पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का निधन, शोक की लहर
वह शिलांग के भारतीय प्रबंधन संस्थान में लेक्चर दे रहे थे और अचानक हुए तेज हृदयाघात के कारण बीच ही गिर पड़े। उन्हें स्थानीय बेथनी अस्पताल जे जाया गया जहां डॉक्टरों ने जांच कर पाया कि उनकी मौत हो चुकी है। डॉ. कलाम के निधन की सूचना मिलते ही केंद्र सरकार ने देश में सात दिनों के राजकीय शोक की घोषणा कर दी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह समेत देश के गणमाण्य लोगों ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर गहरा शोक जताया है।
15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वर के धनुषकोडी गांव में एक निम्न मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में कलाम के पिता जैनुलआबेदीन मछुआरों को नाव किराए पर देने का काम करते थे। इनका शुरुआती जीवन बहुत अभाव में बीता जिसके कारण डॉ. कलाम के जीवन में सादगी हमेशा के लिए बस गई। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक डॉ. कलाम एक शिक्षक की भूमिका में रहे क्योंकि अपने कॅरिअर के दौरान भी उन्हें सबसे आनंद अपना ज्ञान बांटने में ही आता था। उन्होंने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने होवरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में आए जहां उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी कलाम को ही दिया जाता है। डॉ. कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) प्रक्षेपास्त्रों को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइलों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। कलाम जुलाई, 1992 से दिसंबर 1999 तक रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे। उन्होंने स्ट्रेटेजिक मिसाइल्स सिस्टम का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु विस्फोट में भी उनकी भूमिका रही। विज्ञान के क्षेत्र में इनकी उपब्धियों और देश के प्रति निष्ठा को देखते हुए जुलाई, 2002 में तत्कालीन राजग सरकार ने इन्हें देश के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। उन्हें वाम दलों के अलावा सभी दलों का जबरदस्त समर्थन मिला और 90 फीसदी से ज्यादा बहुमत के साथ वह देश के 11वें राष्ट्रपति चुन लिए गए।
डॉ. कलाम ने अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन, शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन किया। उनके अध्ययन कक्ष में कुरान के साथ भगवत गीता भी रखी रहती थी और वे दोनों का अध्ययन किया करते थे। गैर राजनीतिक व्यक्ति होने के बावजूद उनकी सोच पूर्णत: राष्ट्रवादी और भारत के कल्याण के बारे में सोचने वाले शख्स की रही। उन्होंने कई किताबें लिखकर अपनी सोच से देश की युवा पीढ़ी को प्रेरित किया। उनकी लिखी किताब विंग्स ऑफ फायर (हिंदी में अग्नि की उड़ान) देश की सर्वाधिक बिकने वाली किताबों में शुमार की जाती है। इसके अलावा भी उन्होंने कई और किताबें लिखीं जिनमें इंडिया 2020, 'माई जर्नी’ तथा इग्नाइटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया प्रमुख हैं। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। डॉ. कलाम को 1981 में पद्म भूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।