लॉकडाउन 'नो सेक्स' और मास्क 'कंडोम' की तरह, विशेषज्ञों ने की एचआईवी से कोरोना की तुलना
भारत में कोरोना संक्रमण के इन दो दिनों में 4 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं। लगातार मामले बढ़ने के कारण संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य पूर्ण लॉकडाउन की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि लोगों को किसी भी सामाजिक संपर्क को रोकने के बजाय, ऐसे संपर्कों को सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाना चाहिए।
अनुभवी वैक्सीन शोधकर्ता और वायरोलॉजिस्ट डॉ थेकेकर जैकब जॉन लोगों और सरकार के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए एचआईवी का उदाहरण देते हैं।
डॉ जॉन कहते हैं कि जब एचआईवी आया तो आप क्या चाहते थे? 'नो सेक्स' या 'सेफ सेक्स' मतलब कंडोम के साथ? लोगों ने काफी समझने बूछने के बाद कंडोम के साथ सेक्स को चुना। डॉ कहते हैं वैसे ही इस महामारी से बचने के लिए लॉकडाउन नहीं मास्क पहनना एक उपाय है।
पिछले साल मार्च में लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने इसका विरोध किया था। उनका मानना है कि लोगों के लिए सामाजिक संपर्क से दूरी मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, क्योकि मानव एक सामाजिक प्राणी है।
डॉ जॉन कहते हैं कि हम समाज से दूर नहीं रह सकते। हम सामाजिक प्राणी हैं। तो हम ऐसे उपाय क्यो अपनाएं जो लोगों को आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए मजबूर करें? बेहतर है कि हम उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि मास्क पहनने से हमारा समाज इस महामारी से सुरक्षित रह सकता है।
प्रसिद्ध वायरोलॉजिस्ट और स्पुतनिक 5 वैक्सीन के सलाहकार बोर्ड के प्रोफेसर वसंतापुरम रवि भी इस तर्क से सहमत है कि पूर्ण लॉकडाउन समाधान नहीं है।
डॉ रवि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (एनआईएमएचएएनएस) में डीन (बेसिक साइंसेस) रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने 80 और 90 के दशक के दौरान एचआईवी वायरस फैलने पर बड़े पैमाने पर काम किया।
डॉ रवि कहते है कि बल द्वारा लोगों के व्यवहार को नहीं बदला जा सकता। एचआईवी के दौरान भी लोग कंडोम के उपयोग के लिए तैयार नहीं थे। वैसे ही आज मास्क पहनने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका एक ही तरीका था कि उन्हें यौन संबंध न करने के बजाय सुरक्षित यौन संबंध के बारे में शिक्षित किया जाए।
एचआईवी पर कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत से लोग अभी भी कंडोम का उपयोग नहीं करते हैं और असुरक्षित यौन संबंध रखते हैं, लेकिन सरकार आज भी इसकी आवश्यकता पर जोर देती है।
डॉ. रवि कहते हैं कि मुझे लगता है कि ट्रांसमिशन को कम करने के लिए सड़क पर स्पीड-ब्रैकर की तरह आंशिक प्रतिबंध स्वीकार्य है। हालांकि मैं ऐसे किसी भी कदम का समर्थन नहीं करता जो आर्थिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न करे।
उनका यह भी मानना है कि अगर लोग मास्क नहीं पहनते हैं, तो टीकाकरण वायरस की प्रगति को धीमा करने का एकमात्र तरीका है।
एक अन्य वायरस वैज्ञानिक और मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के विजिटिंग प्रोफेसर रामास्वामी पीतचप्पन का कहना है कि लॉकडाउन के बजाय लोगों को कोविड के व्यवहार को अपनाने के लिए निरंतर प्रयास किया जाए।
प्रोफेसर रामास्वामी पीतचप्पन आगे कहते है कि लॉकडाउन एक आर्थिक आपदा होगी। इससे किसी भी उद्देश्य को पूरा नहीं किया जा सकता। पहले की तरह तार्किक प्रतिबंधों के साथ कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि जब 24 मार्च को पहला देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था तब हर रोज 100 से कम मामले सामने आ रहे थे। जब जुलाई में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुए तब 20,000 से ऊपर सक्रिय मामले पहुंच गए।
एक वरिष्ठ सरकारी स्वास्थ्य अधिकारी बताते हैं कि पूर्ण लॉकडाउन ने आर्थिक मोर्चे पर भारी क्षति पहुंचाई है, लेकिन अब तक इस बीमारी के खिलाफ हमारी लड़ाई कुछ भी हासिल नहीं कर पाई है।