जनवरी से लगेगी कोरोना वैक्सीन, जानें भारत की क्या है तैयारी
कोविड वैक्सीन विकसित करने में समय के साथ चल रही रेस में अब इनसान जीतता नजर आ रहा है। ब्रिटेन दुनिया का पहला देश बन गया है जहां फाइजर-बॉयोएनटेक की पहली वैक्सीन 8 दिसंबर 2020 को 90 साल की मार्गरेट कीनन को लगाई गई है। रूस ने भी ऐलान किया है कि वह जल्द ही अपने सभी नागरिकों को वैक्सीन लगाने का काम शुरू कर देगा। भारत भी इस दिशा में बढ़ रहा है। 4 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि कुछ हफ्तों में भारत में भी वैक्सीन लगाने का काम शुरू हो जाएगा। उम्मीद इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर बनाई गई पहली मेड-इन-इंडिया वैक्सीन, ‘कोवीशील्ड’ और भारत बॉयोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (आइसीएमआर) के साथ मिलकर बनाई जा रही ‘कोवैक्सीन’ की आपात मंजूरी के लिए आवेदन कर दिया है। सीरम और भारत बॉयोटेक की तरह फाइजर ने भी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआइ) से इसकी आपात मंजूरी मांगी है।
दिल्ली में कोविड का इलाज
इस बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर और कोविड-19 प्रबंधन के लिए बनी टॉस्क फोर्स के सदस्य डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बयान दिया है, “दुनिया भर में अलग-अलग वैक्सीन का 70 हजार से 80 हजार लोगों पर परीक्षण किया जा चुका है और किसी भी वॉलंटियर पर विपरीत असर नहीं हुआ। उम्मीद है कि इस महीने के अंत में या फिर अगले साल की शुरुआत में वैक्सीन हमें मिल जाएगी।”
ऐसे समय जब पिछले एक साल से लोगों को डरा रहे कोरोनावायरस के खिलाफ चारों तरफ से अच्छी खबरें आ रही हैं, तो सवाल यह उठता है कि वैक्सीन किसे पहले मिलेगी, उसकी कीमत क्या होगी और यह कब तक लगनी शुरू हो जाएगी। सरकार ने स्पष्ट किया है कि शुरू में ज्यादा जोखिम वालों को ही वैक्सीन लगाई जाएगी। इसकी पूरी योजना स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से राज्यों को भेज दी गई है।
सबसे पहले एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन लगाई जाएगी। उसके बाद दूसरे चरण में दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स को वैक्सीन लगेगी। फ्रंटलाइन वर्कर्स में पुलिस, सुरक्षा बल, म्युनिसिपल कर्मचारी और दूसरी जरूरी सेवाएं देने वाले कर्मचारी शामिल होंगे। इसके बाद उन 27 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जाएगी, जिन पर कोविड-19 बीमारी का खतरा ज्यादा है। इनमें ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग होंगे। इसके लिए सभी राज्यों से 5 दिसंबर तक योग्य लोगों की सूची मांगी गई थी। सूत्रों के अनुसार ज्यादातर राज्यों ने अपने डाटा अपडेट कर दिए हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आउटलुक से बातचीत में इस योजना के बारे में कहा था, “सरकार का लक्ष्य है कि जुलाई 2020 तक देश के 30 करोड़ लोगों को कोराना-19 की वैक्सीन यथासंभव लगा दी जाए।”
इस बीच, आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव के बयान ने कन्फ्यूजन बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा, “हमारा मकसद कोरोना की ट्रांसमिशन चेन को तोड़ना है। अगर हम इस संदर्भ में अहम आबादी (क्रिटिकल मास) को वैक्सीन लगाकर कोरोना ट्रांसमिशन रोकने में कामयाब रहे तो शायद पूरी आबादी को वैक्सीन लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने भी बयान दिया कि सरकार ने कभी नहीं कहा कि पूरे देश में टीकाकरण की जरूरत पड़ेगी।
इस पर प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट और सीएमसी वेल्लोर के पूर्व प्रमुख डॉ. टी. जैकब जॉन का कहना है, “कोरोना को रोकने के लिए सबसे अहम बात यही है कि संक्रमण की चेन को तोड़ा जाए। वह जोखिम वाले लोगों को वैक्सीन लगाकर तोड़ी जा सकती है। ऐसे में यह जरूरी नहीं कि देश के हर नागरिक को वैक्सीन लगाई जाए। अभी हमें यह भी पता नहीं है कि वैक्सीन कितनी प्रभावी होगी और उसका असर कितने समय तक रहेगा। यह सब तो वैक्सीन लगने के बाद ही पता चलेगा।”
ब्रिटेन में मार्गरेट कीनन
