अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर सुरक्षित रखा फैसला, सभी पक्षों से मांगे नाम
अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ अहम सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद मध्यस्थता के लिए नाम सुझाने को कहा है। सुनवाई की शुरुआत में हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा। इससे पहले कोर्ट ने अयोध्या मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का सुझाव देते हुए कहा था कि वह रिश्तों को सुधारने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा है कि इस मामले में मध्यस्थता के लिए एक पैनल का गठन होना चाहिए। हिंदू महासभा मध्यस्थता के खिलाफ है। वहीं, निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए राजी है। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ही तय करे कि बातचीत कैसे हो?
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता सुरक्षित रखा फैसला
अयोध्या विवाद की मध्यस्थता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रखा। आज हुई सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया। यूपी सरकार ने भी इसे अव्यावहारिक बताया है जबकि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है। अयोध्या विवाद में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नाम मांगे हैं। सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा, मध्यस्थता के लिए सभी पक्ष सुझाएं नाम। हम जल्द सुनाना चाहते हैं फैसला।
'ये मामला जमीन से नहीं, बल्कि भावनाओं से जुड़ा है'
सुनवाई के दौरान जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा है कि ये मामला जमीन से नहीं, बल्कि भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसका हल आपसी सहमति से ही निकलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मध्यस्था को गोपनीय रखना चाहिए, क्योंकि इससे जुड़ी बातें बाहर आने पर विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है।
वहीं, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये मामला किसी पार्टी का नहीं बल्कि दो समुदाय के बीच का विवाद का है, इसलिए मामले को सिर्फ जमीन से नहीं जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा, हम उन्हें मध्यस्थता रेजोल्यूशन में कैसे बाध्य कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसला हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल है।
कोर्ट तय करे कैसे हो मध्यस्थता: मस्जिद पक्ष
मस्जिद पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा है कि हम मध्यस्थता या किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार हैं। हालांकि, उन्होंने ये भी अपील की है कि कोर्ट ही तय करे कि मध्यस्थता किस तरह होगी। इससे पहले राजीव धवन ने कहा कि इस मसले में भावनाएं भी मिली हुई हैं, मध्यस्थता में इस बात का तय होना भी जरूरी है कि कहां पर क्या बनेगा। सुनवाई के दौरान कई मुस्लिम पक्षों ने मध्यस्थता के लिए हामी भरी है।
मंदिर पक्ष ने कहा- मस्जिद कहीं और बने
रामलला के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या रामजन्मभूमि है, इसलिए ये राम जन्मस्थली को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। इसमें सिर्फ यही हो सकता है कि मस्जिद कहीं और बनें, हम इसके लिए क्राउडफंडिंग कर दें। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता का कोई सवाल ही नहीं है।
अतीत में जो हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं: जस्टिस बोबड़े
अयोध्या मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा, अतीत में जो हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, किसने आक्रमण किया, कौन राजा था, मंदिर या मस्जिद थी? हमें वर्तमान विवाद के बारे में पता है। हम केवल विवाद को सुलझाने के बारे में चिंतित हैं। इसलिए बातचीत से ही ये मामला सुधर सकता है।
उन्होंने कहा, यह भावनाओं, धर्म और विश्वास के बारे में है। हम विवाद की गंभीरता के प्रति सचेत हैं। जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर कोई केस मध्यस्थता को जाता है, तो उसके फैसले से कोर्ट का कोई लेना देना नहीं है।
मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है हिंदू महासभा
हिंदू महासभा की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्थता का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट में पार्टियां मान जाती हैं, तो आम जनता इस समझौते को नहीं मानेगी। इस पर जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि आप सोच रहे हैं कि किसी तरह का समझौता करना पड़ेगा कोई हारेगा, कोई जीतेगा। मध्यस्थता में हर बार ऐसा नहीं होता है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आजमाए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है पर हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं।
मध्यस्थता हुई तो क्या होगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए।
इससे पहले 25 फरवरी को हुई थी सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि इस मामले को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में पांच मार्च को आदेश दिया जाएगा। पीठ ने कहा था कि अगर मध्यस्थता की एक फीसदी भी संभावना हो तो राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस भूमि विवाद के समाधान के लिये इसे एक अवसर दिया जाना चाहिए।
