कर किया जा रहा है। खासतौर पर अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढहाने वालों को केंद्र से लेकर राज्य सरकारों का पूरा वरदहस्त प्राप्त है। स्वराज अभियान के प्रशांत भूषण का कहना है कि ऐसे तमाम मामलों को कमजोर किया जा रहा है जिसमें संघ से जुड़े लोग आतंकवादी घटना में संलिप्त पाए गए था। मालेगांव के बाद अब अजमेर ब्लास्ट का मामला सामने आया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को खुद संञान लेकर हस्तषप करना चाहिए।
गौरतलब है कि 2007 में अजमेर दरगाह में हुए विस्फोट में 3 लोग मारे गए थे औऱ 17 लोग घायल हुए थे। इसकी जांच का काम 2011 में नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) को सौंपा गया था।