वैक्सीन के असर को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण ही हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कोरोना पॉजिटिव होना सुर्खियां बन गया। दरअसल विज ने 20 नवंबर को स्वेच्छा से कोरोना-19 वैक्सीन के परीक्षण के लिए टीका लगवाया था। उसके 15 दिन बाद ही वे कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस कारण यह बहस भी छिड़ गई कि भारत बॉयोटेक का स्वदेशी टीका कितना सुरक्षित और कारगर है। लेकिन कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे डॉ. प्रशांत गुप्ता इसे चिंता की बात नहीं मानते। वे कहते हैं, “अभी कोरोना वैक्सीन का परीक्षण चल रहा है। दूसरे, उन्हें (विज को) केवल एक डोज दिया गया था। जब तक वैक्सीन को अंतिम मंजूरी नहीं मिल जाती, तब तक सवाल उठाना ठीक नहीं है।”
इस पूरे घटनाक्रम पर भारत बॉयोटेक ने भी सफाई दी है। उसका कहना है, “कोवैक्सीन का क्लीनिकल ट्रॉयल दो डोज के आधार पर किया जा रहा है। वैक्सीन कितनी प्रभावी है, उसका आकलन दूसरा डोज दिए जाने के 14 दिन बाद किया जा सकता है। कंपनी इस समय देश के 25 केंद्रों पर 26 हजार से ज्यादा लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण कर रही है।”
वैक्सीन के असर और किसे कितनी डोज मिलनी चाहिए, इसे लेकर अभी सरकार बहुत कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी कहा है कि सबसे बड़ी चिंता वैक्सीन के असर को लेकर है, क्योंकि यह तो वैक्सीन लगने के बाद ही पता चलेगा। उनका कहना है कि अगर वैक्सीन बहुत प्रभावी नहीं हुई तो यह बड़ी चिंता की बात होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बार-बार कहा है, “अभी वैक्सीन के डोज को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि वह कितनी डोज में दी जाएगी। इन सबके लिए हमें अभी धैर्य रखना होगा।”
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री वैक्सीन ट्रायल में शामिल हुए, लेकिन फिर भी पॉजिटिव पाए गए
इस बीच भारत ने वैक्सीन की करीब 160 करोड़ डोज की प्री-बुकिंग कर ली है। लांच एंड स्केल की रिपोर्ट और अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर के मुताबिक भारत ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका की कोवीशील्ड वैक्सीन के 50 करोड़ डोज खरीदने का करार किया है। वहीं, अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स से 100 करोड़ डोज और रूस के गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट से स्पूतनिक वी वैक्सीन के 10 करोड़ डोज मिलने वाले हैं।
कीमत पर रुख साफ नहीं
अब जब यह साफ हो गया है कि वैक्सीन जल्द ही मिल जाएगी, तो सबके मन में यही सवाल है कि हमें वैक्सीन मुफ्त में मिलेगी या पैसे देने होंगे। इस पर अभी तक केंद्र सरकार ने स्थिति साफ नहीं की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक के दौरान कहा, “वैक्सीन की कीमत क्या होगी, उसका क्या मेकैनिज्म होगा, इन सब पर अभी राज्यों के साथ मिलकर विचार किया जा रहा है।” हालांकि अगर दूसरे देशों में देखा जाए तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे और पाकिस्तान में मुफ्त वैक्सीन लगाने का ऐलान कर दिया गया है।
इसी तरह का ऐलान बिहार चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी किया था। लेकिन उसके बाद से पूरे देश में क्या स्थिति होगी, इस पर पार्टी चुप है। सरकार के इस रवैये पर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि सरकार स्पष्ट करे कि लोगों को वैक्सीन कब मिलेगी। साथ ही पार्टी ने प्रधानमंत्री को बिहार का चुनावी वादा भी याद दिलाया है। पार्टी ने यह भी कहा है कि सरकार देश की बड़ी आबादी को मुफ्त में वैक्सीन दिलाने की ठोस योजना पेश करे। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उपाध्यक्ष तेजस्वी यादव ने चुटकी लेते हुए कहा, “भाजपा जुमलेबाज पार्टी है। उसके चुनावी वादी जुमले ही साबित होते हैं।” राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने सबको मुफ्त में वैक्सीन देने की मांग की है।
