बोफोर्स मामला: आरोप निरस्त करने के हाईकोर्ट के फैसले को सीबीआई ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सारे आरोप निरस्त करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
CBI has filed a special leave petition in the Bofors case, since new facts have come to light that need to be investigated after due facts: CBI
— ANI (@ANI) February 2, 2018
बोफोर्स तोप सौदा दलाली कांड में जांच ब्यूरो द्वारा याचिका दायर करना एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि हाल ही में अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ 12 साल बाद अपील दायर नहीं करने की उसे सलाह दी थी।
हालांकि सूत्रों ने बताया कि गहन विचार विमर्श के बाद विधि अधिकारियों ने अपील दायर करने की हिमायत की क्योंकि जांच ब्यूरो ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिये ‘‘कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और साक्ष्य’’ उनके समक्ष पेश किये।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर एस सोढी (अब सेवानिवृत्त) ने 31 मई, 2005 को अपने फैसले में 64 करोड़ रूपए की दलाली मामले में हिन्दुजा बंधुओं सहित सारे आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया था।
इससे पहले, अटार्नी जनरल ने जांच ब्यूरो को सलाह दी थी कि उच्च न्यायालय के 2005 के फैसले को चुनौती देने वाली भाजपा नेता अजय अग्रवाल की याचिका में ही बतौर प्रतिवादी अपना मामला बनाये। जांच एजेन्सी द्वारा फैसला सुनाये जाने के 90 दिन के भीतर उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करने में विफल रहने पर अजय अग्रवाल ने याचिका दायर की थी।
अग्रवाल, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी को राय बरेली में चुनौती दी थी, लंबे समय से शीर्ष अदालत में इस मामले में सक्रिय हैं।
भारत और स्वीडन की हथियारों का निर्माण करने वाली एबी बोफोर्स के बीच सेना के लिये 155एमएम की 400 हाविट्जर तोपों की आपूर्ति के बारे में 24 मार्च, 1986 में 1437 करोड रूपए का करार हुआ था।
इसके कुछ समय बाद ही 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि इस सौदे में बोफोर्स कंपनी ने भारत के शीर्ष राजनीतिकों और रक्षाकार्मिकों को दलाली दी।
इस मामले में 22 जनवरी, 1990 को केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ प्राथिमकी दर्ज की थी।
इस मामले में जांच ब्यूरो ने 22 अक्तूबर, 1999 को चड्ढा, ओतावियो क्वोत्रोक्कि, तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ पहला आरोप पत्र दायर किया था। इसके बाद, नौ अक्तूबर, 2000 को हिन्दुओं बंधुओं के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया गया।
दिल्ली में विशेष सीबीआई अदालत ने चार मार्च, 2011 को क्वोत्रोक्कि को यह कहते हुये आरोप मुक्त कर दिया था कि देश उसके प्रत्यपर्ण पर मेहनत से अर्जित राशि खर्च करना बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि इस मामले में पहले ही 250 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं।
क्वौत्रोक्कि 29-30 जुलाई 1993 को देश से भाग गया ओर कभी भी मुकदमे का सामना करने के लिये देश की अदालत में पेश नहीं हुआ। बाद में 13 जुलाई, 2013 को उसकी मृत्यु हो गयी। यह मामला लंबित होने के दौरान ही पूर्व रक्षा सचिव भटनागर और विन चड्ढा का भी निधन हो चुका है।