असम के डिटेंशन सेंटर में 500 लोगों को कानूनी सहायता और 220 को चिकित्सा चाहिए- कमेटी
असम सरकार द्वारा नियुक्त किए गए रिव्यू कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूरे असम में सभी छह डिटेंशन सेंटर में रखे गए 500 से अधिक लोगों को कानूनी सहायता की जरूरत है जबकि करीब 220 लोगों को चिकित्सा व्यवस्था पर ध्यान देने की आवश्यकता है।अधिकारियों के मुताबिक कमेटी ने यह भी सुझाव दिया है कि हिरासत में लिए गए विदेशियों को जेलों में नहीं रखा जाए, बल्कि विशेष सुविधाओं के तहत रखा जाए।बता दें कि रिपोर्ट जनवरी के अंतिम सप्ताह में पेश की गई थी। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि रिपोर्ट में लगभग 500 व्यक्तियों के लिए कानूनी सहायता और 220 से अधिक लोगों के लिए चिकित्सा सहायता की सिफारिश की गईं है।
सेंटरों का दौरा
अधिकारी ने बताया कि रिव्यू कमेटी ने राज्य के गोलपारा, तेजपुर, कोकराझार, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और सिलचर में जेल से बाहर सभी छह अस्थायी डिटेंशन सेंटर का दौरा किया गया। समिति ने एक विशेष मोबाइल एप्लिकेशन के जरिए एकत्रित किए गए सभी डेटा को फीड किया गया था। कमेटी ने डिटेंशन सेंटरों में रखे गए 34 बच्चों और 290 महिलाओं सहित 996 व्यक्तियों से मुलाकात की। अधिकारी ने बताया, "कमेटी ने बच्चों के लिए शैक्षणिक सुविधाओं में सुधार के लिए लगभग 15 सुझाव दिए हैं और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का ध्यान रखने के लिए लगभग 25 सुझाव दिए गए हैं।" आगे उन्होंने बताया कि हिरासत में लिए गए करीब 260 लोग स्वस्थ पाए गए है।
किया अध्ययन
अधिकारी के मुताबिक कमेटी ने खाना पकाने, भोजन की गुणवत्ता, भंडारण, पानी की सुविधा, बिजली की आपूर्ति, बर्तनों के रखरखाव, शौचालय और स्नानघर की स्थिति सहित कई पहलुओं पर अध्ययन किया। गठित टीम ने डॉक्टर, खाद्य सुरक्षा अधिकारी, लोक निर्माण विभाग अधिकारी और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के सचिव सहित अन्य लोगों के साथ इन सेंटरों का दौरा किया।
दो लोगों की हुई थी मौत
पिछले साल अक्टूबर में गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में दो व्यक्ति की मौत हो गई गई थी जिन्हें डिटेंशन सेंटर में रखा गया था। उनमें से एक सोनितपुर जिले के ढेकियाजुली के 65 वर्षीय दुलाल चंद्र पॉल थे जिनके परिवार ने शव लेने से इनकार कर दिया था। उनकी मांग थी कि पॉल को पहले भारतीय नागरिक घोषित किया जाए या उनके शरीर को बांग्लादेश भेज दिया जाए क्योंकि राज्य के विदेशियों ने उन्हें पड़ोसी देश से संबंधित घोषित कर दिया था।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने नवंबर 2019 में संसद में जानकारी दी थी कि 2016 से 30 अक्टूबर 2019 तक 28 लोगों की मौत डिटेंशन सेंटर या अस्पताल में हुई, जहां उन्हें डिटेंशन सेंटर से रेफर किया गया था। गोलपारा डिटेंशन सेंटर में नरेश कोच का जनवरी में निधन हो गया था।
रिव्यू कमेटी का किया गठन
इसी बीच, आलोचना और विरोध के बाद राज्य सरकार ने बीते साल 25 अक्टूबर को डी. मुखर्जी की अगुआई में एक रिव्यू कमेटी का गठन किया था। मुखर्जी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) में पुलिस उप महानिरीक्षक के पद पर तैनात थे। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि कमेटी राज्य के सभी छह डिटेंशन सेंटरों का दौरा करेगी और हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक कानूनी सहायता और स्वास्थ्य की स्थिति की समीक्षा करेगी और सिफारिश करेगी।”
नए सेंटर में किए जा सकते है शिफ्ट
वहीं, दूसरे अधिकारी ने कहा कि रिव्यू कमेटी की सिफारिशों में यह भी कहा गया है कि जिन बच्चों को जेल में अनौपचारिक रूप से शिक्षा दी जाती है उन्हें एक प्रमाणपत्र जारी किया जाए ताकि उन्हें बाहर के उचित स्कूल में प्रवेश दिलाने में मदद हो सके। आगे उन्होंने कहा कि कमेटी की तरफ से यह भी कहा गया कि डिटेंशन सेंटर को जेलों से बाहर ले जाया जाए। बता दें कि मटिया में एक नया डिटेंशन सेंटर तैयार हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर होगा कि इन लोगों को जेल की बजाय वहां रखा जाए।
फिलहाल मटिया में डिटेंशन सेंटर को पूरा करने के लिए निर्माण कार्य जोरों पर है, जिसमें 3000 व्यक्तियों को रखा जा सकता है। यह 20 बीघा के परिसर में तैयार हो रहा है जिसमें अन्य सुविधाओं के साथ एक अस्पताल और एक स्कूल भी बनाया जा रहा है। इसके तैयार हो जाने के बाद छह डिटेंशन सेंटर में बंद लोगों को इसमें शिफ्ट किया जा सकता है।
मंत्रालय ने दिया था जवाब
बीते साल 10 दिसंबर को एक संसदीय प्रश्न के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा था कि 181 घोषित विदेशी थे, जिन्हें तीन साल या उससे अधिक समय तक हिरासत में रखने का सुझाव दिया गया, जिनमें से कई सुप्रीम कोर्ट के मई 2019 के आदेश में जमानत की शर्तों को पूरा नहीं कर पाएं। संभवत: उन्हें न्यायालय और कानूनी सहायता की आवश्यकता हो सकती है। गृह मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में यह भी उल्लेख किया था कि कोर्ट के आदेश के आधार पर 128 लोगों को रिहा किया गया।
गौरतलब है कि तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि तीन साल से अधिक समय तक हिरासत में रखे गए लोगों को रिहा किया जा सकता है अगर वे बायोमेट्रिक्स जमा करने सहित अन्य शर्तों को पूरा करते हैं, जिसमें सत्यापित पता, निकटतम पुलिस स्टेशन में साप्ताहिक मुलाक़ात आदि जैसे शर्त शामिल किए गए थे।
हालांकि, इस पूरे मामले पर रिव्यू कमेटी का नेतृत्व करने वाले डी मुखर्जी ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।