एक अनुमान के मुताबिक अगर सरकार लोगों को मुफ्त में वैक्सीन लगाने का फैसला नहीं करती है, तो प्रत्येक आदमी को औसतन दो डोज के लिए 800-1000 रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। यानी एक छोटे परिवार के लिए भी करीब 4,000 रुपये का खर्च आएगा। भारत जैसे देश में, जहां 8 करोड़ लोग बेहद गरीबी में जीते हैं, 25-30 करोड़ आबादी बड़ी मुश्किल से अपना गुजर-बसर कर पाती है, उसके लिए यह रकम काफी बड़ी साबित होगी। ऐसे में सरकार को यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम के तहत कोविड-19 वैक्सीन का टीका लगाना चाहिए।
पुराने अनुभव का भरोसा
वैक्सीन वितरण को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। मसलन, वह इतनी बड़ी आबादी तक कैसे पहुंचेगी और कोल्ड स्टोरेज की क्या व्यवस्था होगी? इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “देखिए सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बॉयोटेक की वैक्सीन अंतिम चरण में हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो जनवरी तक इन कंपनियों की वैक्सीन को मंजूरी मिल जाएगी। इसके अलावा तीन और कंपनियों की वैक्सीन एडवांस स्टेज में हैं, जिनके अप्रैल तक बाजार में आने की उम्मीद है। रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन का भी डॉ. रेड्डीज के साथ ट्रायल चल रहा है। ऐसे में हम आसानी से जून-जुलाई तक 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन उपलब्ध करा सकेंगे।”
उक्त अधिकारी के अनुसार, 130 करोड़ आबादी को टीका तो चरणबद्ध तरीके से ही लगाना होगा। भारत में 1984 से ‘सर्व टीकाकरण अभियान’ चल रहा है। इसलिए हमारे पास अनुभवी वैक्सीन लगाने वालों का तंत्र है। रही बात कोल्ड स्टोरेज चेन की, तो भारत में बेहद आसानी से 2-8 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान पर वैक्सीन वितरण करने का पूरा नेटवर्क है। इस समय करीब 28 हजार कोल्ड चेन केंद्र हैं। 76 हजार कोल्ड चेन उपकरण, 55 हजार से ज्यादा चेन हैंडलर और 25 लाख हेल्थ वर्कर हैं। यानी भारत के पास पहले से तैयार एक सिस्टम है।
सबसे अहम बात यह है कि भारत में जो वैक्सीन विकसित हो रही हैं, उन्हें इससे कम तापमान पर रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हां, फाइजर की वैक्सीन के इस्तेमाल में दिक्कत आ सकती है क्योंकि उसके लिए -70 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत पड़ेगी।
पूरे देश में वैक्सीन पहुंचाने के लिए सरकार ने दिल्ली और हैदराबाद एयरपोर्ट को तैयार किया है। दिल्ली एयरपोर्ट के कार्गो एरिया में -20 से -25 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान पर चीजें रखी जा सकती हैं। वैक्सीन ट्रांसपोर्टेशन के लिए हैदराबाद एयरपोर्ट का कार्गो एरिया भी पूरी दुनिया में अपनी पहचान रखता है। यह भारत का पहला फार्मा जोन वाला एयरपोर्ट भी है। वैक्सीन के लिए आइटी सिस्टम भी भारत के 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मौजूद है। इसके लिए पूरा इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क (ईवीआइएन) तैयार किया गया है, जिसके जरिए वैक्सीन का पूरा अपडेट रियल टाइम होगा।
लेकिन ऐसा नहीं कि यह सिस्टम ‘फुल प्रूफ’ है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनीसेफ की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत वैक्सीन प्रबंधन के मामले में 89 देशों की रैकिंग में 51-57 पर्सेंटाइल रेंज में आता है। इसे बहुत अच्छा नहीं माना जा सकता। भारत को इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
गरीब देश लाचार
अपने ज्यादा से ज्यादा लोगों तक कोरोना-19 वैक्सीन पहुंचाने के लिए दुनिया के सभी देशों में होड़ मच गई है। आलम यह है कि कई देशों ने जरूरत से पांच गुना तक वैक्सीन की प्री-बुकिंग करा दी है। ऐसे में सवाल है कि गरीब देश कहीं अमीर देशों के आगे लाचार न हो जाएं। ग्लोबल रिसर्चर्स के विश्लेषण के अनुसार कई देशों ने अपनी आबादी से ज्यादा वैक्सीन के लिए प्री-ऑर्डर बुक किए हैं। कनाडा ने अपनी आबादी से 527 फीसदी ज्यादा वैक्सीन बुक की है। वहीं ब्रिटेन ने 288 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया ने 266 फीसदी, चिली ने 223 फीसदी, यूरोपीय संघ ने 199 फीसदी, अमेरिका ने 169 फीसदी और जापान ने 115 फीसदी ज्यादा वैक्सीन की प्री-बुकिंग की है। वजह यह कि कोई वैक्सीन नाकाम रही और अप्रूवल स्टेज तक नहीं पहुंच सकी तो दूसरी वैक्सीन तैयार मिले।
