दीमापुर हत्या: भीड़ के न्याय के पक्ष में शिवसेना
दीमापुर में बलात्कार के एक आरोपी की पीट-पीटकर की गई हत्या पर केंद्र ने भले ही नगालैंड सरकार से रिपोर्ट मांगी है पर उसकी सहयोगी शिवसेना ने भीड़ के गुस्से को वाजिब ठहराने की कोशिश करते हुए कहा है कि यह महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों पर जनाक्रोश को दिखाता है।
शिवसेना ने यह भी कहा कि 16 दिसंबर, दिल्ली सामूहिक बलात्कार के गुनहगारों के साथ जो अंजाम होना चाहिए था वह नगालैंड में हुआ है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक संपादकीय में कहा गया है, नगालैंड के लोग लंबे समय से बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का विरोध कर रहे हैं। लेकिन, उनके विरोध को नजरंदाज किया गया। बलात्कार की इस घटना पर जनाक्रोश फट पड़ा... इस घटना से लोगों का धैर्य जवाब दे गया... यह बढ़ते यौन अपराधों के खिलाफ जनाक्रोश है।
शिवसेना ने यह भी कहा कि पीट-पीटकर हत्या को कानून और व्यवस्था की नाकामी की घटना बताना मजाक होगा, खास कर तब जब सरकार महिलाओं के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों पर ठीक से कार्यवाई नहीं कर पा रही है। इसमें कहा गया है, कहा जा रहा है कि सरेआम व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या और फांसी पर लटकाना कानूनी तंत्र की विफलता है। यह अपने आप में एक मजाक है... अबला से बलात्कार के चलते कानून और व्यवस्था ध्वस्त हो गई, ऐसा सरकारी तंत्र को नहीं लग रहा बल्कि सरेआम दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिए जाने पर उसे अहसास हो रहा है।
शिवसेना ने कहा कि जो घटना 16 दिसंबर, दिल्ली सामूहिक बलात्कार के गुनहगारों पर घटित होनी चाहिए थी इत्तेफाक से वह नगालैंड में हुई है। संपादकीय में कहा गया है, दिल्ली में जो होना चाहिए था वह नगालैंड में घटित हुआ। 16 दिसंबर सामूहिक बलात्कार मामले में आरोपी अभी तिहाड़ जेल में है और विदेशी खबरिया चैनल टीवी पर उसकी जिंदगी को ऐसे दिखा रहा है जैसे कि वह नायक है।
बलात्कार के मामले में कार्यवाई की धीमी प्रगति की आलोचना करते हुए इसमें कहा गया है, बलात्कार के मामले पर हमारा न्यायिक तंत्र घोंघे चाल से चलता है। चाहे जितना भी मामला मजबूत हो हम आश्वस्त नहीं हो सकते कि बलात्कारी को फांसी होगी ही। और अगर आरोपी नाबालिग है तो उसे बाल सुधार गृह भेजा जाता है जहां मानवीयता के नाम पर उसे सभी तरह की सुविधाएं मुहैया कराई जाती है।
इसमें कहा गया है कि दीमापुर में बलात्कार के आरोपी की पीट-पीटकर हत्या की घटना को कोई तालिबानी कृत्य कहेगा तो पहले उसे विचार करना होगा कि आखिर जनता ने कानून अपने हाथ में क्यों लिया है।