दाखिल की गई थी कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट दाखिल की गई थी। भारत के प्रधान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वकीलों से कहा कि वे दस्तावेजों की स्थिति पर कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट का अध्ययन करें। इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि यदि अभी सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद स्वीकार्य है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उस पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अगले मंगलवार (5 मार्च) को आदेश पारित करेगा कि क्या समय बचाने के लिए अदालत की निगरानी में मध्यस्थता के लिए मामला भेजा जाए या नहीं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच अयोध्या में विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।
'सुनवाई शुरू होने के बाद दस्तावेजों के अनुवाद पर सवाल नहीं उठा सकेंगे'
इससे पहले 25 फरवरी को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अगर सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद मंजूर है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उस पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट में अनुवाद किए गए दस्तावेजों का ब्यौरा है। सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट में इस बात का भी ब्योरा है कि कितने-कितने पेज हैं और कौन-कौन सी भाषा और लिपि में दस्तावेज हैं। सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक अनुवादकों को और कितना समय चाहिए इसका भी ब्यौरा है।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई
इस मामले की सुनवाई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है जिसमें प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं।
यूपी सरकार ने सरकारी अनुवादक उपलब्ध कराए हैं: सीजेआई
इससे पहले हुई सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट राजीव धवन ने कहा था कि यदि आधिकारिक अनुवादकों का अनुवाद उपलब्ध हो तो वे इसका परीक्षण करने को तैयार हैं। इसके जवाब में सीजेआई ने कहा कि यूपी सरकार ने सरकारी अनुवादक उपलब्ध कराए हैं।
धवन ने कहा था कि ऐसी खबरें हैं कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से जुड़े सरकारी अनुवादक एक दिन में सिर्फ 12 पेज का अनुवाद कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'हमने यूपी सरकार द्वारा जमा किए गए कागजात नहीं देखे हैं।' इस पर मुस्लिम पक्ष के दूसरे एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि हमें बैठकर इस सारे दस्तावेजों को देखना होगा। यूपी सरकार के प्रतिनिधि ने कहा कि दस्तावेजों का परीक्षण चल रहा है। इस पर धवन ने कहा कि कुछ कागजात का आदान-प्रदान हुआ है, लेकिन समूचे दस्तावेजों का परीक्षण नहीं हुआ है।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 जनवरी को प्रस्तावित सुनवाई को 27 जनवरी को रद्द कर दिया था, क्योंकि न्यायमूर्ति बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं थे। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दाखिल की गयी हैं।
क्या है इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
चार दीवानी मामलों में दिये गये इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटा जाए।
25 को किया गया था पीठ का पुनर्गठन
गत 25 जनवरी को पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया गया था क्योंकि पहले पीठ में शामिल रहे न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को सुनवाई के दौरान मौजूद रहने को कहा
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या में विवादित राम मंदिर में पूजा के अपने मौलिक अधिकार पर अमल के लिए दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई का सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया। न्यायालय ने स्वामी से कहा कि वह अयोध्या मामलो की सुनवाई के दौरान मंगलवार को उपस्थित रहें।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से स्वामी ने अनुरोध किया कि उनकी याचिका पर अलग से सुनवाई की जाये। इस पर पीठ ने स्वामी से कहा कि अयोध्या प्रकरण के मुख्य मामले की मंगलवार को सुनवाई होगी और वह इस दौरान न्यायालय में मौजूद रहें।
पिछले साल स्वामी की याचिका हुई थी खारिज
शीर्ष अदालत ने पिछले साल स्वामी को अयोध्या भूमि विवाद मामले में हस्तक्षेप की अनुमति देने से इंकार कर दिया था और स्पष्ट किया था कि मूल पक्षकारों के अलावा किसी अन्य को इसमें पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी जायेगी। हालांकि, पीठ ने स्वामी की इस दलील पर विचार किया था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने तो अयोध्या में राम लला के जन्म स्थान पर पूजा करने के अपने मौलिक अधिकार को लागू कराने के लिये अलग से याचिका दायर की है। पीठ ने कहा कि चूंकि हम हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दे रहे हैं, इसलिए स्वामी की याचिका पुनर्जीवित मानी जायेगी और इस पर उचित पीठ कानून के अनुसार विचार करेगी।