जीत से उत्साहित भाजपा अब राष्ट्रपति चुनाव पर लगाएगी दाव
गोवा और उत्तर प्रदेश में सरकारों के मुखिया जो बने हैं वह सांसद हैं। गोवा में मनोहर पर्रिकर और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं। वहीं, केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने हैं। ये तीनों ही राज्यों में नई जिम्मेदारियां उठा रहे हैं और क्योंकि तीनों संसद के सदस्य है तो इन तीनों सांसदों को संसद सदस्यता छोड़नी होगी, लेकिन छह महीने के भीतर राष्ट्रपति चुनाव होना है। ऐसे में राष्ट्रपति पद की गरिमा और महत्ता को समझते हुए भाजपा ने नई रणनीति तैयार की है। ऐसा अनुमानित है कि जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले अब ये सांसद संसद सदस्यता नहीं छोड़ेंगे।
नियमानुसार इन तीनों भाजपा नेताओं (मनोहर पर्रिकर, योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या) को पद पर नियुक्ति के छह महीने के भीतर चुनाव जीतना होगा। इन लोगों का यह छह महीने सितंबर तक पूरा होता है जबकि राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई में होना तय किया गया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि वह अपने इन सांसदों को राष्ट्रपति चुनाव तक इस्तीफा नहीं देने देगी। इसके अलावा भाजपा कुछ और बातों पर भी ध्यान दे रही है ताकि जो थोड़ी बहुत कमी रह गई है उसे भी पूरा किया जा सके।
भाजपा नेताओं का कहना है कि अब इन चुनावों के बाद पार्टी ने अपना पूरा ध्यान राष्ट्रपति चुनाव पर केंद्रित किया है। कहा जा रहा है कि बीजेपी हालिया विधानसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाना चाह रही है।
गौरतलब है कि यूपी सीएम आदित्यनाथ योगी और केशव प्रसाद मौर्य के पास दो विकल्प हैं। अगर वे चाहें तो विधानसभा का उप-चुनाव लड़ सकते हैं या फिर विधान परिषद में भी चुने जा सकते हैं। योगी आदित्यनाथ से पहले अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही विधान परिषद के सदस्यता के साथ मुख्यमंत्री पद पर रहे थे। यानि यह साफ है कि राज्य के इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था।
हमारे देश में राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के ज़रिये होता है, और राष्ट्रपति निर्वाचक मंडल में निर्वाचित सांसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य होते हैं। इस निर्वाचक मंडल में 4,120 विधायकों और 776 निर्वाचित सांसदों सहित कुल 4,896 मतदाता होते हैं। जहां लोकसभा अध्यक्ष निर्वाचित सदस्य होने के नाते मतदान कर सकते हैं, वहीं लोकसभा में मनोनीत दो एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य और राज्यसभा में 12 मनोनीत सदस्य मतदान नहीं कर सकते।