अलविदा 2021: भूले न भूलेगा बीता बरस
यूं तो हर बरस अलहदा इबारत लिख जाता है और कुछ गमजदा तो कुछ खुशनुमा यादें छोड़ जाता है, लेकिन कुछ बरस अपने पदचिन्ह ऐसे छोड़ जाते हैं कि कई-कई पीढ़ियां सिहर उठती हैं या जश्न मनाती हैं। यकीनन 2021 भी इतिहास में पत्थर की लकीर जैसा कायम रहेगा, लेकिन खुशी से ज्यादा दुखदायी यादों की कंपकपी और हैरानी पैदा करता रहेगा। अपना देश ही नहीं, दुनिया हैरान करने वाली कई घटनाओं से रू-ब-रू हुई। अपने देश में बरस की शुरुआत किसानों के दिल्ली की सीमा पर मोर्चा और सरकार के साथ बातचीत से हुई। वह अनोखी तस्वीर शायद ही भूले, जब किसान नेता विज्ञान भवन में अपना लाया भोजन फर्श पर बैठकर खा रहे थे, मानो सरकार के इकबाल को चुनौती दे रहे हों। उधर, दुनिया यह देखकर हैरान थी कि चुनाव में हारे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक हुड़दंग मचाते कैपिटल हिल में घुस गए। हार न मानने की जिद ठान बैठे ट्रंप ने आखिर नए राष्ट्रपति जो बाइडन को कुर्सी सौंपी तो दुनिया और अमेरिका के लोगों ने राहत की सांस ली। फिर हमारे देश में गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर रैली भटकी तो लालकिले पर कुछ हुड़दंगी निशान साहब फहरा आए। ऐसा लगा कि किसान आंदोलन बिखर जाएगा पर सरकार समर्थकों और पुलिस से घिरे राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन का दायरा काफी व्यापक कर दिया। लेकिन ठहरिए, हैरानी तो अभी आगे है। सरकार ने दावा किया कि कोरोना को हरा दिया गया है और पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों में चुनावी प्रचार पूरे रंग से जारी हो गया मगर चुनाव निपटा भी नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर तबाही का ऐसा मंजर ले आई, जैसी पिछली कई पीढ़ियों ने देखा-सुना नहीं था। देश की सवा सौ करोड़ की आबादी में वे लोग बिरले होंगे, जिनके आत्मीय या परिचित बिछुड़ नहीं गए। अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन, दवाइयों के अभाव में लोग तड़प-तड़प कर जान गंवाते रहे। अप्रैल-मई-जून के महीनों में लाखों लोग दुनिया से उठ गए। गंगा में लाशें तैरने लगीं। उधर, सियासी मोर्चे पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत और भाजपा की हार बड़ी सुर्खी बनी तो केरल में वाम मोर्चे और तमिलनाडु में द्रमुक जीती, भाजपा को असम में जीत और छोटे-से पुदुच्चेरी में छोटी सहयोगी बनकर संतोष करना पड़ा। लोगों के चेहरे पर थोड़ी मुस्कान टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण और मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीत कर दी। अफगानिस्तान से अमेरिका हटा तो तालिबान के हाथ सत्ता आई। देश में पेगासस जासूसी का मुद्दा छाया। बरस के आखिरी महीनों में प्रधानमंत्री ने कृषि कानून वापसी का ऐलान किया तो किसान आंदोलन खत्म हुआ। मगर आखिरी महीने में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में देश के पहले सेना के तीनों अंगों के प्रमुख (सीडीएस) जनरल रावत की मौत हो गई। इस बीच देश और दुनिया में अनेक घटनाएं इस बर्ष को सबसे घटनापूर्ण बना गईं।
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हुड़दंग की पराकाष्ठाः खुद को लोकतंत्र का पहरुआ बताने वाले अमेरिका में ट्रंप समर्थकों का कैपिटल हिल पर धावा देख दुनिया हैरान हुई
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गणतंत्र पर उपद्रवः 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली भटकी तो कुछ युवा लाल किले पर धार्मिक झंडा फहरा आए
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चुनाव चुनौतीः पश्चिम बंगाल चुनावों में भारी बहुमत से जीतकर तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने भाजपा की चुनावी अजेयता पर सवाल खड़ा किया
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खुशी के लम्हेः टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने रजत और नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीत कर उम्मीद बंधाई
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तालिबान की वापसीः अफगानिस्तान से अमेरिका हटा तो तालिबान ताकतें बिना लड़ाई के काबुल पर काबिज हुईं और उनके डर से देश छोड़ने वाले बगराम हवाई अड्डे पर उमड़े
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गरीब भी सुंदरः ऑटोचालक की बेटी मान्या सिंह फेमिना मिस इंडिया स्पर्धा में दूसरे नंबर पर रहीं
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दूसरी लहरः जानलेवा कोरोना वैरिएंट के प्रकोप से पूरा देश त्राहिमाम कर उठा, ऑक्सीजन के अभाव में सांसें उखड़ने लगीं, श्मशानों में शवों के अंतिम संस्कार की कतारें लग गईं, और गंगा में लाशें तैरने लगीं
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पत्रकारिता की सजाः पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में हत्या हो गई
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जासूसी का फंदाः संसद के वर्षाकालीन सत्र के दौरान पेगासस स्पाईवेयर से विपक्षी नेताओं, मंत्रियों, पत्रकारों, प्रमुख शख्सियतों की जासूसी कराने के मुद्दे का खुलासा हुआ, तो सांसदों के विरोध से सत्र में बमुश्किल कोई कामकाज हो पाया
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टीके की सुरक्षाः टीके को लेकर भारी नाराजगी और बवाल के बाद आखिर केंद्र सरकार ने टीके की व्यवस्था में तेजी लाने के कदम उठाए और बड़ी आबादी को कम से कम एक टीका लगा
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दुखद अंतः 8 दिसंबर को नीलगिरि पहाड़ियों पर हेलिकॉप्टर दुर्घटना में देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत की मौत बड़ी चुनौती छोड़ गई
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रंग लाया संघर्षः तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को सरकार ने वापस लिया और दूसरे मुद्दों पर लिखित वादा किया तो 380 दिनों चला किसान आंदोलन खत्म हुआ और दिल्ली की सीमा पर डटे किसान 11 दिसंबर को रवाना हुए