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14 February 2019

दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद: ACB केंद्र के पास, ट्रांसफर-पोस्टिंग पर बड़ी बेंच करेगी सुनवाई

दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। हालांकि दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण किसके पास है, इसपर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की राय अलग-अलग रही। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर अपना खंडित फैसला बड़ी बेंच के पास भेज दिया। हालांकि दो सदस्यीय बेंच भ्रष्टाचार रोधी शाखा (एसीबी), राजस्व, जांच आयोग और लोक अभियोजक की नियुक्ति के मुद्दे पर सहमत हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस अधिसूचना को बरकरार रखा है कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि केंद्र के पास जांच आयोग नियुक्त करने का अधिकार होगा। फैसले के तहत स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा। वहीं, ऐंटी-करप्शन ब्रांच केंद्र के अधीन रहेगी क्योंकि पुलिस केंद्र के पास है। रेवेन्यू पर एलजी की सहमति लेनी होगी। इलेक्ट्रिसिटी मामले में डायरेक्टर की नियुक्ति सीएम के पास होगी।

ट्रांसफर व पोस्टिंग पर दो राय

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जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में कहा कि ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग केंद्र सरकार करेगी जबकि ग्रेड-3 और ग्रेड-4 के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का मामला दिल्ली सरकार के अधीन होगा। यदि कोई मतभेद होता है तो मामला राष्ट्रपति को जाएगा। दो जजों की बेंच में शामिल जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सर्विसेज केंद्र के पास रहेगा। ऐसे में दोनों जजों की राय बंट गई।

बेंच ने 1 नवंबर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था

जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन्स को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 1 नवंबर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। 2014 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच प्रशासनिक अधिकारों के लिए गतिरोध जारी है।

संवैधानिक बेंच ने सीमित किए थे एलजी के अधिकार

4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि दिल्ली में एलजी मंत्री परिषद के सलाह से काम करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एलजी के अधिकार को सिमित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र रूप से काम नहीं करेंगे यदि कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे, उस पर अमल करेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से मामले को उठाया गया और कहा गया कि सर्विसेज और एंटी करप्शन ब्रांच जैसे मामले में गतिरोध कायम है। दिल्ली सरकार के वकील ने 10 जुलाई 2018 को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कई मुद्दों पर गतिरोध कायम है। ऐसे में इस मुद्दे पर सुनवाई की जरूरत है।

कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि दिल्ली में सर्विसेज को संचालित करने का अधिकार एलजी के पास है। साथ ही यह भी कहा था कि शक्तियों को दिल्ली के प्रशासक को सौंप दिया जाता है और सेवाओं को उसके (एलजी) माध्यम से प्रशासित किया जा सकता है। केंद्र ने यह भी कहा था कि जब तक भारत के राष्ट्रपति स्पष्ट रूप से निर्देश नहीं देते, तब तक एलजी (दिल्ली के प्रशासक) मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद से परामर्श नहीं कर सकते।

वहीं दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा था कि एलजी को कैबिनेट की सलाह पर काम करना है। जैसे ही जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में हो, तभी वह दिल्ली प्रशासन के अंदर आ जाता है। दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए क्योंकि सीआरपीसी में ऐसा प्रावधान है।

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TAGS: delhi govt vs lg, Supreme Court, pronounce verdict, control of services in Delhi
OUTLOOK 14 February, 2019
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