ड्यूक यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के मुताबिक ऊंची आमदनी वाले देशों ने अपने लिए 380 करोड़ डोज सुरक्षित किए हैं। उच्च मध्यम आय वाले देशों ने 82.9 करोड़ डोज और निम्न आय वाले देशों ने 170 करोड़ डोज हासिल किए हैं। जाहिर है, कोरोना वैक्सीन की लड़ाई में अमीर और गरीब का अंतर दिख रहा है। लेकिन सबको यह समझना चाहिए कि यह वायरस अमीर और गरीब का भेद नहीं कर रहा है।
देश में हालात
आधे घंटे में पूरा होगा वैक्सीन लगाने का काम
वैक्सीन लगने के बाद थोड़ी देर निगरानी में रहना होगा
अब तक 97 लाख संक्रमित, 91 लाख ठीक हो चुके हैं (7 दिसंबर तक)
अब केवल 3.82 लाख सक्रिय मामले
1.41 लाख लोगों की हुई मौत
यूपी बना नजीर
कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों की विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सराहना की
करीब 22 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश के लिए कोविड-19 महामारी का खतरा कई मायनों में बहुत ज्यादा था। घनी आबादी और कमजोर हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से विशेषज्ञ लागातार इस बात की चिंता जता रहे थे कि अगर प्रदेश में संक्रमण तेजी से फैला तो उसे रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा। लॉकडाउन के समय नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, वाराणसी में तेजी से फैलते संक्रमण के आंकड़े इसकी गवाही भी दे रहे थे।
लेकिन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में तेजी और प्रभावी कार्रवाई का असर यह हुआ है कि अब प्रदेश में संक्रमण का ग्राफ काफी गिर चुका है। संक्रमण के मामले में वह महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों से बेहतर स्थिति में है। कोविड-19 डॉट ओआरजी के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में सात दिसंबर तक 5.56 लाख संक्रमित केस आए। इनमें से 5.26 लाख लोग ठीक हो चुके हैं। इस वक्त केवल 21,732 सक्रिय केस हैं। प्रदेश में 7,944 लोगों की मौत कोरोना से हुई है। प्रदेश में 2.04 करोड़ लोगों की टेस्टिंग भी की जा चुकी है, जो देश के किसी भी राज्य में की गई सबसे ज्यादा टेस्टिंग है।
संक्रमण रोकने की कार्रवाई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी सराहा है। डब्ल्यूएचओ के कंट्री रिप्रजेंटेटिव रोड्रिको ऑफ्रिन के अनुसार कांट्रैक्ट ट्रेसिंग में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास काफी सराहनीय हैं और यह दूसरे राज्यों के लिए भी एक नजीर बन सकता है। ज्यादा जोखिम वाले लोगों को ट्रेस करने से संक्रमण की चेन को रोकने में काफी मदद मिली है। इसके लिए राज्य के 70 हजार से ज्यादा फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मियों ने काफी अच्छा काम किया है। राज्य के सभी 75 जिलों में सबसे अधिक जोखिम वाले लोगों की पहचान की गई। इसके अलावा त्योहारों को देखते हुए खास इंतजाम किए गए जिसके अच्छे परिणाम आए हैं। इस पर अपर मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) अमित मोहन कहते हैं, “शुरू में युद्ध स्तर पर काम करके स्थिति को संभाला गया, फिर सरकार ने अपने काम को अंजाम देना शुरू किया।”
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कोविड-19 से निपटने के लिए टीम-11 का भी गठन किया, जो लगातार पूरे मामले पर नजर रखती है। इसके तहत प्रत्येक अधिकारी को विशेष काम सौंपे गए थे। इसी टीम की प्रतिदिन मुख्यमंत्री आदित्यनाथ मीटिंग लेते थे। इन सबका असर यह हुआ कि संक्रमण की स्थिति काफी संभल गई है।
लखनऊ से आलोक पांडे
“दुनिया भर में अलग-अलग वैक्सीन का 70 हजार से 80 हजार लोगों पर परीक्षण किया जा चुका है और विपरीत असर नहीं हुआ। उम्मीद है कि अगले साल की शुरूआत में वैक्सीन हमें मिल जाएगी।” डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान (एम्स)