बंजारा के अच्छे दिन आए
ये दोनों अधिकारी इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी हैं। यह घटना 2004 में अहमदाबाद में हुई थी। तब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे।
लंबे अरसे से जमानत की राह देख रहे बंजारा और पांडेय को उम्मीद तब जाग उठी जब इस मामले में कई तथाकथित आरापियों को जमानत मिल गई। कुछ को इस केस से पूरी तरह से बरी कर दिया गया।
बंजारा सात साल से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं और इशरत जहां के अलावा सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति के केस में भी आरोपी थे। सीबीआई की विशेष अदालत ने बंजारा को सशर्त जमानत दी है और कहा है कि बंजारा भारत छोड़ कर नहीं जा सकते हैं और न ही गुजरात में प्रवेश कर सकते हैं। इसके साथ ही ५०-५० हजार रुपये के दो अलग-अलग बांड पर जमानत दी है। इससे पहले मुंबई की अदालत ने मुंबई न छोड़ने का निर्देश भी दिया है।
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक सीबीआई अदालत के न्यायाधीश केआर उपाध्याय ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पांडेय को एक लाख रुपये के निजी मुचलके के साथ दो जमानती बांड भरने पर जमानत दी। वह जुलाई 2013 में अदालत के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद से जेल में बंद थे। सीबीआई अदालत ने वर्ष 2004 में इस घटना के समय शहर के संयुक्त पुलिस आयुक्त रहे पांडेय को अपना पासपोर्ट जमा करने और बिना पूर्व अनुमति के देश छोडकर नहीं जाने का भी निर्देश दिया।
पन्द्रह जून 2004 को शहर के बाहरी इलाके में एक मुठभेड में अहमदाबाद अपराध शाखा के अधिकारियों ने मुंबई की 19 वर्षीय छात्र इशरत जहां, प्रनेश पिल्लै उर्फ जावेद शेख, अमजद अली राना और जीशान जौहर की कथित रुप से हत्या करने की घटना के समय पांडेय संयुक्त पुलिस आयुक्त थे।
सीबीआई का कहना है कि यह फर्जी मुठभेड थी जिसकी साजिश गुजरात पुलिस और आइबी ने संयुक्त रूप से रची थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान, पांडेय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निरुपम नानावती ने कहा कि इस मामले में एक अन्य आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा के इशारे पर उनके मुवक्किल पर मामला दर्ज किया गया। सीबीआई की ओर से पेश लोक अभियोजक एलडी तिवारी ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पांडेय चार लोगों की हत्या से जुडी साजिश में शामिल थे।