पूर्व राजनयिक अरुंधति घोष का निधन
उनके परिवार के एक सदस्य ने बताया कि वह कैंसर से पीडि़त थीं और उन्होंने पश्चिम दिल्ली के पालम विहार में अपने आवास पर अपरान साढ़े बारह बजे के करीब आखिरी सांसें लीं।
घोष ने ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया और मिस्र में भारतीय मिशन समेत कई पदों पर काम किया। वह जिनिवा में संयुक्त राष्ट कार्यालय में भारत की पहली स्थायी प्रतिनिधि भी थीं। घोष 1996 में जिनिवा में सीटीबीटी पर सम्मेलन मे भारतीय प्रतिनिधिमंडल की प्रमुख थीं और संधि का विरोध करने में भारत के रुख को जोरदार तरीके से रखने के लिए उनकी सराहना की जाती है।
सम्मेलन में उन्होंने भेदभावपूर्ण संधि की बात की थी और कहा था, भारत इस असमान संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। न सिर्फ अभी, बल्कि कभी नहीं। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने घोष के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उन्हें सीटीबीटी पर बातचीत में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के तौर पर उनकी भूमिका समेत राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के लिए याद किया जाएगा।
घोष का जन्म 25 नवंबर, 1939 को एक प्रमुख बंगाली परिवार में हुआ था और वह मुंबई में पलीं-बढ़ीं। उन्होंने कोलकाता में लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज से स्नातक किया और शांति निकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए गईं। वर्ष 1963 में वह भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुईं। वह प्रसार भारती के पूर्व अध्यक्ष भास्कर घोष की बहन हैं।
घोष कूटनीतिक सेवा से नवंबर, 1997 में सेवानिवृत्त हुई थीं। वह 1998 से 2004 तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सदस्य रहीं। घोष 1998 से 2001 तक संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सलाहकार बोर्ड की सदस्य भी रहीं। वह अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर विदेश मंत्रालय द्वारा 2007 में स्थापित एक कार्यबल की भी सदस्य रहीं।