सरकार का दावा, खाना-पानी या दवा की कमी से नहीं गई किसी मजदूर की जान
कोविड-19 महामारी फैलने के बाद देश ने भले ही भूख-प्यास से बिलखते और सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते मजदूरों को देखा हो, भले ही इस दौरान सैकड़ों मजदूर अपनी जान गवां बैठे हों, लेकिन सरकार मानती है कि खाना, पानी या दवा की कमी से किसी भी मजदूर की मौत नहीं हुई। जिसकी भी जान गई वह बीमारी की वजह से। सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी मजदूरों से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह बात कही। मेहता ने यहां तक कहा कि पूरा देश जैसे एक दूसरे की बातों पर चल रहा है और कोर्ट में अनेक ऐसी बातें कही जा रही हैं जिनका जमीनी सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है।
रेलवे ने मानी थी 9 यात्रियों की मौत की बात
सॉलिसिटर जनरल का कोर्ट में यह बयान इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में कई मजदूरों की मौत होने की घटनाएं सामने आई हैं। लोगों के जेहन में वह घटना अभी ताजा ही है जिसमें एक महिला कि लाश स्टेशन पर पड़ी थी और उसका बच्चा उसे जीवित समझ कर खींच रहा था। रेलवे ने भी 27 मई को माना था कि 48 घंटे के दौरान कम से कम 9 मजदूर यात्रियों की मौत हुई। तब रेलवे ने भी यही कहा था कि सबकी जान खराब सेहत के कारण गई है। हालांकि यह भी सच है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सफर करने वालों ने खाना-पानी नहीं मिलने की शिकायतें लगातार कीं। यही नहीं, ये ट्रेनें निर्धारित समय की तुलना में कई गुना ज्यादा समय लेकर अपने गंतव्य स्टेशनों तक पहुंचीं। कई ट्रेनें तो रूट बदलकर दूसरी जगहों पर पहुंच गई।
कोर्ट से नया निर्देश नहीं देने का आग्रह
आश्चर्यजनक बात यह है कि सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से आग्रह किया कि वह बिना लक्षण वाले मरीजों के क्वारंटीन के लिए कोई नया निर्देश जारी न करे और सिर्फ मजदूरों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के मुद्दे पर फोकस करे। पिछली सुनवाई में भी तुषार मेहता ने सरकार की आलोचना करने वालों की तुलना गिद्ध से की थी। सरकार के खिलाफ कई हाईकोर्ट के फैसलों पर भी उन्होंने सवाल उठाए थे और कहा था कि हाईकोर्ट समानांतर सरकार चला रहे हैं। मेहता ने यह भी कहा कि जो लोग सरकार के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं वे पहले इस बात का हलफनामा दें कि उन्होंने मजदूरों के हित में क्या किया है।