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10 May 2016

एक्सक्लूसिव- सभी सीवर-सेप्टिक मौतों पर मुआवजा न देने की केंद्र की कोशिश नाकाम

गुगल

देश की सबसे बड़ी अदालत में आज केंद्र और तमिलनाडु सरकार को धक्का लगा। केंद्र सरकार सीवर और सेप्टिक टैंकों में होने वाली मौतों पर 10 लाख रुपये का मुआवजा देने के वर्ष 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुद को मुक्त कराने के अंदेशे से गई थी, जिसे अदालत ने सिरे से नकार दिया। केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सीवर-सेप्टिक में मौतों पर दस लाख रुपये के मुआवजे के फैसले पर और अधिक स्पष्टीकरण मांगा था और यह कहा था कि सफाई करते हुए ठेके पर जिन मजदूरों की मौत हुई है, उन्हें मुआवजा सरकार के लिए देना मुश्किल है, लिहाजा अदालत को यह तय करना चाहिए कि ठेके या निजी तौर पर जो सफाई कर्मचारी सीवर या सेप्टिक टैंक में मारे जाते हैं उन्हें मुआवजा कौन देगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सिरे से खारिज करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वह उसके आदेश का पालन सुनिश्चित करे। गौरतलब है कि 27 मार्च 2014 सुप्रीम कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन की जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि आपातकालीन स्थितियों मं भी सीवर-सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए इंसानों को मेनहोल में नहीं उतारा जाना चाहिए। इस फैसले में यह भी कहा गया था कि वर्ष 1993 से लेकर जितने लोग भी सीवर-सेप्टिक में मारे जा रहे हैं, उनके परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देना चाहिए। केंद्र सरकार ने जिस तरह से दो साल बाद इस फैसले पर स्पष्टीकण मांगा उससे साफ है कि वह इस फैसले में दी गई जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना चाहती है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन ने केंद्र और तमिलनाडु सरकार द्वारा फैसले को उलटने के लिए याचिका दाखिल करने को दुखद बताया। आंदोलन के अधिवक्ता निखिल नायर का कहना है कि जब देश की सबसे बड़ी अदालत और केंद्र सरकार के कानून ने सीवर-सेप्टिक में इंसानों के उतारने को गैर-कानूनी बता चुका है, तब इन मौतों को रोकने के बजाय मुआवजा देने की भी जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हैं। 

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TAGS: sewer deaths, septic, supreme court, safai karamchari andolan, 10lakhs
OUTLOOK 10 May, 2016
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