"केंद्र ने कोविशील्ड के डोजों का अंतर 12-16 सप्ताह मनमाने ढंग से किया", भारतीय वैज्ञानिक- हमने नहीं की थी सिफारिश
कोरोना के खिलाफ इस वक्त देश में दो वैक्सीन- कोवैक्सीन और कोविशील्ड दिए जा रहे हैं। बीते महीने केंद्र ने कोविशील्ड के दोनों डोजों के बीच के अंतर को बढ़ाया था। जिसके बाद विपक्षी दल समेत कई एक्सपर्टों ने इसका विरोध किया था। अब भारतीय वैज्ञानिकों ने खुलकर इस पर अपनी बातें समाचार एजेंसी रॉयटर्स से की है।
ये भी पढ़ें- कोवैक्सिन बनाने में बछड़े के सीरम के इस्तेमाल होने का दावा, स्वास्थ्य मंत्रालय ने दी सफाई
वैज्ञानिकों ने कहा है कि ये फैसला सरकार ने खुद मनमाने ढंग से लिया है। गौरतलब है कि केंद्र ने जब कोविशील्ड के दोनों डोजों के बीच के अंतर को 6-8 सप्ताह से बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया था तो हवाला दिया था कि ये फैसला वैज्ञानिकों के सुझाव के आधार पर लिया गया है। लेकिन, वैज्ञानिकों ने इसके विपरित खुलासा किया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने कहा है कि हमने दोनों वैक्सीन के डोज लेने के बीच अंतराल को बढ़ाकर 8-12 सप्ताह करने का सुझाव दिया था। लेकिन, इसे बढ़ाकर 12-16 सप्ताह करने के पीछे कोई तर्क नहीं है।
रॉयटर्स के मुताबिक स्टेट-रन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के पूर्व निदेशक एमडी गुप्ते ने कहा है कि एनटीएजीआई ने डोजों के अंतराल को 8-12 सप्ताह तक बढ़ाने का समर्थन किया था। ये बातें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा डोज के अंतर को लेकर दिए गए सलाह पर था। लेकिन, उन्होंने कहा कि समूह के पास 12 सप्ताह से अधिक के अंतराल के प्रभावों के संबंध में कोई डेटा नहीं था।
रॉयटर्स से गुप्ता ने कहा है, "8 से 12 सप्ताह तक के अंतर को हम सभी ने स्वीकार किया है। लेकिन, 12 से 16 सप्ताह के अंतर की बात सरकार लेकर आई है।" आगे उन्होंने कहा है, “ये सही भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता है। हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।"
वहीं, वैज्ञानिकों के खुलासे के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने सफाई देते हुए कहा है कि कोविड-19 वर्किंग ग्रुप और एनटीएजीआई की स्थायी तकनीकी उप-समिति की बैठक में कोविशील्ड के दोनों डोजों के बीच के अंतर के 12-16 सप्ताह किए जाने पर सभी एकमत थे। गौरतलब है कि केंद्र ने वैक्सीनेशन को लेकर नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (एनटीएजीआई) बनाया गया है, जिसके अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा हैं।
केंद्र की तरफ से ये फैसला तब लिया गया था जब देश में वैक्सीन की किल्लत थी। अभी भी कुछ इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। वैक्सीन की किल्लत और कोरोना की दूसरी लहर के बीच केंद्र का फैसला सवालों के घेरे में है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए खुलासों के बाद सवाल है कि क्या केंद्र ने मनमाने ढंग से फैसला लिया।